सरकारिया आयोग किससे संबंधित है? इसके सिफारिशें क्या थी

1983 में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय क सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर. एस. सरकारिया की अध्यक्षता में केंद्र-राज्य संबंधों पर एक तीन सदस्यीय आयोग सरकारिया आयोग का गठन किया।

सरकारिया आयोग

आयोग से कहा गया कि वह केंद्र और सरकार के बीच सभी व्यवस्थाओं व कार्य पद्धतियों का परीक्षण करे और इस संबंध में उचित परिवर्तन व प्रामाणिक सिफारिश प्रदान करे। इसे अपने काम को पूरा करने के लिए एक वर्ष का समय दिया गया, तथापि इसका कार्यकाल चार बार बढ़ाना पड़ा। इसने अपना रिपार्ट 1988 में सौंप दी।

आयोग ढांचागत परिवर्तन के पक्ष में नहीं था। इसने महसूस किया कि मूल रूप से संवैधानिक व्यवस्था और सिद्धात रूप से मूल संस्थात्मक संरचना ठीक है लेकिन इसन इस बात पर बल दिया कि प्रचानात्मक एवं कार्यात्मक र्यात्मक स्तर पर परिवर्तन हो। इसने महसूस किया कि स्थायी संस्था मामले के मुकाबले में संघीयता महयोगी क्रिया लिए ज्यादा क्रियात्मक व्यवस्था है। इसने इस मांग को पूर्णत: खारिज कर दिया कि केंद्र की शक्तियों में कटोती हो, बल्कि इसने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए मजबूत केंद्र का होना आवश्यक है, जिसे विखंडनीय प्रवृत्तियों द्वारा चुनौती दी जा रही है। हालांकि उसने सशक्त केंद्र का मतलब यह नहीं बताया कि शास्तियों का केंद्रीकरण हो। इसने यह भी पाया कि केन्द्र में शक्तियों के अधिक संक्रेन्द्रण से निर्णय लेने का दबाव रहता जबकि राज्य निर्णयविहीन रहते हैं।

सरकारिया आयोग की सिफारिशें

आयोग ने केंद्र-राज्य संबंधों की सुधार की दिशा में 247 सिफारिशें प्रस्तुत की। इनमें से महत्वपूर्ण सिफारिशें इस प्रकार हैं:

  • एक स्थायी अंतर्रज्यीय परिषद हो जिसे अंतर-सरकारी परिषद कहा जाना चाहिए। इसकी स्थापना अनुच्छेद 263 के तहत होनी चाहिए।
  • अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को बहुत संभलकर इस्तेमाल किया जाए। इसका तभी इस्तेमाल हो जब सभी उपलब्ध विकल्प समाप्त हो जाएं।
  • अखिल भारतीय सेवाओं के संस्थान को और अधिक मजबूत बनाना चाहिए और ऐसी ही कुछ सेवाओं का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • कराधान की शक्ति संसद में ही निहित रहनी चाहिए, जबकि अन्य शक्तियों को समवर्ती सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
  • जब राष्ट्रपति राज्य के किसी विधेयक को स्वीकृति के लिए आरक्षित करे तो इसका कारण राज्य सरकार को बताया जाना चाहिए |
  • राष्ट्रीय विकास परिषद्‌ (एनडीसी) का नाम बदलकर इसे राष्ट्रीय आर्थिक एवं विकास परिषद (एनईडीसी) किया जाना चाहिए।
  • क्षेत्रीय परिषदें बनानी चाहिए और इन्हें संघीयता के मामले में प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • केंद्र को बिना राज्य की स्वीकृति के सैन्य बलों की तैनाती की शक्ति प्राप्त होनी चाहिए यहां तक कि यह राज्यों की सहमति के बिना भी किया जा सकता है तथापि यह वांछनीय है कि राज्यों से परामर्श किया जाए।
  • समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले केंद्र को राज्य से परामर्श करना चाहिए।
  • राज्यपाल की नियुक्ति पर मुख्यमंत्री की सलाह की व्यवस्था को स्वयं संविधान में निर्दिष्ट किया जाना चाहिए।
  • निगम कर की कुल प्राप्तियों को राज्यों के साथ निश्चित सीमा में बांटा जाना चाहिए।
  • राज्यपाल विधानसभा में बहुमत की स्थिति पर सरकार को भंग नहीं कर सकता है।
  • राज्यपाल के 5 वर्ष के कार्यकाल को बिना ठोस कारणों के अतिरिक्त बाधित नहीं किया जाना चाहिए।
  • बिना संसद की मांग के किसी राज्यमंत्री के खिलाफ जांच आयोग नहीं बैठाना चाहिए।
  • केंद्र द्वारा आयकर पर अधिभार उगाही नहीं करनी चाहिए सिवाय विशेष उद्देश्य और सीमित समय के लिए।
  • योजना आयोग और वित्त आयोग के बीच कार्यों का वर्तमान बंटवारा उचित एवं निरंतर होना चाहिए।
  • त्रिभाषा, फॉर्मूला समान रूप से लागू करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।
  • रेडियो एवं टेलीविजन के लिए स्वायत्तता नहीं होनी चाहिए लेकिन इनके कार्यों का विकेंद्रीयकरण होना चाहिए।
  • राज्यों के पुनर्गठन पर राज्यसभा की भूमिका एवं केंद्र की शक्ति में परिवर्तन नहीं होने चाहिए।
  • भाषागत अल्पसंख्यकों के लिए कमीक्वरी प्रारंभ करना चाहिए।

केंद्र सरकार सरकारिया आयोग की 180 (247 में से) सिफारिशों को लागू कर चुकी है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण 1990 में केंद्र-राज्य परिषद का गठन है।

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