रूस की क्रांति की घटनायें तथा परिणाम

रूस की क्रांति (Russia ki Kranti) विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में एक है। इसके परिणामस्वरूप रूस से ज़ार के स्वेच्छाचारी शासन का अन्त हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य (Russian Soviet Federative Socialist Republic) की स्थापना हुई। यह क्रान्ति दो भागों में हुई थी :

  • प्रथम क्रांति मार्च 1917 में
  • दूसरा क्रांति अक्टूबर 1917 में

प्रथम क्रांति में सम्राट को पद-त्याग के लिये विवश होना पड़ा और एक अस्थायी सरकार बनी। अक्टूबर की क्रान्ति में अस्थायी सरकार को हटाकर बोलसेविक सरकार (कम्युनिस्ट सरकार) की स्थापना की गयी। रुसी क्रांति का जनक लेनिन को कहा जाता है जिन्होंने रूस की क्रांति (Russia ki Kranti) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रूस की क्रांति (Russia ki Kranti) की भूमिका

रूस की क्रांति का महत्व विश्व के इतिहास में है। 18वीं शताब्दी के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना फ्रांस की राज्य क्रांति है बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्वपूर्ण घटना रूस की 1917 ई. की बोल्शेविक क्रांति थी। उस समय रूस में सामाजिक समानता का नितांत अभाव था। जिसके निम्न कारण थे

  1. प्रथम श्रेणी में कुलीन वर्ग आता था। इसको राज्य की ओर से बहुत अधिकार प्राप्त थे।
  2. द्वितीय श्रेणी में उच्च मध्यम वर्ग आता था, जिसमें व्यापारी छोटे जमींदार, पूंजीपति सम्मिलित थे।
  3. तृतीय श्रेणी में कृषक, अर्द्धदास कृषक तथा श्रमिक सम्मिलित थे। इसके साथ राज्य तथा अन्य वर्गों का व्यवहार बहुत ही अमानुषिक था।

जार निकोलस पूर्ण निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक था। यह जनता को किसी प्रकार का अधिकार प्रदान करने के पक्ष में नहीं था।

शीत युद्ध (COLD WAR) क्या है? इनके क्या कारण और परिणाम थे !

1917 की रूस की क्रांति (Russia ki Kranti) के निम्नलिखित कारण थे-

1. 1905 ई. की क्रांति

रूस मे 1905 ई. में एक क्रांति हुई थी, जिसने रूस में वैधानिक राजतंत्र की स्थापना करने का प्रयास किया गया था किन्तु पारस्परिक झगड़ों के कारण यह क्रांति सफल नहीं हो सकी और शासन पर पुनः जार का आधिपत्य स्थापित हो गया। इस क्रांति का स्पष्ट परिणाम यह हुआ कि उसने रूस की साधारण जनता को राजनीतिक अधिकारों का परिचय करा दिया था। उनको ज्ञात हो गया कि मत (वोट) का क्या अर्थ है

2. औद्योगिक क्रांति और उसके परिणाम

रूस में भी औद्योगिक क्रांति हुई, यहां पर क्रांति अन्य देशों की अपेक्षा काफी समय के उपरांत हुई किन्तु इसके होने पर रूस में बहुत से कारखानों की स्थापना हो गई थी। इस प्रकार रूस का औद्योगीकरण होना आरंभ हुआ। इसमें काम करने के कारण लाखों की संख्या में मजदूर देहातों और गांवों का परित्याग कर उन नगरों तथा शहरों में निवास करने लगे, जिनमें कल कारखानों की स्थापना हुई थी। नगरों और शहरों में निवास करने के कारण अब वे पहले के समान सीधे-सादे नहीं रह गये थे।

3. मध्यम वर्ग के विचारों में परिवर्तन

रूसी में मध्य श्रेणी के व्यक्तियों में शिक्षा का प्रचार हो गया था। जिस प्रकार फ्रांस की क्रांति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक, शिक्षित वर्ग आदि को प्राप्त है उसी प्रकार रूस में भी क्रांति का वेग इसी श्रेणी के लोगों ने तीव्र किया। वे लोग नई-नई पुस्तकों का अध्ययन करते थे। अनेक एशियन लेखकों ने भी अपने ग्रन्थों द्वारा नये तथा प्रगतिशील विचारों का प्रतिपादन किया। उनके हृदय में यह भावना जागृत हुई कि उनका कर्तव्य है कि वे अपने देश को उन्नत करने के लिये घोर प्रयत्न करें।

गौरवपूर्ण क्रांति: इतिहास के रक्तहीन क्रांति से जुड़ें 7 तथ्य

रूस की क्रांति (Russia ki Kranti) की घटनायें तथा परिणाम

1. सेना द्वारा जनता पर गोली चलाने से इंकार

7 मार्च 1917 ई. को जनता की दशा बहुत ही शोचनीय हो गई थी। उसके पास न पहनने को कपड़ा था और न खाने को अनाज था। वह भूख और कपड़े से व्याकुल हो चुकी थी। परेशान होकर भूखे और ठण्ड से ठिठुरते हुए गरीब और मजबूरों ने 7 मार्च के दिन पेट्रोग्रेड की सड़कों पर घूमना आरंभ किया। रोटी की दुकानों पर ताजी और गरम रोटियों के ढेर लगे पड़े थे।

भूखी जनता का मन ताजी और गरम चाय व रोटियों को देखकर ललचा गया और वह अपने आपको नियंत्रण में नहीं रख सकी। उन्होंने बाजार में लूट-मार करनी आरंभ कर दी। सरकार ने सेना को उन पर गोली चलाने का आदेश दिया कि वह गोली चलाकर लूटमार करने वालों को तितर-बितर कर दे, किन्तु सैनिकों ने गोली चलाने से साफ मना कर दिया क्योंकि उनको जनता से सहानुभूति थी। अतः अब क्रान्ति अवश्यम्भावी हो गई थी।

2. जार का शासन त्यागना

दूसरी ओर ड्यूमा ने विसर्जित होने से मना कर दिया। उसका पेट्रोग्रेड सोवियत के समझौता हो गया, जिसके आधार पर 14 मार्च 1917 ई. को उदारवादी नेता जार्ज स्लाव की अध्यक्षता में एक सामाजिक सरकार की स्थापना की गई। उसने 14 मार्च को जार से शासन का परित्याग करने की मांग की। परिस्थिति से बाध्य होकर उसने उनकी मांग को स्वीकार कर शासन से त्यागपत्र दे दिया। इस प्रकार रूस में जारशाही का अंत हुआ। क्रांति में मजदूरों को सफलता प्राप्त हुई, किन्तु उन्होंने शासन की बागडोर को अपने हाथ में रखना उचित न समझ, समस्त शक्ति मध्य वर्ग के हाथ में सौंप दी।

निष्कर्ष

अपने राजनीतिक अधिकारों से परिचित हो जाने के कारण रूस की जनता समझ गई कि रूस में भी पूर्णतया लोकतंत्र शासन की स्थापना होनी चाहिये जहां साधारण जनता के हाथ में शासन सत्ता हो। क्रांति के बाद का विश्व इतिहास कुछ इस तरीके से गतिशील हुआ कि या तो वह इसके प्रसार के पक्ष में था अथवा इसके प्रसार के विरूद्ध। रूसी क्रांति का जनक लेनिन को कहा जाता है जिन्होंने रूस की क्रांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

Note :- अगर आपको रूस की क्रांति के इस लेख बारे में कुछ कहना है तो हमें कमेंट कर सकते है, और ये पोस्ट अच्छी लगी तो इसे दोस्तों के साथ अभी शेयर करे और हम से जुड़ने के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करे और यू-ट्यूब चेंनल को सब्सक्राइब करें ।

This Post Has One Comment

  1. Anonymous

    Please provide this in a more brief form.

Leave a Reply