भारतीय सविंधान का 42वां संसोधन

हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसके आर्टिकल 368 के आधार पर हमारी संसद संविधान में संशोधन कर सकती है। अब तक संविधान में 103 संशोधन किए जा चुके हैं; लेकिन संविधान की प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है; जो 42वां संशोधन के साथ- साथ अब तक का सबसे व्यापक संशोधन था; ये संशोधन इंदिरा गांधी के शासन के आपातकाल के दौरान हुआ था।

42वां संशोधन अधिनियम, 1976

42वें संशोधन में अहम संशोधन थे; राष्ट्र के सिद्धांतों को अधिक व्यापक बनाने के लिए संविधान में संशोधन कर समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और अखंडता के उच्च आदर्श को उसमें जगह दी जाए; और राज्य के नीति निर्देशक तत्व (डायेरक्टिव प्रिसंपल ऑफ स्टेट पॉलिसी) को और व्यापक बनाया जाए।

42वां संशोधन इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि संविधान की प्रस्तावना में प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य शब्दों के स्थान पर प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य शब्द और राष्ट्र की एकता शब्दों के स्थान पर राष्ट्र की एकता और अखंडता शब्द स्थापित किए गए। इसके अलावा पर्यावरण को लेकर भी प्रावधान जोड़े गये जो भारतीय संविधान विश्व का पहला संविधान है; जिसने पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रावधान बनाए।

42वें संशोधन के बारे में राय

बीएचयू में सहायक प्रोफेसर और लंदन से कानून में पीएचडी किए सीएम जरीवाला के अनुसार; “42वें संशोधन ने स्पष्ट रूप से समाजवाद की अवधारणा की प्रस्तावना में संशोधन किया। समाज के समाजवादी पैटर्न में; राज्य किसी भी व्यक्तिगत समस्या की तुलना में सामाजिक समस्याओं पर अधिक ध्यान देता है; और प्रदूषण उनमें से एक है; एक बार जब राज्य को सामाजिक हित के पक्ष में संतुलन साधने की अनुमति दी जाती है; तो निहित स्वार्थ किसी भी देश के सामाजिक व्यवस्था के लिए कोई रोड-ब्लॉक नहीं बना सकते हैं। वहीं एक पूँजीवादी राज्य में स्थिति अलग होती है।

आगे वो बताते है वहां समाज अधिक उपभोक्ता-उन्मुख हो जाता है; और पर्यावरणीय समस्याओं को उतनी गंभीरता से नहीं लेता है; और इसका प्रकोप सामाजिक बुराइयों से अनभिज्ञ सामान्य जनता के लिए छोड़ दिया जाता है।” पर्यावरण जागरूक देश में पर्यावरण की समस्या कानून बनाकर कार्यपालिका स्तर पर हल की जाती है। लेकिन भारत ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए इसे संवैधानिक दर्जा दे दिया।

संशोधन की आलोचना

स्वर्ण सिंह आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए लाए गए इस संशोधन की आलोचना भी खूब हुई। 1977 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने इस संशोधन के कई प्रावधानों को 44वें संविधान संशोधन के जरिए रद्द कर दिया। संविधान की प्रस्तावना में हुए बदलाव से कोई छेड़छाड़ नहीं किया। ऐसा माना जाता है; कि भारतीय संविधान की कई धाराओं से धर्मनिरपेक्षता 42वें संशोधन के पहले से ही समाहित है।

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

  • इस अधिनियम द्वारा संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण संशोधन किए गए।
  • ये संशोधन मुख्यत: स्वर्णसिंह आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए थे।
  • संविधान की प्रस्तावना में प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य शब्दों के स्थान पर प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य शब्द और राष्ट्र की एकता शब्दों के स्थान पर राष्ट्र की एकता और अखंडता शब्द स्थापित किए गए।
  • पर्यावरण को लेकर भी प्रावधान जोड़े गये
  • अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालयों के रिट अधिकार क्षेत्र में भी कुछ संशोधन किया गया।
  • इस संशोधनकारी अधिनियम द्वारा नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों के संबंध में एक नया अध्याय जोड़ा गया; और समाज विरोधी गतिविधियों से चाहे वे व्यक्तियों द्वारा हों या संस्थाओं द्वारा, निपटने के लिए विशेष उपबंध किए गए।

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