स्वामीनाथन आयोग के मुद्दों व सिफ़ारिशे

खाद्यान्न की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने और किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के उद्देश्य से 2004 में केंद्र सरकार ने एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग (National Commission on Farmers) का गठन किया। इस राष्ट्रीय किसान आयोग को स्वामीनाथन आयोग के नाम से जाना जाता है।

स्वामीनाथन आयोग ने दिसंबर 2004, अगस्त 2005, दिसंबर 2005 और अप्रैल 2006 में क्रमशः चार रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद राष्ट्रीय किसान आयोग ने 4 अक्तूबर, 2006 को अपनी पाँचवीं और अंतिम रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट में जो सिफारिशें की गयी हैं; उन्हें अभी तक पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया है।

स्वामीनाथन आयोग को विचार करने के प्रमुख मुद्दों

स्वामी नाथन आयोग को निम्नलिखित प्रमुख मुद्दों पर विचार करने के लिए कहा गया था-

  1. सभी को सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए एक ऐसी रणनीति बनाना; जिससे कि देश में खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ाया जा सके।
  2. देश में कृषि की उत्पादकता, लाभप्रदता में वृद्धि करना
  3. सभी किसानों के लिए ऋण की उपलब्धता बढ़ाना
  4. शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों, पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में किसानों के लिए विशेष कार्यक्रमों का सुझाव
  5. कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने और लागत को कम करने के उपाय सुझाना; ताकि उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके
  6. किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए उपाय सुझाना

स्वामीनाथन आयोग की प्रमुख सिफ़ारिशे

  • भूमि सुधार
  • सिंचाई सुधार
  • कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर जोर
  • किसानों के लिए सस्ता कर्ज
  • किसानों की आत्महत्या की रोकथाम
  • जैव संसाधनों को विकसित करना
  • फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य
  • वित्त और बीमा
  • रोजगार

1. भूमि सुधार

आजादी के समय से ही देश में भूमि का आवंटन बहुत असमान था; देश में गरीबी स्तर के 50% लोगों के पास कुल भूमि का केवल 3% हिस्सा ही था जबकि और ऊपर के 10% अमीरों का देश की 54% भूमि पर अधिकार था। स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि अतिरिक्त और बेकार जमीन को भूमिहीनों में बाटनें के साथ आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने का हक दिया जाना चाहिए।

2. सिंचाई सुधार

भारत में कुल बुबाई योग्य भूमि (लगभग 192 मिलियन हेक्टेयर) का लगभग 60% भाग अभी भी सिंचाई के लिए वर्षा पर निर्भर करता है। पूरे भारत में अभी भी लगभग 35% भूमि के लिए ही नियमित सिंचाई की सुविधा उपलब्घ है।

समिति आयोग ने सलाह दी थी कि सिंचाई के पानी की उपलब्धता सभी किसानों के पास होनी चाहिए। इसके साथ ही पानी की आपूर्ति और वर्षा-जल के संचय पर भी जोर दिया गया जाना चाहिए। समिति आयोग ने पानी के स्तर को सुधारने पर जोर देने के साथ ही ‘कुआं शोध कार्यक्रम’ शुरू करने की बात भी कही थी। इसके अलावा “मिलियन वेल्स रिचार्ज स्कीम” को निजी क्षेत्र के माध्यम से विकसित करने की सिफ़ारिश आयोग ने की थी।

3. कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर जोर

भारत में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारत में धान की प्रति हेक्टेयर उत्पादन औसतन 30 कु./हेक्टेयर है जबकि जापान में 64 कु./हेक्टेयर, दक्षिण अफ्रीका में 66 कु./हेक्टेयर और चीन में 63 कु./हेक्टेयर है। इसी प्रकार भारत में मक्के की उत्पादकता 16.6 कु./हेक्टेयर है जबकि चीन में 48.8 कु./हेक्टेयर, दक्षिण अफ्रीका में 84 कु./हेक्टेयर है।

आयोग की सिफ़ारिश है कि कृषि क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास पर ज्यादा ध्यान देने के जरूरत है। इसके साथ ही आयोग ने कहा था कि कृषि से जुड़े कार्यों जैसे सिंचाई, जल-निकासी, भूमि सुधार, जल संरक्षण और सड़कों एवं कनेक्टिविटी को बढ़ाने के साथ शोध से जुड़े कार्यों में ‘जन सहभागिता’ को बढ़ाए जाने की जरूरत है।

4. किसानों के लिए सस्ता कर्ज

ऋण किसान को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले सबसे बड़े कारणों में से एक है। इसलिए सरकार द्वारा किसानों को समय पर जरुरत के हिसाब से ऋण देने की सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए।

इस संदर्भ में आयोग ने कहा कि:

  • फसल ऋण के लिए 4 प्रतिशत की आसान दर पर ऋण की सुविधा उपलब्ध करायी जानी चाहिए। कृषि ऋण की गरीबों और जरुरत मंदों तक पहुँच सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • इसके अलावा लगातार प्राकृतिक आपदाओं के बाद किसानों को राहत प्रदान करने के लिए कृषि जोखिम कोष स्थापित किया जाना चाहिए।
  • आपदाओं के दौरान किसानों को ऋण बसूली में छूट और सरकार की ओर से ऋण पर ब्याज की छूट की सुविधा दी जानी चाहिए।

5. किसानों की आत्महत्या की रोकथाम

किसानों की आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए उन्हें किफायती स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जाना चाहिए और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाओं को ठीक किया जाना चाहिए, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को प्राथमिकता के आधार पर उन इलाकों में और सक्रीय रूप से लागू किया जाना चाहिए जिन इलाकों में किसान आत्महत्या की घटनाएँ ज्यादा हो रहीं हैं।

  • किसान की समस्याओं को ठीक से समझने के लिए राज्य स्तरीय किसान आयोग की स्थापना की जानी चाहिए; जिनमें किसानों के भी शामिल किया जाना चाहिए।
  • किसानों को कृषि के अलावा अन्य साधनों जैसे पशुपालन इत्यादि के द्वारा धनार्जन के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
  • वृद्धावस्था पेंशन और स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान ठीक से लागू किया जाना चाहिए; ताकि किसानों में सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा ना हो।

6. जैव संसाधनों को विकसित करना

भारत में ग्रामीण लोग अपने पोषण और आजीविका सुरक्षा के लिए जैव संसाधनों की एक विस्तृत श्रृंखला पर निर्भर करते हैं। इसलिए आयोग ने इस दिशा में सुधार करने की कई सिफ़ारिशे की हैं। आयोग के अनुसार;

  • जैव विविधता तक पहुंच के पारंपरिक अधिकारों को संरक्षित किया जाना चाहिए, जिसमें गैर-काष्ठीय वन उत्पादों तक पहुंच के साथ औषधीय पौधों, तेल पैदा करने वाले पौधे और लाभकारी सूक्ष्म जीव शामिल हैं।
  • ब्रीडिंग के माध्यम से खेती के लिए उन्नत जानवर पैदा करना साथ ही मछली पालन और मधुमक्खी पालन जैसी कृषि सम्बंधित क्रियाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

7. फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य

आयोग ने उत्पादन लागत से 1.5 गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की सिफारिशें की थी। इस संदर्भ में आयोग ने कहा कि:

  • फ़सल उत्पादन मूल्य से पचास प्रतिशत ज़्यादा दाम किसानों को दिया जाना चाहिए।
  • किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज कम दामों में मुहैया कराए जाने चाहिए।
  • गांवों में किसानों की मदद के लिए विलेज नॉलेज सेंटर या ज्ञान चौपाल बनाए जाने चाहिए।

8. वित्त और बीमा

महिला किसानों के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड जारी किए जाने चाहिए। किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाया जाना चाहिए; ताकि प्राकृतिक आपदाओं के समय किसानों की मदद की जा सके।

9. रोजगार

भारत में धीरे-धीरे कार्यबल में संरचनात्मक परिवर्तन हो रहा है;। 1961 में, कुल कार्यबल का 75.9% कृषि क्षेत्र में संलग्न था। जबकि 1999-2000 में यह संख्या घटकर 59.9% हो गई;। हालांकि कृषि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सबसे महत्वपूर्ण साधन है।

भारत में समग्र रोजगार रणनीति के लिए दो चीजें आवश्यक हैं-

  • उत्पादक रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करना और
  • रोज़गार की गुणवत्ता में सुधार करना जैसे कि वास्तविक उत्पादकता में सुधार के साथ मज़दूरी में वृद्धि।

इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  • अर्थव्यवस्था का तीव्र विकास;
  • श्रम गहन क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत अधिक जोर देना और इन क्षेत्रों के तीव्र विकास पर ज़ोर देना;
  • श्रम मानकों को कम किए बिना ही श्रम बाजारों के कामकाज में सुधार के श्रम कानूनों में आवश्यक सुधार किया जाना।

व्यापार, रेस्तरां, परिवहन, निर्माण, मरम्मत और अन्य सेवाओं जैसे विशेष क्षेत्रों और उप-क्षेत्रों को विकसित करके गैर-कृषि रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहित किया जाना। किसानों की “नेट टेक होम इनकम” को सिविल सेवकों आय के बराबर लाने का प्रयास किया जाना चाहिए।

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