कोल विद्रोह के कारण व परिणाम और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का अंत

कोल विद्रोह भारत के इतिहास में अंग्रेजों के खिलाफ किया गया एक विद्रोह था। जिसे कोल जनजाति के लोगों ने अंग्रेजों द्वारा किए गए शोषण का बदला लेने के लिए किया था। जो समय के साथ एक विशाल विद्रोह में बदल गया जिसे कोल विद्रोह या मुंडा विद्रोह के नाम से जाना गया।

कोल कौन थे

कोल प्राचीनकाल में मध्य भारत (छोटा नागपुर) के जंगलों व जंगलों के आस पास के गांव में निवास करने वाली विशाल जनजाति थी. इस जनजाति के लोग कृषि पर निर्भर रहते थे। ये लोग कृषि और पशुओं को पाल कर अपना जीवन यापन करते थे. कोल जनजाति के लोग कृषि द्वारा उगाई गई फसल के आदान प्रदान का व्यापार करते थे।

मध्यकाल के समय तक कोल जनजाति का जीवन सीमित जरूरतों के साथ निर्वाह हो रहा था। परंतु औपनिवेशक काल (भारत में अंग्रेज़ों के शासन काल को औपनिवेशक या उपनिवेश काल कहा जाता है। यह काल सन् 1760 से 1947 ई. तक माना जाता है) में कोल जनजाति की आर्थिक और समाजिक स्थिति में उतर चढ़ाव आया।

कोल विद्रोह होने का क्या कारण था

मध्यकाल से पहले कोल जनजाति स्वतंत्र रूप से अपना जीवन यापन करते थे लेकिन जब ब्रिटिश शासन के आने के बाद औपनिवेशिक काल में अंग्रेजो ने आदिवासी पर अपना आधिपत्य करने के उन सब के बीच अपने साहूकार और जमींदार को वहां बसने के लिए भेजा और धीरे धीरे उन सब पर कर के माध्यम से पहला आघात किया था। जिससे कोलो के बीच नाराज़गी पैदा हुआ।

कोल जनजाति ने इस कर को चुकाने के लिए कृषि करने शुरू किया और जमींदार से लीज पर जमीन लेकर कृषि करते थे और पर्याप्त फसल के लिए साहूकार से धन ऋण  लेने की जरुरत पड़ती थी। इस प्रकार कोलो पर ऋण का बोझ बढ़ता चला गया और जमींदार ने भी उनका खूब शोषण किया।

ऐसी परिस्थिति हो जाने के बाद कोलो ने ब्रिटिश सरकार से इस बिकट समस्या से उभरने की गुहार लगाई। कोलो को ब्रिटिश सरकार से काफी उम्मीदें थी कि ब्रिटिश सरकार उनकी हक़ के लिए कोई सरकारी कदम जरूर उठाएंगे। इस गुहार से भी कुछ सुधार न होने से कोलो को बहुत आघात हुआ और ब्रिटिश सरकार ने कर लगा दिया जिससे उनसब में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश हुआ।

इस प्रकार कोलो के सरदार गोविन्द राव खरे ने 1831 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया, पहाड़ी पर जाकर अंग्रेजो को मारने और काटने लगे जिसे कोली डाकू के नाम से जाना जाने लगा।

कोल विद्रोह का अंत

कोल विद्रोह का छोटी विद्रोह से विशाल विद्रोह में बदल जाने से कई और जनजातियों ने इस विद्रोह में साथ देना शुरू कर दिया। कोलों द्वारा सरकारी संपत्ति , भवन इत्यादि को कब्जे में लिया जाने लगा और अंग्रेज अफसरों को अपने इलाके से खदेड़ा जाने लगा। ब्रिटिश सरकार इस विद्रोह से बेहद डर चुकी थी और उसने इस विद्रोह को कुचलने की योजना बनाई। अतः ब्रिटिश सरकार ने सेना के द्वारा इस विद्रोह की ताकत को कम करने की योजना तैयार की। सारी कोशिश नाकाम होने पर अंग्रेजो ने कोलो के साथ कुछ संधियां की और इस विद्रोह को ख़त्म करने की बात कही।

कोल विद्रोह का निष्कर्ष

कोल विद्रोह की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार को कोल जनजाति के सुधार के लिए मजबूर होना पड़ा और कोलों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकारी कदम उठाने पड़े। ब्रिटिश सरकार ने 1833 में बंगाल अधिनियम पारित किया गया। जिसके तहत छोटा नागपुर क्षेत्र को विनियमन (कर) मुक्त क्षेत्र घोषित कर दिया गया. इस विनियमन (कर) कानून को गवर्नर जनरल के एक एजेंट के अधीन रखा गया जिससे इस क्षेत्र की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। 1837 में कोल राज्य की स्थापना कर दी गई और इस प्रकार कोल विद्रोह भारत का ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किया गया एक सफल विद्रोह कहलाया।

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This Post Has 2 Comments

  1. ओम प्रकाश

    कोल जाति क्या भारत की मूलनिवासी है इसके समानार्थी जातिया क्या है यह विद्रोह अंग्रेजो के साथ अन्य के विरुद्ध क्यो था । अन्य जातियो से अलग होने का कारण क्या था।

  2. Kunj Mahajan

    में इस साईट पर पहली बार आया हूं मैने कई लिखो को पढ़ा सभी लेख बहुत ही रोचक एवं इनफॉर्मेटिव हैं।

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