केंद्र-राज्य विधायी संबंध | Centre-State Legislative Relations

संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंध की चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अनुच्छेद भी इस विषय से संबंधित हैं।

केंद्र-राज्य विधायी संबंध

किसी अन्य सघीय संविधान की तरह भारतीय संविधान भी केंद्र एवं राज्यों के बीच उनके क्षेत्र के हिसाब से विधायी शक्तियों का बंटवारा करता है। इसके अतिरिक्त संविधान पाच असाधरण परिस्थितियों के अंतर्गत राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान सहित कुछ मामलों में राज्य विधानमण्डल पर केन्द्र के नियंत्रण की व्यवस्था करता है। इस तरह केंद्र राज्य विधायी संबधों के मामले में चार स्थितिया है:

  • केंद्र और राज्य विधान के सीमात क्षेत्र
  • विधायी विषयों का बंटवारा,
  • राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान, और:
  • राज्य विधान पर केंद्र का नियंत्रण।

1. केंद्र और राज्य विधान का क्षेत्रीय विस्तार

संविधान ने केन्द्र और राज्यों को प्रदत्त शक्तियों के संबंध में स्थानीय सीमाओं को लेकर विधायी संबंधों को निम्नलिखित तरीके से परिभाषित किया है:

  • संसद पूरे भारत या इसके किसी भी क्षेत्र के लिए कानून बना सकती है। भारत क्षेत्र में राज्य शामिल हैं। केंद्रशासित राज्य और किसी अन्य क्षेत्र को भारत के क्षेत्र में माना जाता है।
  • राज्य विधानमंडल पूरे राज्य या राज्य के किसी क्षेत्र के लिए कानून बना सकता है। राज्य विधानमंडल द्वारा निर्मित कानून को राज्य के बाहर के क्षेत्रों में लागू नहीं किया जा सकता, सिवाए तब जब राज्य और व्स्तु में संबंध पर्याप्त हों।
  • केवल संसद अकेले “अतिरिक्त क्षेत्रीय विधान‘ बना सकती है। इस तरह संसद का कानून भारतीय नागरिक एवं उनकी विश्व में कहीं भी संपत्ति पर लागू होता है।

यद्यपि संविधान ने क्षेत्रीय न्यायक्षेत्र के मामले पर संसद पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए हैं। दूसरे शब्दों में, संसद के कानून निम्नलिखित क्षेत्रों में लागू नहीं होंगेः

1.राष्ट्रपति पांच केंद्रशासित क्षेत्रों में शांति, उन्नति एवं अच्छी सरकार के लिए नियम बना सकते हैं।

ये है:-

  • अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह,
  • लक्षद्वीप,
  • दादरा एवं नागर हवेली,
  • दमन व दीव और
  • लद्दाख।

इस प्रकार बनाया गया विनिमय, संसद के किसी अधिनियम के समान ही प्रयोज्य और प्रभावी होगा। इन संघशासित प्रदेशों के संबंध में इसे संसद के किसी अधिनियम को निरसित या संशोधित करने का भी अधिकार होगा

2. राज्यपाल को इस बात की शक्ति प्राप्त है कि

वह संसद के किसी विधेयक को सूचीबद्ध क्षेत्र में लागू न करे या उसमें कुछ विशेष संशोधन कर लागू करे।

3. असम का राज्यपाल

संसद के किसी विधेयक को जनजातीय क्षेत्र (स्वायत्त जिलों) में प्रयोज्य न कर या कुछ विशिष्ट परिवर्तनों के साथ लागू कर सकता है। राष्ट्रपति को भी इस तरह की शक्ति जनजातीय क्षेत्रों (स्वायत्त जिलों) मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम के लिए प्राप्त है।

2. विधायी विषयों का बंटवारा

संविधान ने सातवीं अनुसूची में केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी विषयों के संबंध में त्रिस्तरीय व्यवस्था की है

  • सूची I (संघ सूची),
  • सूची ॥ (राज्य सूची) और
  • सूची III (समवर्ती सूची)।

1. संघ सूची

संघ सूची से संबंधित किसी भी मसले पर कानून बनाने की संसद को विशिष्ट शक्ति प्राप्त है। इस सूची में इस समय 98 विषय हैं (मूलत: 97)’ जैसे रक्षा , बैंकिंग, विदेश मामले, मुद्रा, आणविक ऊर्जा, बीमा, संचार, केंद्र राज्य व्यापार एवं वाणिज्य, जनगणना, लेखा परीक्षा आदि।

2. राज्य सूची

राज्य विधानमंडल को सामान्य परिस्थितियों’ में राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है। इस समय इसमें 59 विषय (मूलत: 66 विषय) हैं, जेसे सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, जन स्वास्थ्य एवं सफाई, कृषि, जेल, स्थानीय शासन, मत्स्यपालन, बाजार आदि।

3. समवर्ती सूची

समवर्ती सूची के संबंध में संसद एवं राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते हैं। इस सूची में इस समय 52 विषय (मूलत: 47) हैं, जेसे आपराधिक कानून प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, विवाह एवं तलाक, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन, बिजली, श्रम कल्याण, आर्थिक एवं सामाजिक योजना, दवा, अखबार, पुस्तक एवं छापा प्रेस एवं अन्य। 42वें संशोधन अधिनियम 1976 के तहत 5 विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में शामिल किया गया। वे हैं

  • शिक्षा,
  • वन,
  • नाप एवं तौल
  • वन्य जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण,
  • न्याय का प्रशासन;संविधान एवं
  • उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सभी न्यायालयों का संगठन।

संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह भारत के किसी भू-भाग के किसी भी विषय पर कानून बना सकती है जो कि किसी राज्य में शामिल नहीं है, भले ही वह विषय राज्य सूची के अंतर्गत सम्मिलित है। इस प्रावधान का संदर्भ संघीय क्षेत्र अथवा अधिगहीत क्षेत्र (यदि कोई हो) से बनता है।

101वें संशोधन अधिनियम, 2016 ने वस्तु एवं सेवा कर के सम्बन्धित विशेष प्रावधान बनाए। इसी अनुसार संसद तथ राज्य विधायिकाओं को संघ अथवा राज्य द्वारा अधिरापित वस्तु एवं सेवा कर के विषय पर कानून बनाने का अधिकार है। पुन: संसद को यह विशेष शक्ति प्राप्त है कि वह वस्तु एवं सेवा कर के विषय में कानून बनाए यदि वस्तु अथवा सेवा अथवा दोनों की आपूर्ति अन्तर राज्य व्यापार या वाणिज्य में की जा रही है।

4. अवशिष्ट सूची

अवशिष्ट सूची से संबद्ध विषयों (वे विषय, जो तीनों सुचियों के सम्मिलित नहीं होते) पर विधान बनाने का अधिकार संसद को है। इस अवशिष्ट शक्ति में अवशिष्ट करों के आरोपण के संबंध में विधान बनाने की शक्ति भी शामिल है।

इस तरह स्पष्ट है कि

  • विधायी एकता के लिए आवश्यक राष्ट्रीय महत्व के ऐसे मामलों को संघ सूची में शामिल किया गया।
  • क्षेत्रीय एवं स्थायी महत्व एवं विविधता वाले विषयों को राज्य सूची में रखा गया, जि
  • न विषयों पर संपूर्ण देश में विधायिका की एकरूपता वांछनीय है, परन्तु अनिवार्य नहीं, उन्हें समवर्ती सूची में रखा गया।

इस तरह संविधान अनेकता में एकता की अनुमति देता है।

अमेरिका में संघीय सरकार की शक्तियां संविधान में निहित हैं तथा अवशिष्ट शक्तियां राज्यों को प्रदान कर दी गयी हैं। आस्ट्रेलियाई संविधान में भी अमेरिका की तरह शक्तियों के एकल वर्णन की प्रकृति को अपनाया गया है। कनाडा में शक्तियों के आबंटन की दोहरी प्रकृति है अर्थात्‌ संघीय और प्रांतीय तथा अवशिष्ट शक्तियां केन्द्र में निहित हैं।

भारत सरकार अधिनियम, 1935 त्रिस्तरीय महत्व के मामलों की व्यवस्था करता है अर्थात्‌ संघीय, प्रांतीय एवं समवर्ती। वर्तमान संविधान इस अधिनियम के मामलों को एक अंतर के साथ अपनाता है। खास शक्तियां उस समय न तो संघीय विधायिका को दी गई, न प्रांतीय विधायिका को; बल्कि भारत के गवर्नर जनरल को दी गई।

इस मामले में भारत ने कनाडा पद्धति को अपनाया। संविधान में संघ सूची को राज्य एवं समवर्ती सूची के ऊपर रखा गया है और समवर्ती सूची को राज्य सूची के ऊपर के ऊपर रखा गया है।

  • संघ सूची एवं राज्य सूची के बीच टकराव होने की स्थिति में संघ सूची मान्य होगी।
  • यही व्यवस्था संघ सूची व समवर्ती सूची के मामल में भी यही स्थिति होगी।
  • समवर्ती एवं राज्य सूची में संघर्ष की स्थिति पर पूर्व वाली मान्य होगी।
  • यदि समवर्ती सूची के किसी विषय को लेकर केंद्रीय कानून एव राज्य कानून में संघर्ष की स्थिति आ जाए तो केंद्रीय कानून राज्य कानून पर प्रभावी होगा।

लेकिन इसमें एक अपवाद भी है। यदि राज्य द्वार बनाया गया कानून राष्ट्रपति की सिफारिश के लिए सुरिक्षत है और उसे राष्ट्रपति की सहमति मिल जाती है तो राज्य का कानून प्रभाव होगा, लेकिन संसद भी इस पर कानून बना सकती है।

राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान

केंद्र एवं राज्यों के बीच बंटवारे की उक्त व्यवस्था सामान्य काल विधायी शक्तियों के बंटवारे के लिए होती हैं। लेकिन असामान्य साल में बंटवारे की योजना या तो सुधारी जाती है या स्थगित कर जाती है। दूसरे शब्दों में, संविधान संसद को यह शक्ति प्रदान करता बै कि राज्य सूची के तहत निम्नलिखित पांच असाधारण परिस्थितियों में कानून बनाए:

जब राज्यसभा एक प्रस्ताव पारित कर दे

यदि राज्यसभा यह घोषणा कर दे कि राष्ट्र हित में यह आवश्यक है कि संसद को वस्तु और सेवा कर के संबंध में राज्य सूची के मामले में कानून बनाना चाहिए, तब संसद इस मसले पर कानून बनाने के लिए सक्षम हो जाएगी। इस तरह के किसी प्रस्ताव को उपस्थित सदस्यों में दो-तिहाई का समर्थन मिलना चाहिए। यह प्रस्ताव एक वर्ष तक प्रभावी रहेगा।

इसे आगे असंख्य बार बढ़ाया जा सकता है परन्तु इसे एक बार में एक वर्ष से अधिक के लिए नहीं बढ़ाया जा सकता। यह व्यवस्था राज्य विधानमंडल को समान मुद्दे पर कानून बनाने से नहीं रोकती है, लेकिन राज्य कानून एवं संसदीय कानून के बीच असहमति के मामले पर बाद की व्यवस्था मान्य होगी।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान

यदि आपातकाल प्रभावी हो जाए तो संसद वस्तु और सेवा कर के संबंध में राज्य सूची के मामलों की शक्तियां अधिगृहीत कर लेती है। आपातकाल समाप्त होने के छह माह बाद तक यह व्यवस्था प्रभावी रहेगी।

यहां भी राज्य विधानमंडल की समान मुद्दे पर कानून बनाने की शक्ति प्रतिबंधित नहीं होती, लेकिन इसमें भी टकराव की स्थिति में संसदीय कानून हावी रहता है।

राज्यों के अनुरोध की अवस्था में

जब दो या अधिक राज्यों के विधानमंडल प्रस्ताव पारित करें कि राज्य सूची के मसले पर कानून बनाया जाए तब संसद उस मामले के संबंध में कानून बना सकती है। यह कानून उन्हीं राज्यों में प्रभावी होगा, जिन्होंने इसे बनाने के संबंध में प्रस्ताव पारित किया था। यद्यपि बाद में कोई राज्य इस संबंध में विधानमंडल में पारित प्रस्ताव के माध्यम से इसे लागू कर सकता है। इस तरह के कानून का संशोधन या इस पर पुनर्विचार संसद ही कर सकती है, न कि संबंधित राज्य।

उक्त प्रावधान के तहत संसद उन मामलों पर भी कानून बना सकती है, जिन पर उसे सीधे शक्ति प्रदत्त नहीं की गई। दूसरी ओर, ऐसे मामले में राज्य विधानमंडल की कानून बनाने की शक्ति समाप्त हो जाती है। राज्यों द्वारा इस प्रकार का प्रस्ताव पारित करने का अभिप्राय यह है कि उन्होंने अपने विधान निर्माण की शक्ति को स्थगित या समर्पित कर दिया है तथा सभी कुछ संसद के हाथों में सौंप दिया है।

उक्त व्यवस्था के तहत पारित कुछ कानूनों के उदाहरण इस प्रकार हैं-

  • पुरस्कार प्रतियोगिता अधिनियम 1955,
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972,
  • जल (प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण) अधिनियम 1974,
  • नगर भूमि (अधिकतम सीमा और विनियमन) अधिनियम,
  • 1976 और मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम, 1994

अंतर्राष्ट्रीय समझौते को लागू करना

संसद राज्य सूची के किसी मामले में अंतर्राष्ट्रीय संधि या समझौते के लिए कानून बना सकती है। यह व्यवस्था केंद्र को अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्व और प्रतिबद्धता को पूरा करने के योग्य बनाती है।

उक्त व्यवस्था के तहत बनाए गए कुछ कानूनों के उदाहरण हैं,

  • संयुक्त राष्ट्र (सुविधा एवं प्रतिरक्षा) अधिनियम 1947,
  • जेनेवा समझौता अधिनियम 1960,
  • अपहरण के खिलाफ अधिनियम 1982 एवं
  • पर्यावरण से संबंधित विधान और ट्रिप्स (TRPIS)।

राष्ट्रपति शासन के दौरान

जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो तो संसद को संबंधित राज्य के लिए राज्य सूची पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। राष्ट्रपति शासन के उपरांत भी संसद द्वारा बनाया गया कानून प्रभावी रहता है। इसका अर्थ यह है कि इस कानून के प्रभावी होने की अवधि राष्ट्रपति शासन की अवधि से स्वतंत्र है, परन्तु ऐसे कानून को राज्य विधानमण्डल द्वारा निरसित या परिवर्तित या पुनः लागू किया जा सकता है।

4. राज्य विधानमंडल पर केंद्र का नियंत्रण

अपवादजनक परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद के सीधे विधान के अतिरिक्त संविधान केंद्र को राज्य सूची पर नियंत्रण के लिए निम्नलिखित मामलों में शक्तिशाली बनाता है:

  • राज्यपाल कुछ प्रकार के विधेयकों को, राष्ट्रपति की संस्तुति के लिए सुरक्षित रख सकता है। राष्ट्रपति को उन पर विशेष वीटो की शक्ति प्राप्त है।
  • राज्य सूची से संबंधित कुछ मामलों पर विधेयक सिर्फ राष्ट्रपति की पूर्व सहमति पर ही लाया जा सकता है (उदाहरण के लिए व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने संबंधी विधेयक)।
  • केंद्र राज्य विधानमंडल द्वारा पारित धन या वित्त विधेयक का वित्तीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति के निर्देशों के अनुसार सुरक्षित रखने का निर्देश दे सकता है।

उक्त प्रावधानों से स्पष्ट होता है कि संविधान ने विधायी विषयों पर कानून बनाने के मामले में केंद्र की स्थिति ज्यादा शक्तिशाली रखी है। इस संबंध में सरकारिया आयोग (1983-88) ने यह पाया कि ‘संघीय सर्वोच्चता केंद्र एवं राज्यों के कानूनों के मध्य तनाव एवं टकरावों को समाप्त करने एवं सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित करने का एक शक्ति है। यदि केंद्र की सर्वोच्चता की इस स्थिति को समाप्त किया गया तो इसके नकारात्मक प्रभावों का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।

हमारी द्वैध राजनीतिक व्यवस्था में हस्तक्षेप, विधित अड़चनें, भ्रांतियों इत्यादि जैसे अनेकानेक कारक हैं, जो अन्ततोगत्वा नागरिकों के हितों को प्रभावित कर सकते हैं। एकीकृत विधायी नीति एवं एकरूपता सामान्य केंद्र-राज्य संबंधों के आधारभूत मुद्दे हैं। इससे ही हमारी अनेकता में एकता की पहचान अक्षुण नहीं रह सकती है। इस प्रकार संघीय सर्वोच्चता की यह नीति संघीय व्यवस्था के प्रभावी एवं निर्बाध संचालन हेतु अति आवश्यक है।”

केन्द्र-राज्य विधायी सम्बन्ध से जुड़े अनुच्छेद: एक नजर में

अनुच्छेदविषय-वस्तु
245संसद द्वारा एवं राज्य विधायिकाओं द्वारा बनाए गए कानूनों का विस्तार।
246संसद द्वारा एवं राज्य विधायिकाओं द्वारा बनाए गए कानूनों की विषय-वस्तु।
246Aवस्तु और सेवा कर के संबंध में विशेष प्रावधान
247कतिपय अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का संसद का अधिकार।
248विधायन की अवशेष शक्तियां।
249राष्ट्रहित में राज्य सूची से संबंधित किसी मामले में संसद की कानून बनाने की शक्ति।
250राज्य सूची के किसी विषय पर आपातकाल की स्थिति में संसद की कानून बनाने की शक्ति।
251अनच्छेद 249 एवं 250 के अंतर्गत संसद द्वारा बनाए गए कानूनों एवं राज्य विधायिकाओं द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच असंगतता।
252दो या अधिक राज्यों के लिए, उनकी सहमति के पश्चात्‌ संसद द्वारा कानून बनाने की शक्ति तथा किसी अन्य राज्य द्वारा इस विधायन को अंगीकार करना।
253अतर्राष्टीय समझौोतों पर अमल करने के लिए विधायन।
254संसद द्वारा बनाए कानूनों तथा राज्य विधायिकाओं द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच असंगति।
255अनुशंसाओं तथा पूर्व अनुमोदनों को प्रक्रियागत मामलों के रूप में देखने की जरूरत।

 

Read more Chapter:-

Read more Chapter:-

Leave a Reply