अंतरराज्यीय जल विवाद क्या है? कारण, चुनौतियाँ, अधिनियम, न्यायाधिकरण

अंतरराज्यीय जल विवाद क्या है?

दो राज्यों के बीच नदी जल के उपयोग के लिए उत्पन्न विवाद ही अंतरराज्यीय जल विवाद कहलाता है। देश की अधिकांश नदियां एक से अधिक राज्यों से होकर प्रवाहित होती है। अतः, प्रत्येक राज्य अपनी सीमा क्षेत्र के अंतर्गत बहने वाली नदियों के जल का अधिकतम उपयोग करना चाहता है। इससे ही अंतराज्यीय जल-विवाद उत्पन्न होती है।

अंतरराज्यीय जल विवाद के कारण क्या है?

  • जनसंख्या की तीव्र वृद्धि
  • कृषि विकास,
  • शहरीकरण,
  • औद्योगीकरण आदि के कारण जल की मांग में लगातार वृद्धि

नदी जल विवादों से उत्पन्न प्रमुख चुनौतियाँ

  • राज्यों के आपसी संबंधों में तनाव उत्पन्न
  • जल संसाधनों की साझेदारी के संदर्भ में क्षेत्रीय असंतुलन
  • राजनीतिक आंदोलनों के कारण क्षेत्रवाद और अलगाववादी भावनाएँ पनपती हैं जो भारत की एकता और अखंडता के लिये घातक हैं।
  • नदीय जल पर निर्भर लोगों की आजीविका प्रभावित होती है।
  • हिंसक आंदोलनों से कानून व्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं तथा लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है।

अंतरराज्यीय जल विवाद न्यायाधिकरण

संविधान का अनुच्छेद- 262 अंतरराज्यीय जल विवादों के न्याय व निर्णय से संबंधित है।

इसमें दो प्रावधान हैं:

  • संसद कानून बनाकर अंतर्राज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के जल के प्रयोग, बंटवारे तथा नियंत्रण से संबंधित किसी विवाद पर शिकायत का न्यायनिर्णयन कर सकती है।
  • संसद यह भी व्यवस्था कर सकती है कि ऐसे किसी विवाद में न ही उच्चतम न्यायालय तथा न ही कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करे।

इस प्रावधान के अधीन संसद ने दो कानून बनाए

  • नदी बोर्ड आधनियम (1956) तथा
  • अंतर्रज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956)

नदी बोर्ड अधिनियम

अंतर्रज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के नियंत्रण तथा विकास के लिए नदी बोर्डों की स्थापना हेतु बनाया गया। नदी बोर्ड की स्थापना संबंधित राज्यों के निवेदन पर केंद्र सरकार द्वारा उन्हें सलाह देने हेतु की जाती है।

अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम

केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदी अथवा नदी घाटी के जल के संबंध में दो अथवा अधिक राज्यों के मध्य विवाद के न्यायनिर्णयन हेत्‌ एक अस्थायी न्यायालय क गठन की शक्ति प्रदान करता है।

  • न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम तथा विवाद से संबंधित सभी पक्षों के लिए मान्य होता है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत कोई भी जल विवाद जो ऐसे किसी न्यायाधिकरण क अधीन हो वह उच्चतम न्यायालय अथवा किसी दूसरे न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है।

अंतर्रज्यीय जल विवाद के निपटारे के लिए अतिरिक्त न्यायिक तंत्र की आवश्यकता इस प्रकार है:

यदि जल विवादों से विधिक अधिकार या हित जुड़े हुये हैं तो उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार है कि वह राज्यों के मध्य जल विवादों की स्थिति में उनसे जुड़े मामलों की सुनवाई कर सकता है। लेकिन इस संबंध में विश्व के विभिन्न देशों में यह अनुभव किया गया है कि जब जल विवादों में निजी हित सामने आ जाते हैं तो मुद्दे का संतोषजनक समाधान नहीं हो पाता है।”

अब तक (2016) केंद्र सरकार आठ अंतर्राज्यीय जल विवाद न्यायाधिकरणों का गठन कर चुकी है।

अब तक गठित अंतर्राज्यीय जल विवाद न्यायाधिकरण

क्र.स.नामस्थापना वर्षसम्बंधित राज्य
1.कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-I1969महाराष्ट्र कर्नाटक एवं आध्र प्रदेश
2.गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण1969महाराष्ट्र कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा
3.नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण1969राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र
4.रावी तथा व्यास जल विवाद न्यायाधिकरण1986पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान
5.कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण1990कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु एवं पुडुचेरी
6.कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II2004महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश
7.वंशधार जल विवाद न्यायाधिकरण2010ओडीशा एवं आंध्र प्रदेश
8.महादायी जल विवाद न्यायाधिकरण2010गोवा, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र
9.महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण2018ओडीशा और छत्तीसगढ़

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