नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए कई जनसंघर्ष हो चुके हैं। 1990 में हुए संघर्ष के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई यह लोकतांत्रिक व्यवस्था 2002 तक यानी 12 साल कायम रही। अक्तूबर 2002 में राजा ज्ञानेन्द्र ने गाँवों में माओवादी संगठनों के बढ़ते प्रभाव का बहाना बनाकर सेना की मदद से सरकार के विभिन्न कामों को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया।
नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना
- 1990 में नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना
- फ़रवरी 2005 में राजा ने शासन पूरी तरह अपने हाथों में ले ली
- नवंबर 2005 में माओवादियों ने अन्य राजनीतिक दलों के साथ एक 12 सूत्री समझौते पर दस्तखत किए
- अप्रैल 2006 में राजा को तृतीय संसद बहाल करके राजनीतिक दलों को सरकार बनाने का मौका
- 2008 में, राजतंत्र को खत्म करने के बाद नेपाल लोकतंत्र बन गया
फ़रवरी 2005 में राजा ने शासन की बागडोर पूरी तरह अपने हाथों में ले ली। नवंबर 2005 में माओवादियों ने अन्य राजनीतिक दलों के साथ एक 12 सूत्री समझौते पर दस्तखत किए। इस समझौते में आम लोगों को लोकतंत्र और अमन-चैन बहाल होने की, उम्मीद दिखाई दे रही थी।
लोकतंत्र के लिए चल रहा यह जनांदोलन 2006 तक अपने शिखर पर पहुँच चुका था;। आदोलनकारियों ने राजा की और से दी गई छोटी-मोटी रियायतों को नामंजूर कर दिया; और आखिरकार अप्रैल 2006 में राजा को तृतीय संसद बहाल करके राजनीतिक दलों को सरकार बनाने का मौका देना पड़ा;। 2008 में, राजतंत्र को खत्म करने के बाद नेपाल लोकतंत्र बन गया।
नेपाल का संविधान
1990 में बना नेपाल का पिछला संविधान इस सिद्धांत पर आधारित था; कि शासन की सर्वोच्च बल सत्ता राजा के पास रहेगी। नेपाल के लोग कई दशक से लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनांदोलन करते चले आ रहे थे इसी संघर्ष के फलस्वरूप 2006 में आखिरकार उन्हें राजा की सत्ता को खत्म करने में कामयाबी मिल गई।
नेपाल के लोग लोकतंत्र के रास्ते पर चलना चाहते थे; और इसके लिए उन्हें एक नया संविधान चाहिए था वे पिछले संविधान को इसलिए नहीं अपनाना चाहते थे क्योंकि उसमें वे आदर्श नहीं थे जो वे नेपाल के लिए चाहते थे और जिनके लिए वे लड़ते रहे थे। नेपाल को भी राजतंत्र की जगह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पर चलने के कारण अपने सारे नियम बदलने होंगे; ताकि एक नए समाज की रचना की जा सके। यही कारण है; कि नेपाल के लोगों ने 2015 में अपने देश के लिए एक नया संविधान अपनाया।
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