अंतर्राज्यीय व्यापार तथा वाणिज्य से सम्बंधित नियम क्या है?

सविधान के भाग XIII के अनुच्छेद 301 से 307 में भारतीय क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य तथा समागम (अंतर्राज्यीय व्यापार तथा वाणिज्य) का वर्णन है। इस प्रावधान का उद्देश्य राज्यों के मध्य सीमा अवरोधों को हटाना तथा देश में व्यापार, वाणिज्य तथा समागम के अबाध प्रवाह को प्रोत्साहित करने हेतु एक इकाई बनाना है।

अंतरराज्यीय परिषद क्या है? स्थापना, समिति, कार्य, बैठक

अनुच्छेद 263 राज्यों के मध्य तथा केंद्र तथा राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अंतरराज्यीय परिषद के गठन की व्यवस्था करता है। राष्ट्रपति ऐसी परिषद के कर्तव्यों, इसके संगठन और प्रक्रिया को परिभाषित (निर्धारित) कर सकता है।

अंतरराज्यीय जल विवाद क्या है? कारण, चुनौतियाँ, अधिनियम, न्यायाधिकरण

देश की अधिकांश नदियां एक से अधिक राज्यों से होकर प्रवाहित होती है। अतः, प्रत्येक राज्य अपनी सीमा क्षेत्र के अंतर्गत बहने वाली नदियों के जल का अधिकतम उपयोग करना चाहता है। इससे ही अंतराज्यीय जल-विवाद उत्पन्न होती है।

अंतर्राज्यीय संबंध क्या है? सम्बंधित अनुच्छेद

भारतीय संघीय व्यवस्था की सफलता मात्र केंद्र तथा राज्यों के सौहार्दपर्ण संबंधों तथा घनिष्ठ सहभागिता पर ही नहीं अपित राज्यों के अंतर्सबंधों (अंतर्राज्यीय संबंध) पर भी निर्भर करती है।

पुंछी आयोग क्या है? इसके कार्य और अनुशंसाएं

अप्रैल 2007 में केंद्र सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा के लिये उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुंछी की अध्यक्षता में एक आयोग पुंछी आयोग का गठन किया।”

सरकारिया आयोग किससे संबंधित है? इसके सिफारिशें क्या थी

1983 में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय क सेवानिवृत्त न्यायाधीश आर. एस. सरकारिया की अध्यक्षता में केंद्र-राज्य संबंधों पर एक तीन सदस्यीय आयोग सरकारिया आयोग का गठन किया। वह केंद्र और सरकार के बीच सभी व्यवस्थाओं व कार्य पद्धतियों का परीक्षण करे

पश्चिम बंगाल माण पत्र क्या था? इसकी सिफारिशें क्या थी

1977 में पश्चिम बगाल सरकार (जिसका नेतृत्व साम्यवादियों के हाथीं में था) ने केंद्र राज्य संबंध पर एक स्मरण पत्र या मेमोरेंडम प्रकाशित किया जिसे पश्चिम बंगाल माण पत्र के नाम से जाना जाता है।

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव क्या है? यह प्रस्ताव कब पारित हुआ

1973 में, अकाली दल पंजाब के आनंदपुर साहिब में हुयी एक बैठक में राज्यों की धार्मिक एवं राजनैतिक मांगोके संबंध में एक प्रस्ताव को स्वीकृति दी। जिसे आनंदपुर साहिब प्रस्ताव कहा जाता है।