राज्य के उच्च न्यायालय का गठन, अधिकार और शक्ति

संविधान के अनुच्छेद 214 से 237 तक में राज्य के उच्च न्यायालय का विवरण है। अनुच्छेद 214 में, प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय होगा तथा अनुच्छेद 215 में, प्रत्येक उच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा।

राज्य के उच्च न्यायालय

संविधान के 216वें अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करता है, जिनमें एक मुख्य न्यायाधीश होता है। राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श से उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, सम्बंधित राज्य के राज्यपाल और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सम्मति लेता है।

  1. अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से सम्बंधित है।
  2. अनुच्छेद 231 में, दो अथवा दो से अधिक राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय का गठन किया जा सकता है।

न्यायाधीश की योग्यता

संविधान के अनुसार, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश वही व्यक्ति नियुक्त हो सकता है, जो –

  1. भारत का नागरिक हो।
  2. भारत के राज्य क्षेत्र में कम-से-कम 10 वर्षों तक किसी न्यायिक पद पर रह चुका, अथवा किसी राज्य के या दो से अधिक राज्यों के उच्च न्यायालयों में कम-से-कम 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका है।

वेतन, भत्ते और कार्यकाल

  1. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 90,000 रु. प्रतिमास वेतन तथा अन्य न्यायाधीशों को 80,000 रु. प्रतिमास वेतन मिलता है।
  2. उन वेतन और भत्ते में राज्य का विधानमंडल कटौती नहीं कर सकता। वित्तीय आपात की घोषणा होने पर उनके वेतन कम किए जा सकते हैं।
  3. सेवा-निवृत्त (retire) होने पर उन्हें पेंशन दिया जाता है। सेवा-निवृत्त होने पर वे किसी भी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते।
  4. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद पर 62 वर्ष की आयु तक पदासीन रहते हैं।
  5. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश त्यागपत्र द्वारा भी पदत्याग कर सकते हैं।

उच्च न्यायालय के अधिकार एवं शक्तियाँ

राज्य का सबसे बड़ा न्यायालय उच्च न्यायालय है। उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को निम्न हैं –

1. प्राथमिक अधिकार क्षेत्र

उच्च न्यायालय को दीवानी और फौजदारी के मामलों के लिए प्राथमिक अधिकार क्षेत्र मिले हैं। सभी दीवानी मुकदमें, जिन्हें district courts नहीं सुन सकते, उच्च न्यायालय में ही प्रारम्भ होते हैं और उसी प्रकार से फौजदारी के सभी मुकदमें जिनकी सुनवाई अन्य स्थानों पर जिला कोर्ट में होती है, उच्च न्यायालय द्वारा सुने जाते हैं। राजस्व तथा उसकी वसूली से सम्बंधित मुकदमें अब उच्च न्यायालय के प्राथमिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।

2. अपीलीय अधिकार क्षेत्र

उच्च न्यायालयों का अपीलीय अधिकार क्षेत्र दीवानी और फौजदारी दोनों प्रकार के मुकदमों तक विस्तृत है। जिन दीवानी मुकदमों में अपील उच्च न्यायालय में की जा सकती है. फौजदारी मुकदमों की अपीलें न्यायालय में की जा सकती हैं, यदि sessions court ने किसी अभियुक्ति को मृत्युदंड दिया हो, तो उस दंड की संपुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्यतः होनी चाहिए।

3. अधीक्षण की शक्ति

भारत एक राज्यों का संघ है, परन्तु अन्य संघों के विपरीत भारत में संविधान द्वारा एकतापूर्ण न्यायपालिका और एक ही मौलिक विषयों के समूह की व्यवस्था की गई है। भारत की न्यायपालिका के शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय स्थित है। उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों, आज्ञाओं, निर्णयों इत्यादि द्वारा नियंत्रित होते हैं।अनुच्छेद 227 के अनुसार, उच्च न्यायालयों को अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों के अधीक्षण का अधिकार है। उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों से हिसाब का लेखा माँगता है, उनकी प्रक्रिया के सामान्य नियम निर्धारित करता है और प्रक्रिया एवं व्यवहार के रूपों की नियंत्रित करता है. उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के पदाधिकारियों, लिपिकों, वकीलों इत्यादि के लिए नियम निर्धारित कर सकता है।

4. अन्य अधिकार क्षेत्र

उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकारों में दो दिशाओं में बढ़ोतरी हुई है।

  1. राजस्व या उसके संग्रह-सम्बन्धी मामले भी उच्च न्यायालयों में जा सकते हैं।
  2. पहले उच्च न्यायालयों को केवल बंदी-प्रत्यक्षीकरण (writ of habeas corpus) के लेख जारी करने का अधिकार था, परन्तु अब उच्च न्यायालयों को बंदी-प्रत्यक्षीकरण, परमादेश (mandamus), प्रतिषेध (prohibition), अधिकार-पृच्छा (quo-warranto), उत्प्रेषण (certiorari) इत्यादि लेख जारी करने का अधिकार दिया गया है।

संविधान के 44वें संशोधन अधिनयम द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्च न्यायालय के अधिकारों में भी परिवर्तन किए गए हैं। परिवर्तित अधिकार इस प्रकार हैं –

  • उच्च न्यायालय को अपना फैसला देने के साथ उस मुकदमें की अपील सर्वोच्च न्यायालय में होने के लिए प्रमाणपत्र भी जारी कर देना होगा।
  • अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार (writ jurisdiction) की पुनः स्थापना कर दी गई है।
  • किसी के आवेदन पर यदि उच्च न्यायालय दो महीने तक कोई निर्णय नहीं लेता है, तो उसपर जो भी आंतरिक निर्णय लिया जायेगा वह दो महीने के बाद रद्द माना जायेगा।

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