राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

;संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को संसद के सत्रावसान की अवधि में राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। इन अध्यादेशों का प्रभाव व शक्तियां, संसद द्वारा बनाए गए कानून की तरह ही होती हैं परंतु ये प्रकृति से अल्पकालीन होते हैं।

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधायी शक्ति है। यह शक्ति उसे अप्रत्याशित अथवा अविलंबनीय मामलों से निपटने हेतु दी गई है परंतु इस शक्ति के प्रयोग में निम्नलिखित चार सीमाएं हैं;

  • वह अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब संसद के दोनों अथवा दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्र न चल रहा हो।
  • वह कोई अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब वह इस बात से संतुष्ट हो कि मौजूदा परिस्थिति ऐसी है कि उसके लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है।
  • अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है।
  • अध्यादेश पर वही संवैधानिक सीमाएं होती हैं, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकरण अथवा उसको छीन नहीं सकता।
  • संसद सत्रावसान की अवधि में जारी किया गया प्रत्येक अध्यादेश संसद की पनः बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

किसी अध्यादेश की अधिकतम अवधि छह महीने संसद की मंजूरी न मिलने की स्थिति में छह हफ्तों की होती है। संसद के दो सत्रों के मध्य अधिकतम अवधि छह महीने होती है।

अध्यादेश को वापस लेना

राष्ट्रपति भी किसी भी समय किसी अध्यादेश को वापस ले सकता है। हालांकि राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति उसकी कार्य स्वतंत्रता का अंग नहीं है और वह किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है अथवा वापस लेता है

भारत के राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति अनोखी है तथा अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों, जैसे-अमेरिका व ब्रिटेन में प्रयोग नहीं की जाती है।

अध्यादेश जारी करने की शक्ति के पक्ष में, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा –

अध्यादेश जारी करने की प्रक्रिया, राष्ट्रपति को उस परिस्थिति से निपटने में योग्य बनाती है जो आकस्मिक व अचानक उत्पन्न होती है जब संसद के सत्र कार्यरत नहीं होते हैं।

राष्ट्रपति के अध्यादेश उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत

अब तक राष्ट्रपति के अध्यादेश पुनः जारी करने के संबंध में कोई भी मामला उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया है।

परंतु डी.सी. वाधवा मामले (1987) में उच्चतम न्यायालय का निर्णय यहां पर काफी संगत है। इसमें न्यायालय द्वारा कहा गया कि सन्‌ 1967-98 के बीच बिहार के राज्यपाल द्वारा 256 अध्यादेश जारी किए गए और इन्हें समय-समय पर पुन: जारी कर एक से चौदह वर्ष तक प्रभावी रखा गया। न्यायालय ने कहा कि  अध्यादेशों की भाषा में परिवर्तन किए बिना तथा विधानसभा द्वारा विधेयक पारित करने का प्रयास न करके अध्यादेशों का पन: प्रकाशन करना संविधान का उल्लंघन है तथा इस प्रकार के पनः प्रकाशित अध्यादेश रद्द होने चाहिए। यह कहा गया कि अध्यादेश द्वारा विधि बनाने की वैकल्पिक शक्ति को राज्य विधायिका की विधायी शक्ति का विकल्प नहीं बनाना चाहिए।

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