अंतरराज्यीय परिषद क्या है? स्थापना, समिति, कार्य, बैठक

अनुच्छेद 263 राज्यों के मध्य तथा केंद्र तथा राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अंतरराज्यीय परिषद के गठन की व्यवस्था करता है।

अंतरराज्यीय परिषद क्या है?

राष्ट्रपति यदि किसी समय यह महसूस करे कि अंतरराज्यीय परिषद का गठन सार्वजनिक हित में है तो वह ऐसी परिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति ऐसी परिषद के कर्तव्यों, इसके संगठन और प्रक्रिया को परिभाषित (निर्धारित) कर सकता है।

यद्यपि राष्ट्रपति को अंतर्राज्यीय परिषद के कर्तव्यों के निर्धारण की शक्ति प्राप्त है; तथापि अनुच्छेद 203 निम्नानुसार इसके कर्तव्यों को उल्लेख करता है:

  • राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों की जांच करना तथा ऐसे विवादों पर सलाह देना।
  • उन विषयों पर, जिनमें राज्यों अथवा केंद्र तथा राज्यों का समान हित हो, अन्वेषण तथा विचार-विमर्श करना।
  • ऐसे विषयों तथा विशेष तौर पर नीति तथा इसके क्रियान्वयन में बेहतर समन्वय के लिए संस्तुति करना।

परिषद के अंतर्राज्यीय विवादों पर जांच करने तथा सलाह देने के कार्य उच्चतम न्यायालय के अनुच्छेद (131) के अंतर्गत सरकारों के मध्य कानूनी विवादों के निर्णय के अधिकार क्षेत्र के सम्पूरक हैं। परिषद किसी विवाद, चाहे कानूनी अथवा गैर-कानूनी, का निष्पादन कर सकती है, किंतु इसका कार्य सलाहकारी है न कि न्यायालय की तरह अनिवार्य रूप से मान्य निर्णय।’

अनुच्छेद 263 के उपरोक्त उपबंधों के अंतर्गत राष्ट्रपति संबंधित विषयों पर नीतियों तथा उनके क्रियान्वयन में बेहतर समन्वय के लिए निम्न परिषदों का गठन कर चुका है:

  • केंद्रीय स्वास्थ्य परिषद।
  • केंद्रीय स्थानीय सरकार परिषद’।
  • बिक्री कर हेतु उत्तरी, पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी क्षेत्रों के लिए चार क्षेत्रीय परिषदें।

अंतरराज्यीय परिषद की स्थापना

केंद्र तथा राज्य संबंधों से संबंधित सरकारिया आयोग (1983-88) ने संविधान के अनुच्छेद 263 के अंतर्गत नियमित अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना के लिए सशक्त सुझाव दिए। इसने संस्तुति की कि अंतर्रज्यीय परिषद को इसी अनुच्छेद 261 के अधीन बनी अन्य संस्थाओं से करने के लिए इसे अतसरकारी परिषद कहना आवश्यक है।

सरकारिया आयोग की उपरोक्त सिफारिशों को मानते हुए; वी. पो. सिह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार ने 1990 में अंतर परिषद्‌ का गठन किया। इसमें निम्न सदस्य थे:

  • अध्यक्ष-प्रधानमंत्री।
  • सभी राज्यों के मुख्यमंत्री।
  • विधानसभा वाले केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री।
  • उन केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासक जहां विधानसभा नहीं
  • राष्ट्रपति शासन वाले राज्यों के राज्यपाल
  • प्रधानमंत्री द्वारा नामित छह केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (गृह मंत्री सहित)।

परिषद के अध्यक्ष (प्रधानमंत्री) द्वारा निमित पांच कैबिनेट मंत्री राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) परिषद के स्थायी आत्रित सदस्य होते हैं।

यह परिषद अंतर्राज्यीय केंद्र-राज्य तथा केंद्र-केन्द्र शासित प्रदेश से संबंधित विषयों पर संस्तुति करने वाला निकाय है।

इसका उद्देश्य ऐसे विषयों पर इनके मध्य परीक्षण, विचार-विमर्श तथा सलाह से समन्वय को बढ़ावा देना है।

विस्तारपूर्वक इसके कार्य निम्न हैं:

  • ऐसे विषयों पर अन्वेषण तथा विचार-विमर्श करना, जिनमें राज्यों अथवा केंद्र के साझा हित निहित हों;
  • इन विषय पर नीति तथा इसके क्रियान्वयन में बेहतर समन्वय के लिए संस्तुति करना, तथा;
  • ऐसे विषयों पर विचार-विमर्श करना जो राज्यों के सामान्य हित में हों और अध्यक्ष द्वारा इसे सौपे गए हो।

परिषद्‌ की एक वर्ष में कम-से-कम तीन बैठकें होनी चाहिए। इसकी बैठक पारदर्शी होती है; तथा प्रश्नों पर निर्णय एकमत से होता है।

अंतर्राज्यीय परिषद्‌ की स्थायी समिति

परिषद्‌ की एक स्थायी समिति भी होती है । इसकी स्थापना 1996 परिषद्‌ के विचारार्थ मामलो पर सतत्‌ चर्चा के लिए की गई थी । इसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं:

  • केन्द्रीय गृहमंत्री, अध्यक्ष के रूप में
  • पांच केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री
  • नौ मुख्यमंत्री

परिषद के सहायतार्थ एक सचिवालय होता है जिसे अन्तर-राज्य परिषद सचिवालय कहा जाता है। इसकी स्थापना 1991 में की गई की और इसका प्रमुख भारत सरकार का एक सचिव होता है। 2011 यह सचिवालय क्षेत्रीय परिषदों के सचिवालय के रूप में भी कार्य कर रहा है।

लोक अधिनियम, दस्तावेज तथा न्यायिक प्रक्रियाएं

संविधान के अनुसार, प्रत्येक राज्य का अधिकार क्षेत्र उसके अपने राज्य क्षेत्र तक ही सीमित है। अत: यह संभव है कि एक राज्य के कानून और दस्तावेज दूसरे राज्यों में अमान्य हों। ऐसी परेशानियों को दूर करने के लिए संविधान में पूर्ण विश्वास तथा साख’ उप-वाक्य है, जो इस प्रकार वर्णित है:

1. लोक अधिनियमों, दस्तावेजों तथा न्यायिक प्रक्रियाओं को संपूर्ण भारत में पूर्ण विश्वास

  • केंद्र तथा प्रत्येक राज्य के लोक अधिनियमों, दस्तावेजों तथा न्यायिक प्रक्रियाओं को संपूर्ण भारत में पूर्ण विश्वास तथा साख प्रदान की गई है।
  • लोक अधिनियम में सरकार के विधायी तथा कार्यकारी दोनों कानून निहित हैं।
  • सार्वजनिक दस्तावेज में कोई आधिकारिक पुस्तक, रजिस्टर अथवा किसी लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कार्यो के निर्वाह में बनाए गए दस्तावेज शामिल हैं।

2. अधिनियम, रिकॉर्ड तथा कार्यवाहियां संसद नियम बनाकर द्वारा पारित

ऐसे अधिनियम, रिकॉर्ड तथा कार्यवाहियां जिस प्रकार और जिन परिस्थितियों में सिद्ध की जाती हैं तथा उनके प्रभाव का निर्धारण किया जाता है, संसद द्वारा नियम बनाकर प्रदान की जाएंगी। इसका अर्थ हैं कि उपरोक्त वर्णित सामान्य नियम के प्रमाण को प्रस्तुत करने तथा ऐसे अधिनियम, रिकॉर्ड तथा कार्यवाही का, एक राज्य का दूसरे राज्य पर प्रभाव, संसद के विशेषाधिकार से संबंधित है।

3. दीवानी न्यायालय की आज्ञा

भारत के किसी भी भाग में दीवानी न्यायालय की आज्ञा तथा अंतिम निर्णय प्रभावी होगा (इस न्यायिक निर्णय पर बिना किसी नए मुकदमे की आवश्यकता के)। यह नियम केवल दीवानी निर्णय पर लागू होता है तथा फौजदारी निर्णयों पर लागू नहीं होता। दूसरे शब्दों में, किसी राज्य के न्यायालयों को दूसरे राज्य के दंड के नियमों को क्रियान्वित करने की आवश्यकता नहीं है।

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