डी.के. बसु दिशानिर्देश क्या है?

सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी हिरासत और पूछताछ के बारे में पुलिस एवं अन्य संस्थाओं के लिए कुछ खास शर्त और प्रक्रियाएं तय की; इन नियमों को डी.के. बसु दिशानिर्देश कहा जाता है। इनमें से कुछ दिशानिर्देश इस प्रकार हैं-

डी.के. बसु दिशानिर्देश

  • गिरफ्तारी या जांच करने वाले पुलिस अधिकारी की पोशाक पर उसकी पहचान, नामपट्टी तथा पद स्पष्ट व सटीक रूप से अंकित होना चाहिए।
  • गिरफ्तारी के समय अरेस्ट मेमो के रूप में गिरफ्तारी संबंधी पूरी जानकारी का कागज़ तैयार किया जाए। उसमें गिरफ़्तारी के समय व तारीख का उल्लेख होना चाहिए। उसके सत्यापन के लिए कम से कम एक गवाह होना चाहिए। वह गिरफ़्तार सदस्य के परिवार का व्यक्ति भी हो सकता है; अरेस्ट मेमो पर गिरफ़्तार होने वाले व्यक्ति के दस्तखत होने चाहिए।
  • गिरफ्तार किए गए, हिरासत रखे गए या जिससे पूछताछ की जा रही है; ऐसे व्यक्ति को अपने किसी संबंधी या दोस्त या शुभचिंतक को जानकारी देने का अधिकार होता है।
  • जब गिरफ़्तार व्यक्ति का दोस्त या संबंधी उस जिले से बाहर रहता हो; तो गिरफ़्तारी के 8-12 घंटे के भीतर उसे गिरफ्तारी के समय, स्थान और हिरासत की जगह के बारे में जानकारी भेज दी जानी चाहिए।

संविधान के अनुच्छेद 22 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को एक वकील के जरिए अपना बचाव करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 39-ए में ऐसे नागरिकों को वकील मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्य के ऊपर सौंपी गई है; जो गरीबी या किसी और वजह से वकील नहीं रख सकते।

अनुच्छेद 22 और फ़ौजदारी कानून में नागरिक को प्राप्त मौलिक अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 22 और फ़ौजदारी कानून में प्रत्येक गिरफ़्तार व्यक्ति को निम्नलिखित मौलिक अधिकार दिए गए हैं:-

  • गिरफ़्तारी के समय उसे यह जानने का अधिकार है कि गिरफ़्तारी किस कारण से की जा रही है।
  • गिरफ़्तारी के 24 घंटों के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार।
  • पुलिस हिरासत में दिए गए इकबालिया बयान को आरोपी के खिलाफ़ सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
  • गिरफ़्तारी के दौरान या हिरासत में किसी भी तरह के दुर्व्यवहार या यातना से बचने का अधिकार।
  • 15 साल से कम उम्र के बालक और किसी भी महिला को केवल सवाल पूछने के लिए थाने में नहीं बुलाया जा सकता।

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