Political Science क्या है? और इसके approaches का वर्णन करें

Political Science हमारी दिनचर्या में शामिल होने वाले वह पद्धति है जो मानव को अपने समाज और अपने राज्य के बारे में अध्यनन में कराता है,और अपने राज्य व समाज के विकास में योगदान के लिए सहायक होता है। यह उन विचारों और नीतियों को व्य्वस्तिथ रूप को प्रतिबिंबित करता है, जिसने हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान में आकर ग्रहण किया है. यह हमारी स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र, और धर्मनिरपेक्षता जैसी अवधारणाओं का अर्थ से अवगत कराता है.

Political Science
Political Science

Political Science का अध्यनन एक विस्तृत विषय का क्षेत्र है, जिसमे हम राजनीतिक चिंतन, उनके राजनीतिक सिद्धान्त, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, संस्थागत या संरचनागत ढांचा, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठन, दर्शनशास्त्र, इतिहास, नीतिशास्त्र एवं विधिशास्त्र के अध्यनन करते है. 

Political Science के निर्माण व विकास में अनेक राजनीतिक विचारकों का योगदान रहा है यथा- प्लेटो, अरस्तू, सिसरो, सन्त अगस्टीन, एक्विनास, लॉक, रूसो, मॉन्टेस्क्यू, कान्ट, हीगल, ग्रीन आदि। आधुनिक युग में भी अनेक विद्वान परम्परागत दृष्टिकोण के समर्थक माने जाते है जैसे- लियो स्ट्रॉस, ऐरिक वोगोलिन, ऑकसॉट, हन्ना आरेण्ट आदि।  

Political Science के अर्थ एवं परिभाषा

Political शव्द यूनानी भाषा Polis शव्द से बना है जिसका अर्थ नगर अथवा राज्य होता है,जिससे इस हम हिंदी में राजनीती भी कहते है। प्राचीन यूनान में प्रत्येक नगर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में संगठित होता था और Politices शब्द से उन नगर राज्यों से सम्बंधित शासन की विद्या का बोध होता था।

महान यूनानी विचारक अरस्तु को Political Science का पितामह कहा जाता है।

अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक जीवन के समस्त आयाम (सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, राजनीतिक) उसकी जीवन शैली को सम्पन्न करते हैं। राजनीति इन सभी आयामों को समन्वित करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।

प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री ब्लुंशली के अनुसार “राजनीति शास्त्र (Political Science) वह विज्ञान है जिसका संबंध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्व क्या है, उसका आवश्यक स्वरूप क्या है, उसकी किन-किन विविध रूपों में अभिव्यक्ति होती है तथा उसका विकास कैसे हुआ।“

प्रोफेसर लास्की की अनुसार ‘‘राजनीति शास्त्र (Political Science) के अध्ययन का संबंध संगठित राज्यों से सम्बंधित मनुष्यों के जीवन से है।“

वही सर हरमन हेलर का मानना है “राजनीति शास्त्र (Political Science) के सर्वांगीण स्वरूप का निर्धारण उसकी मनुष्य विषयक मौलिक मान्यताओं द्वारा होता है।”  

अर्थात् हम कह सकते है कि राजनीतिक विज्ञानं “राजनीति विज्ञान (Political Science) एक ऐसा सामाजिक विज्ञान है जो हमें अपने अपने समाज अपने राज्य में सुचारू रूप से जीवन जीने के लिए उन सभी अधिकारों व हमारे कर्तव्यों का अध्यनन कराता है जो हमारे लिए व हमारे आने वाले पीढ़ियों के लिए उपयोगी हो। और जिसके अन्तर्गत इस तथ्य का भी अध्ययन किया जाता है कि किसी संगठित राजनीतिक समाज में स्वयं मनुष्य की स्थिति क्या है। राजनीति विज्ञान व्यक्ति के अधिकार व स्वतन्त्रताओं के अध्ययन के साथ समाज के विभिन्न समुदायों व वर्गों के प्रति सरकार की नीतियों का भी अध्ययन करता है।“

राजनीतिक सिद्धांत का दृष्टिकोण :- Political Science

हमने राजनीतिक विज्ञानं को अलग-अलग दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया है जो निम्न है:-

  • Traditional Approach – पारंपरिक दृष्टिकोण
  • Modern Approaches – आधुनिक दृष्टिकोण
  • Behavioral Approach – व्यवहार संबंधी दृष्टिकोण
  • Decision making Approach – निर्णायक दृष्टिकोण

1. राजनीतिक सिद्धांत का पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Approach of political theory) – ईसा पूर्व छठी सदी से 20वीं सदी में लगभग द्वितीय महायुद्ध से पूर्व तक जिस राजनीतिक दृष्टिकोण (political approach) का प्रचलन रहा है, उसे अध्ययन सुविधा की दृष्टि से ‘परम्परागत राजनीतिक दृष्टिकोण’ कहा जाता है। इसे आदर्शवादी या शास्त्रीय दृष्टिकोण भी कहा जाता है। प्राचीन यूनान व रोम में राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिये दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र, इतिहास व विधि की अवधारणाओं को आधार बनाया गया था किन्तु मध्यकाल में मुख्यतः ईसाई धर्मशास्त्रीय दृष्टिकोण को राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण का आधार बनाया गया। परम्परागत राजनीतिक दृष्टिकोण ने राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिये मुख्यतः दार्शनिक, तार्किक नैतिक, ऐतिहासिक व विधिक पद्धतियों को अपनाया है।

16वीं सदी में पुनर्जागरण आन्दोलन ने बौद्धिक राजनीतिक चेतना को जन्म दिया साथ ही राष्ट्र-राज्य अवधारणा को जन्म दिया। 18 वीं सदी की औद्योगिक क्रांति ने राजनीतिक सिद्धान्त के विकास को नई गति प्रदान की। 19वीं सदी से इसने विधिक, संवैधानिक, संस्थागत, विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों पर विशेष बल दिया है। 20वीं सदी के प्रारंभ से ही परम्परागत दृष्टिकोण ने राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिये एक नई दृष्टि अपनाई जो अतीत की तुलना में अधिक यथार्थवादी थी।

राजनीति में, जोर तथ्यों पर नहीं, बल्कि राजनीतिक घटना के नैतिक गुणों पर होना चाहिए। वैसे तो राजनीतिक सिद्धांत का पारंपरिक दृष्टिकोण ऐसे बहुत से छोटे दृष्टिकोण पर निर्भर है लेकिन हम कुछ ऐसे महत्वपूर्ण दृष्टिकोण के बारे में बात करते है.

  • Philosophical Approach: – दार्शनिक दृष्टिकोण
  • Historical Approach: – ऐतिहासिक दृष्टिकोण
  • Institutional Approach: – संस्थागत दृष्टिकोण
  • Legal Approach – कानूनी दृष्टिकोण

पारंपरिक दृष्टिकोण के लक्षण (Characteristics of Traditional approaches): –

  1. परंपरागत दृष्टिकोण राजनीति के मूल्यों पर काफी हद तक आदर्शवादी और तनावपूर्ण हैं।
  2. यह अवधारणा विभिन्न राजनीतिक संरचनाओं के अध्ययन पर है।
  3. पारंपरिक दृष्टिकोणों ने सिद्धांत और अनुसंधान से संबंधित बहुत कम प्रयास किए
  4. इन दृष्टिकोणों का मानना है कि चूंकि तथ्यों और मूल्यों में निकटता है, इसलिए राजनीति विज्ञान में अध्ययन कभी वैज्ञानिक नहीं हो सकता है।

विभिन्न प्रकार के पारंपरिक दृष्टिकोण:

1 .दार्शनिक दृष्टिकोण (Philosophical Approach)-  इस दृष्टिकोण को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में सबसे पुराना दृष्टिकोण माना जाता है। इस दृष्टिकोण का विकास प्लेटो और अरस्तू जैसे ग्रीक दार्शनिकों के समय पर हुआ था जिनमे लियो स्ट्रॉस नामक विचारक इस दृष्टिकोण के मुख्य समर्थक होते है। उन्होंने माना कि “philosophy ज्ञान और राजनीतिक दर्शन की खोज है। यह सही मायने में राजनीतिक चीजों की प्रकृति और सही या अच्छे राजनीतिक आदेश के बारे में जानने का प्रयास है।”इस दृष्टिकोण का उद्देश्य मौजूदा संस्थानों, कानूनों और नीतियों के महत्वपूर्ण मूल्यांकन के उद्देश्य से सही और गलत के मानक को विकसित करना है।

यह दृष्टिकोण सैद्धांतिक सिद्धांत पर आधारित है कि Values को राजनीति के अध्ययन से अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए, इसकी मुख्य चिंता यह है कि किसी भी राजनीतिक समाज में क्या अच्छा है या क्या बुरा है। यह मुख्य रूप से राजनीति का एक नैतिक और प्रामाणिक अध्ययन है और इसलिए यह एक आदर्शवादी दृष्टिकोण भी है। यह राज्य की प्रकृति और कार्यों, नागरिकता, अधिकारों और कर्तव्यों आदि की समस्याओं को संबोधित करता है। इस दृष्टिकोण के समर्थकों का मानना है कि राजनीतिक दर्शन राजनीतिक विश्वासों के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। इसलिए, उनका विचार है कि एक राजनीतिक वैज्ञानिक को अच्छे जीवन और अच्छे समाज का ज्ञान होना चाहिए।

2 .ऐतिहासिक दृष्टिकोण (Historical Approach) :- यह दृष्टिकोण इतिहास से संबंधित है और यह किसी भी स्थिति का विश्लेषण करने के लिए हर राजनीतिक वास्तविकता के इतिहास के अध्ययन पर जोर देता है। मैकियावेली, सबाइन और डायनिंग जैसे राजनीतिक विचारकों का मानना है कि राजनीति और इतिहास का निकट का संबंध होना जरुरी हैं और राजनीति का अध्ययन हमेशा एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण होना चाहिए। यह दृष्टिकोण दृढ़ता से इस विश्वास को बनाए रखता है कि हर राजनीतिक विचारक की सोच या हठधर्मिता आसपास के वातावरण से बनती है। इसके अलावा, इतिहास अतीत का विवरण प्रदान करता है और साथ ही साथ इसे वर्तमान घटनाओं से भी जोड़ता है। इतिहास हर राजनीतिक घटना का कालानुक्रमिक क्रम देता है और जिससे भविष्य में होने वाली घटनाओं का भी अनुमान लगाने में मदद मिलती है। लेकिन ऐतिहासिक दृष्टिकोण के आलोचकों का मानना है कि समकालीन विचारों और अवधारणाओं के संदर्भ में पिछले युगों के विचार को समझना संभव नहीं है।

3 .संस्थागत दृष्टिकोण (Institutional Approach) :- यह राजनीति विज्ञान का अध्ययन करने के लिए पारंपरिक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है। यह दृष्टिकोण मुख्य रूप से सरकार की औपचारिक विशेषताओं से संबंधित है और राजनीति राजनीतिक संस्थानों और संरचनाओं के अध्ययन को गति प्रदान करती है। इसलिए, Institutional Approach विधायिका, कार्यकारी, न्यायपालिका, राजनीतिक दलों और ब्याज समूहों जैसे औपचारिक संरचनाओं के अध्ययन से संबंधित है। इस दृष्टिकोण के समर्थकों में प्राचीन और आधुनिक दोनों political philosophers शामिल हैं। प्राचीन विचारकों में, अरस्तू की इस दृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका थी जबकि आधुनिक विचारकों में जेम्स ब्रायस, बेंटले, वाल्टर बैजहॉट, हेरोल्ड लास्की ने इस दृष्टिकोण को विकसित करने में योगदान दिया।

4 .कानूनी दृष्टिकोण (Legal Approach) :- यह दृष्टिकोण बताता है कि राज्य कानूनों के गठन और प्रवर्तन के लिए मौलिक संगठन है। इसलिए, यह दृष्टिकोण कानूनी प्रक्रिया, कानूनी निकायों या संस्थानों, न्याय और न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित है। इस दृष्टिकोण के समर्थक सिसरो, जीन बॉडिन, थॉमस हॉब्स, जेरेमी बेंथम, जॉन ऑस्टिन, डाइस और सर हेनरी मेन हैं।

राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए विभिन्न पारंपरिक दृष्टिकोणों को आदर्शवादी होने के लिए अस्वीकृत कर दिया गया है।

2. राजनीतिक सिद्धांत का आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Approach of political theory) :- पारंपरिक दृष्टिकोण की मदद से राजनीति का अध्ययन करने के बाद, राजनीतिक विचारकों को पारंपरिक दृष्टिकोण में कुछ कमी नज़र आई जिनसे वह राजनीति को नए दृष्टिकोण से अध्ययन करने की जरुरत महसूस हुई। इस प्रकार पारंपरिक दृष्टिकोणों की कमियों को कम करने के लिए, इन नए दृष्टिकोणों को राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए “आधुनिक दृष्टिकोण” के आधार पर इन्होने इसे परिवर्तन किया। वे राजनीतिक घटनाओं के तथ्यात्मक अध्ययन पर जोर देते हैं और वैज्ञानिक और निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। आधुनिक दृष्टिकोणों का उद्देश्य आदर्शवाद को साम्राज्यवाद से बदलना है।

आधुनिक दृष्टिकोण के लक्षण (Characteristics of Modern Approaches):-

  1. ये दृष्टिकोण अनुभवजन्य डेटा से निष्कर्ष निकालने की कोशिश करते हैं।
  2. ये दृष्टिकोण राजनीतिक संरचनाओं और इसके ऐतिहासिक विश्लेषण के अध्ययन से परे हैं।
  3. आधुनिक दृष्टिकोण अंतर-अनुशासनात्मक अध्ययन में विश्वास करते हैं।
  4. वे अध्ययन के वैज्ञानिक तरीकों पर जोर देते हैं और राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते हैं।

आधुनिक दृष्टिकोणों में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण, मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण, आर्थिक दृष्टिकोण, मात्रात्मक दृष्टिकोण, सिमुलेशन दृष्टिकोण, प्रणाली दृष्टिकोण, व्यवहार दृष्टिकोण और मार्क्सवादी दृष्टिकोण शामिल हैं। 

3. राजनीतिक सिद्धांत का व्यवहार संबंधी दृष्टिकोण (Behavioral Approach of political theory) :- व्यवहार दृष्टिकोण राजनीतिक सिद्धांत है जो सामान्य व्यक्ति के व्यवहार पर दिए गए बढ़ते ध्यान का परिणाम है।

किर्कपैट्रिक के अनुसार “पारंपरिक दृष्टिकोणों को संस्था को अनुसंधान की मूल इकाई के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन व्यवहारिक दृष्टिकोण राजनीतिक स्थिति में व्यक्ति के व्यवहार को आधार मानते हैं।“

व्यवहारवाद की मुख्य विशेषताएं:-

डेविड ईस्टन ने व्यवहारवाद की कुछ विशिष्ट विशेषताओं का वर्णन किया है जिन्हें इसकी बौद्धिक नींव माना जाता है।

  1. नियमितता (Regularities):- इस दृष्टिकोण का मानना है कि राजनीतिक व्यवहार में कुछ एकरूपताएँ हैं जिन्हें राजनीतिक घटनाओं को समझाने और भविष्यवाणी करने के लिए सामान्यीकरण या सिद्धांतों में व्यक्त किया जा सकता है।
  2. सत्यापन (Verification):- व्यवहारवादी सब कुछ सत्यापन के बाद ही उसे स्वीकार करना चाहते हैं। इसलिए, वे परीक्षण और सब कुछ सत्यापित करने पर जोर देते हैं।
  3. तकनीक (Techniques):- व्यवहारवादी उन शोध उपकरणों और विधियों के उपयोग पर जोर देते हैं जो वैध, विश्वसनीय और तुलनात्मक डेटा उत्पन्न करते हैं। एक शोधकर्ता को परिष्कृत उपकरणों जैसे नमूना सर्वेक्षण, गणितीय मॉडल, सिमुलेशन आदि का उपयोग करना चाहिए।
  4. मात्रा (Quantification):- डेटा एकत्र करने के बाद, शोधकर्ता को उन डेटा को मापना और मात्रा देना चाहिए।
  5. व्यवस्थापन (Systematization):- व्यवहारवादियों के अनुसार, राजनीति विज्ञान में अनुसंधान व्यवस्थित होना चाहिए। सिद्धांत और अनुसंधान को एक साथ चलना चाहिए।
  6. शुद्ध विज्ञान (Pure Science):- व्यवहार विज्ञान की एक और विशेषता राजनीतिक विज्ञान को “शुद्ध विज्ञान” बनाने का उद्देश्य रहा है। यह मानता है कि राजनीति विज्ञान के अध्ययन को साक्ष्य द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए।
  7. एकीकरण (Integration) :- व्यवहारवादियों के अनुसार, राजनीति विज्ञान को इतिहास, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र आदि जैसे अन्य सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं किया जाना चाहिए।

व्यवहार दृष्टिकोण के लाभ (Benefits of Behavioural approach):-

  1. यह दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान को अधिक वैज्ञानिक बनाता है और इसे व्यक्तियों के दैनिक जीवन के करीब लाता है।
  2. व्यवहारवाद ने सबसे पहले मानव व्यवहार को राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में समझाया है और इस प्रकार यह अध्ययन समाज के लिए अधिक प्रासंगिक है।
  3. यह दृष्टिकोण भविष्य की राजनीतिक घटनाओं की भविष्यवाणी करने में मदद करता है।
  4. व्यवहारिक दृष्टिकोण का समर्थन विभिन्न राजनीतिक विचारकों द्वारा किया गया है क्योंकि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और राजनीतिक घटनाओं की अनुमानित प्रकृति है।

इतने सारे benefits के बावजूद, वैज्ञानिकता के लिए इसके आकर्षण के लिए व्यवहार दृष्टिकोण की आलोचना की गई है। इस दृष्टिकोण के खिलाफ लगाए गए मुख्य आलोचनाएं नीचे उल्लिखित हैं:-

  1. यह विषय पर ध्यान न देने वाली प्रथाओं और तरीकों पर निर्भरता के लिए नापसंद किया गया है।
  2. इस दृष्टिकोण के समर्थक गलत थे जब उन्होंने कहा कि मानव समान परिस्थितियों में समान व्यवहार करता है।
  3. यह दृष्टिकोण मानव व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करता है लेकिन मानव व्यवहार का अध्ययन करना और एक निश्चित परिणाम प्राप्त करना एक मुश्किल काम है।
  4. अधिकांश राजनीतिक घटनाएं अनिश्चित हैं। इसलिए राजनीति विज्ञान के अध्ययन में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना हमेशा कठिन होता है।

4. राजनीतिक सिद्धांत का निर्णायक दृष्टिकोण (Decision making Approach of political theory) :- यह राजनीतिक दृष्टिकोण Decision makers की सुविधाओं के साथ-साथ व्यक्तियों के प्रभाव की खोज करता है। इस दृष्टिकोण को रिचर्ड सिंडर और चार्ल्स लिंडब्लोम जैसे कई विद्वानों ने विकसित किया। एक राजनीतिक निर्णय जो कुछ नेताओं द्वारा लिया जाता है, एक बड़े समाज को प्रभावित करता है और इस तरह के निर्णय को आमतौर पर एक विशिष्ट स्थिति द्वारा आकार दिया जाता है। इसलिए, यह Decision makers के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं को भी ध्यान में रखता है।

अगर हम सीधे तौर पर बात करे तो तो हमें यह निष्कर्ष मिलता है कि समय-समय पर आवश्यकताओ के अनुसार, सभी दृष्टिकोण में बदलाव किया जाता रहा है।

संक्षेपण में कहे तो राजनीतिक सिद्धांत राजनीति विज्ञान के अनुशासन के भीतर एक अलग क्षेत्र है। राजनीतिक सिद्धांत इस बात की रूपरेखा है कि राजनीतिक आदेश किस बारे में है। यह ‘राजनीतिक’ शब्द के बारे में प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है। यह राजनीतिक गतिविधि की प्रक्रियाओं और परिणामों का एक औपचारिक, तार्किक और व्यवस्थित विश्लेषण है। यह विश्लेषणात्मक, घातांक और वर्णनात्मक है। सामान्य दृष्टिकोण दार्शनिक पद्धति से जुड़ा हुआ है क्योंकि आदर्शों और मूल्यों को दार्शनिक रूप से निर्धारित किया जा सकता है। राजनीतिक दृष्टिकोण का एक और वर्गीकरण राजनीतिक घटनाओं का अनुभवजन्य विश्लेषण है। 

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