वित्तीय आपातकाल क्या है? सांसद द्वारा अनुमोदन और प्रभाव

अनुच्छेद 360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने की शक्ति प्रदान करता है, यदि वह संतुष्ट हो कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें भारत अथवा उसके किसी क्षेत्र की वित्तीय स्थिति अथवा प्रत्यय खतरे में हो।

वित्तीय आपातकाल

38 संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 में कहा गया कि राष्ट्रपति की वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने की संतुष्टि अंतिम और निर्णायक है तथा किसी भी न्यायालय में किसी भी आधार पर प्रश्नयोग्य नहीं है। परंतु 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 में इस प्रावधान को समाप्त कर यह कहा गया कि राष्ट्रपति की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है।

संसदीय अनुमोदन एव समयावधि

वित्तीय आपात की घोषणा को, घोषित तिथि के दो माह के भीतर संसद की स्वीकृति मिलना अनिवार्य है। यदि वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने के दौरान यदि लोकसभा विघटित हो जाए अथवा दो माह के भीतर इसे मंजूर करने से पूर्व लोकसभा विघटित हो जाए तो यह घोषणा पुनर्गठित लोकसभा की प्रथम बैठक के बाद तीस दिनों तक प्रभावी रहेगी, परंतु इस अवधि में इसे राज्यसभा की मजूरी मिलना आवश्यक है।

एक बार यदि संसद के दोनों सदनों से इसे मंजूरी प्राप्त हो जाए तो वित्तीय आपात अनिश्चित काल के लिए तब तब प्रभावी रहेगा जब तक इसे वापस न लिया जाए। यह दो बातों को इंगित करता है:

  • इसकी अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है और
  • इसे जारी रखने के लिए संसद की पुन: मंजूरी आवश्यक नहीं है

वित्तीय आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देने वाला प्रस्ताव, संसद के किसी भी सदन द्वारा सामान्य बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता है अर्थात सदन में उपस्थित सदस्यों की उपस्थिति एवं मतदान का बहुमत।

राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय एक अनुवर्ती घोषणा द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा वापस ली जा सकती है। ऐसी घोषणा को किसी संसदीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।

वित्तीय आपातकाल के प्रभाव

वित्तीय आपात की परवर्ती घटनाएं निम्न प्रकार हैं:

1. केन्द्र की कार्यकारी शक्ति इस सीमा तक विस्तारित होती है कि वह

  • किसी राज्य को वित्तीय औचित्य के सिद्धांत का पालन करने को निदेशित कर सकता है, जैसा कि निदेश में विनिर्दिष्ट है तथा
  • अन्य निदेश जैसा कि किसी राज्य को जारी करना राष्ट्रपति उपयुक्त एवं आवश्यक समझें, जारी कर सकता है।

2. ऐसे किसी भी निर्देश में इन प्रावधानों का उल्लेख हो सकता है-

  • राज्य की सेवा में किसी भी अथवा सभी वर्गों के सेवकों की वेतन एवं भत्तों में कटोती।
  • राज्य विधायिका द्वारा पारित कर राष्ट्रपति के विचार हेतु लाए गए सभी धन विधेयकों अथवा अन्य वित्तीय विधेयकों को आरक्षित रखना।

3. राष्ट्रपति वेतन एवं भत्तों में कटौती हेतु निर्देश जारी कर सकता है-

  • केंद्र की सेवा में लगे सभी अथवा किसी भी श्रेणी के व्यक्तियों को और
  • उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की।

अत: वित्तीय आपातकाल की अवधि में राज्य के सभी वित्तीय मामलों में केंद्र का नियंत्रण हो जाता है। संविधान सभा के एक सदस्य एच.एन. कुंजरू ने कहा कि वित्तीय आपात राज्य की वित्तीय संप्रभुता के लिए एक गंभीर खतरा है।

यह अनुच्छेद न्यूनाधिक रूप से 1933 में पारित संयुक्त राष्ट्र के ‘राष्ट्रीय रिकवरी कानून’ कहे जाने वाले ढांचे की तरह है, जिसने राष्ट्रपति को आर्थिक एवं वित्तीय दोनों तरह की परेशानियों को समाप्त क लिए समान प्रावधान बनाने की शक्ति दी। इसने अति शक्तिहीनता के परिणामस्वरूप अमेरिकी लोगों को पीछे छोड़ा।” – डॉ. बी.आर. अंबेडकर

अब तक वित्तीय संकट घोषित नहीं हुआ है। यद्यपि 1991 में वित्तीय संकट आया था।

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