आपातकालीन प्रावधान क्या है? परिभाषा, प्रकार, आलोचना

संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधान उल्लिखित हैं। ये प्रावधान केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम बनाते हैं। संविधान में इन प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है।

आपातकालीन प्रावधान

आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है तथा सभी राज्य, केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं। ये संविधान में औपचारिक संशोधन किए बिना ही संघीय ढांचे को एकात्मक ढांचे में परिवर्तित कर देते हैं। सामान्य समय में राजनैतिक व्यवस्था का संघीय स्वरूप से आपातकाल में एकात्मक स्वरूप में इस प्रकार का परिवर्तन भारतीय संविधान की अद्वितीय विशेषता है।

इस परिप्रेक्ष्य में डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि: “अमेरिका सहित सभी संघीय व्यवस्थाएं, संघवाद के एक कड़े स्वरूप में हैं। किसी भी परिस्थिति में ये अपना स्वरूप और आकार परिवर्तित नहीं कर सकते। दूसरी ओर भारत का संविधान, समय एवं परिस्थिति के अनुसार एकात्मक व संघीय दोनों प्रकार का हो सकता है।

यह इस प्रकार निर्मित किया गया है कि सामान्यतः यह संघीय व्यवस्था के अनुरूप कार्य करता है परंतु आपातकाल में यह एकात्मक व्यवस्था के रूप में कार्य करता है।”

संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल को निर्दिष्ट किया गया है:

1. राष्ट्रीय आपातकाल

युद्ध , बाह्य आक्रमण और सशस्त्र विद्रोह’ के कारण आपातकाल (अनुच्छेद 352), को ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ के नाम से जाना जाता है। किंतु संविधान ने इस प्रकार के आपातकाल के लिए ‘आपातकाल की घोषणा’ वाक्य का प्रयोग किया है।

2. राष्ट्रपति शासन

राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण आपातकाल को राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के नाम से जाना जाता है। इसे दो अन्य नामों से भी जाना जाता है-राज्य आपातकाल अथवा संवैधानिक आपातकाल। किंतु संविधान ने इस स्थिति के लिए आपातकाल शब्द का प्रयोग नहीं किया है।

3. वित्तीय आपातकाल

भारत की वित्तीय स्थायित्व अथवा साख के खतरे के कारण अधिरोपित आपातकाल, वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) कहा जाता है।

आपातकालीन प्रावधानों की आलोचना

संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने संविधान में आपातकालीन प्रावधानों के संसर्ग की निम्न आधार पर आलोचना की:

  • संविधान का संघीय प्रभाव नष्ट होगा तथा केंद्र सर्वशक्तिमान बन जाएगा।
  • राज्यों की शक्तियां (एकल एवं संघीय दोनों) पूरी तरह से केंद्रीय प्रबंधन के हाथ में आ जाएंगी।
  • राष्ट्रपति ही तानाशाह बन जाएगा।
  • राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता निरर्थक हो जाएंगी।
  • मूल अधिकार अर्थहीन हो जाएंगे और परिणामस्वरूप संविधान की प्रजातंत्रीय आधारशिला नष्ट हो जाएगी।

अत: एच.वी. कामथ ने मत प्रकट किया कि, “मुझे डर है कि इस एकल अध्याय द्वारा हम एक ऐसे संपूर्ण राज्य की नींव डाल रहे हैं जो एक पुलिस राज्य, एक ऐसा राज्य जो उन सभी सिद्धांतों और आदर्शों का पूर्ण विरोध करता है जिसके लिए हम पिछले दशकों में लडते रहें।”

डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भी संविधान सभा में आपातकालीन प्रावधानों के बचाव में उनके दुरुपयोग की संभावनाओं को व्यक्त किया। उन्होंने कहा, मैं पूर्ण रूप से इनकार नहीं करता कि इन अनुच्छेदों का दुरुपयोग अथवा राजनैतिक उद्देश्य के लिए इनके प्रयोग की संभावना है।”

आपातकालीन प्रावधान प्रावधान संबंधी अनुच्छेद : एक नजर में

अनुच्छेदविषय-वस्तु
352आपातकाल की घोषणा।
353आपातकाल लागू होने के प्रभाव।
354आपातकाल की घोषणा जारी रहते राजस्व के वितरण से संबंधित प्रावधानों का लागू होना।
355राज्यों की बाहरी आक्रमण तथा आतरिक अव्यवस्था से सुरक्षा संबंधी संघ के कर्तव्य।
356राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति संबंधी प्रावधान।
357अनुच्छेद 356 के अंतर्गत जारी घोषणा के बाद विधायी शक्तियों का प्रयोग।
358आपातकाल में अनुच्छेद 19 के प्रावधानों का स्थगन।
359आपातकाल में भाग III में प्रदत्त अधिकारों को लागू करना, स्थगित रखना।
359-Aइस भाग को पंजाब राज्य पर भी लागू करना (निरस्त)।
360वित्तीय आपातकाल संबंधी प्रावधान।

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