आदि शंकराचार्य के जीवन महत्व

आदि शंकराचार्य के जीवन महत्व (life importance of Adi Shankaracharya)

आदि शंकराचार्य का जन्म

आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) का जन्म 11 मई, 788 ईस्वी को कोच्चि, केरल के पास कलाड़ी नामक स्थान पर हुआ था। ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। 33 वर्ष की उम्र में इन्होने केदारनाथ में समाधि ली।

आदि शंकराचार्य की कार्य

उन्होंने अद्वैतवाद के सिद्धांत को प्रतिपादित किया और संस्कृत में वैदिक सिद्धांत (उपनिषद, ब्रह्म सूत्र और भगवद गीता) पर कई टिप्पणियाँ लिखीं। वे बौद्ध दार्शनिकों के विरोधी थे। उन्होंने भारत में उस समय हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने के लिये प्रयास किये जब बौद्ध धर्म लोकप्रियता प्राप्त कर रहा था। सनातन धर्म के प्रचार के लिये उन्होंने शिंगेरी, पुरी, द्वारका और बद्रीनाथ में भारत के चारों कोनों पर चार मठों की स्थापना की।

अद्वैत वेदांत दर्शन

यह भारतीय वेदान्त दर्शन का एक भाग है। इसके मतानुसार जगत्‌ मिथ्या है। जिस प्रकार स्वप्न झूठे होते हैं तथा अँधेरे में रस्सी को देखकर सांप का भ्रम होता है, उसी प्रकार इस भ्रान्ति, अविद्या, अज्ञान के कारण ही जीव, इस मिथ्या संसार को सत्य मान रहा है। वास्तव में न कोई संसार की उत्पत्ति, न प्रलय, न कोई साधक, न कोई मुमुक्षु (मुक्ति) चाहने वाला है, केवल ब्रह्मा ही सत्य है और कुछ नहीं।

बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यहां के मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने वहां अपने लोगों को बसाया। उनके द्वारा स्थापित परिवारों के वंशज – परंपरागत रूप से, नंबूदिरी – मंदिर में पुजारी हैं। कलाड़ी से बद्रीनाथ तक पैदल दूरी तीन हजार किलोमीटर से भी ज्यादा है। आदि शंकर इतनी दूर यात्रा किये।

माता के लिए किये पग यात्रा

जब आदिशंकर (Adi Shankaracharya) उत्तर में थे, तो उन्हें अचानक पता चला कि उनकी माँ मर रही है। बारह साल की उम्र में, उनकी माँ ने उन्हें संन्यास लेने की अनुमति दी थी जब उन्होंने उनसे वादा किया था कि वह उनकी मृत्यु के समय उनके साथ रहेंगे। इसलिए जब उन्हें पता चला कि उनकी माँ बीमार है, तो वह केरल वापस चले गये ताकि वह उसकी मृत्युशय्या के पास उसके साथ रहे। उन्होंने अपनी माँ के साथ कुछ दिन बिताए और उसकी मृत्यु के बाद, वे फिर से उत्तर की ओर चले गये।

आदि शंकराचार्य की समाधी

आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) अपनी संस्कृति, अपने ब्राह्मणवादी जीवन शैली और अपने वैदिक ज्ञान में बहुत लीन हो गए थे। एक बार, वह एक मंदिर में प्रवेश कर रहे थे और कोई दूसरा व्यक्ति मंदिर से बाहर निकल रहा था। वह व्यक्ति निम्न जाति का था, लेकिन आदि शंकर एक ब्राह्मण थे।

आदि शंकराचारी ने इसे एक अपशगुन के रूप में देखा। उन्होंने कहा, “दूर हटो।” वह आदमी वहीं खड़ा हो गया और बोला, “मुझे हटना होगा या मेरे शरीर को?” उसने इतना ही पूछा। उसका इस सवाल ने उन्हें अन्दर से झकझोर दिया, और वह आखिरी दिन था जब उन्होंने किसी से बात किया था। इस घटना के बाद उन्होंने कभी कोई अन्य शिक्षा नहीं दी। वे सीधे हिमालय चले गए।

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