जैव उर्वरक क्या होते हैं ? प्रकार, प्रयोग विधि व सावधानियां

भूमि की उर्वरता को टिकाऊ बनाए रखते हुए सतत फसल उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने प्रकृतिप्रदत्त जीवाणुओं को पहचानकर उनसे विभिन्न प्रकार के पर्यावरण हितैषी उर्वरक तैयार किये हैं जिन्हे हम जैव उर्वरक (Biofertilizer) या ‘जीवाणु खाद’ कहते है।

जैव-उर्वरक (Biofertilizer) विभिन्न प्रकार के मिट्टी जनित रोगों के नियंत्रण में सहायक सिद्ध होते हैं। इसके अतिरिक्त जैव उर्वरकों से किसी भी प्रकार का प्रदुषण नहीं फैलता है और इसका कोई दुष्परिणाम भी देखने में नहीं आया है और न ही इसका प्रयोग करनेवालों पर इनका कोई दुष्प्रभाव देखा गया है। जैव-उर्वरकों (Biofertilizer) के उपयोग करने से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता में कमी देखी जा सकती है।


जैव उर्वरक (Biofertilizer) जीवाणु खाद क्या है?


जैव उर्वरक (Biofertilizer) पौधों के लिए वृद्धि कारक पदार्थ भी देते हैं तथा पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायक हैं। भूमि, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना कृषि उत्पादन स्तर में स्थायित्व लाते हैं इन्हें जैव कल्चर, जीवाणु खाद, टीका अथवा इनाकुलेन्ट भी कहते हैं। सभी प्रकार के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मुख्यतः 17 तत्वों की आवश्यकता होती है। जिनमें नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश अति आवश्यक तथा प्रमुख पोषण तत्व है। यह पौधे में तीन प्रकार से उपलब्ध होती है।

  • रासायनिक खाद द्वारा
  • गोबर की खाद/ कम्पोस्ट द्वारा
  • छिडकाव का उपयुक्त समय मघ्य अगस्त से मघ्य सित्मबर हैा
  • नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणुओं द्वारा

इसमें सूक्ष्मजीवी वैक्टिरिया, फफूंदी, शैवाल, प्रोटोजोआ आदि पाये जाते हैं इनमें से कुछ सूक्ष्मजीव वायुमण्डल में स्वतंत्र रूप से पायी जाने वाली 78 प्रतिशत नत्रजन जिन्हें पौधे सीधे उपयोग करने में अक्षम होते हैं, को अमोनिया एवं नाइट्रेट तथा फास्फोरस को उपलब्ध अवस्था में बदल देते हैं। जैव उर्वरक इन्हीं सूक्ष्म जीवों का पीट, लिग्नाइट या कोयले के चूर्ण में मिश्रण है जो पौधों को नत्रजन एवं फास्फोरस आदि की उपलब्धता बढ़ाता है। भूमि मात्र एक भौतिक माध्यम नहीं है बल्कि यह एक जीवित क्रियाशील तन्त्र है।


जीवाणु खाद (Biofertilizer) या जैव उर्वरक के प्रकार


जीवाणु खाद (Biofertilizer) या जैव उर्वरक निम्न प्रकार के उपलब्ध है।

  1. राइजोबियम कल्चर
  2. एजोटोबेक्टर कल्चर
  3. एजोस्पाइरिलम कल्चर
  4. नील हरति शैवाल (वी०जी०ए०)
  5. फास्फेटिका कल्चर
  6. एजोला फर्न
  7. माइकोराइजा
  8. ट्राइकोडर्मा

राइजोबियम कल्चर

यह एक नम चारकोल एवं जीवाणु का मिश्रण है, जिसके प्रत्येक एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह खाद केवल दलहनी फसलों में ही प्रयोग किया जा सकता है तथा यह फसल विशिष्ट होती है, अर्थात अलग-अलग फसल के लिए अलग-अलग प्रकार का राइजोबियम जीवाणु खाद का प्रयोग होता है।

राइजोबियम जीवाणु खाद से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु खाद (Biofertilizer) से बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण पर ये जीवाणु जड़ की मूलरोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते हैं। ये ग्रन्थियां नत्रजन स्थिरीकरण इकाईयां हैं तथा पौधों की बढ़वार इनकी संख्या पर निर्भर करती है। पौधे की जड़ में अधिक ग्रन्थियों के होने पर पैदावार भी अधिक होती है।

फसल विशिष्ट पर प्रयोग की जाने वाली राइजोबियम खाद

अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम जीवाणु खाद के अलग-अलग पैकेट उपलब्ध होते हैं तथा निम्न फसलों में प्रयोग किये जाते हैं

1दलहनी फसलेंमूंग, उर्द, अरहर, चना, मटर, मसूर इत्यादि।
2तिलहनी फसलेंमूंगफली, सोयाबीन।
3अन्य फसलेंरिजका, बरसीम, ग्वार आदि।

प्रयोग विधि

  1. 200 ग्राम राइजोबियम से 10-12 किग्रा० बीज उपचारित कर सकते हैं।
  2. एक पैकेट को खोले तथा 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर लगभग 300-400 मि० लीटर पानी में डालकर अच्छी प्रकार घोल बना लें।
  3. बीजों को एक साफ सतह पर एत्रित कर जीवाणु खाद के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें,
  4. और बीजों को हाथ उलटते पलटते जाय जब तक कि सभी बीजों पर जीवाणु खाद की समान परत न बन जाये।
  5. इस क्रिया में ध्यान रखें कि बीजों पर लेप करते समय बीज के छिलके का नुकसान न होने पाये।
  6. उपचारित बीजों को साफ कागज या बोरी पर फैलाकर छाया में 10-15 मिनट सुखाये और उसके बाद तुरन्त बोयें।
राइजोबियम जीवाणु के प्रयोग से लाभ
  1. इसके प्रयोग से 10-20 किग्रा० रासायनिक नत्रजन की बचत होती है।
  2. इसके प्रयोग से वृद्धि वर्धक(साइटोंकानिन) हार्मोन्स भी पोधो को उपलब्ध होते है।
  3. इससे पौधे हेतु जल की उपलब्धता बढ़ता है।

जैव उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियां

  • जीवाणु खाद (Biofertilizer) को धुप व गर्मी से दूर दूर सूखे एवं ठण्डे स्थान पर रखे
  • इसके प्रयोग से फसल की उपज में 20-35 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
  • राइजोबियम जीवाणु हारमोन्स एवं विटामिन भी बनते हैं, जिससे पौधो की बढ़वार अच्छी होती है और जड़ों का विकास भी अच्छा होता है।
  • इन फसलों के बाद बोई जाने वाली फसलों में भी भूमि की उर्वरता तथा स्वास्थ्य सुधारने से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।

एजोटोबैक्टर/ एजोस्पाइरिलम जीवाणु खाद से लाभ

  • फसलों की 10 से 20 प्रतिशत तक पैदावार में वृद्धि होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।
  • इसके प्रयोग करने से 20-30 किग्रा० नत्रजन की बचत की जा सकती है।
  • एजेटोबैक्टर खाद कुछ वृद्धि कारक हारमोन्स (जैसे-जिब्रालिक एसिड) तथा विटामिन्स (जैसे बी) का उत्सर्जन करते हैं जिससे पौधों के विकास में सहायता मिलती है।
  • इसके प्रयोग करने से अंकुरण शीघ्र और स्वस्थ होता है तथा जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।
  • फसलें भूमि से फास्फोरस का अधिक प्रयोग कर लेती है जिससे कल्ले अधिक बनते हैं।
  • इन जैव उर्वरकों के जीवाणु एन्टीबायोटिक पदार्थों का भी निर्मण करती है जिससे पौधे की रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है तथा फसल का बीमारियों से बचाव होता है।
  • ऐसे जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से जड़ों एवं तनों का अधिक विकास होता है जिससे पौधे में तेज हवा, अधिक वर्षा एवं सूखे की स्थिति की सहने की क्षमता बढ़ जाती है।

नील हरित शैवाल खाद

एक कोशिकीय सूक्ष्म नील हरित शैवाल नम मिट्टी तथा स्थिर पानी में स्वतन्त्र रूप से रहते हैं। धान के खेत का वातावरण नील-हरित शैवाल के लिए के लिए सर्वथा उपयुक्त होता है। इसकी वृद्धि के लिए आवश्यक ताप, प्रकाश नमी और पोषक तत्वों की मात्रा धान के खेत में विद्यमान रहती है।

प्रयोग विधि

  • धान की रोपाई के 3-4 दिन बाद स्थिर पानी में 12.5 किग्रा० प्रति हे० की दर से सूखे जैव उर्वरक का प्रयोग करें।
  • इसे प्रयेाग करने के पश्चात् 4-5 दिन तक खेत में पानी लगातार खेत में भरा रहने दें।
  • इसका प्रयोग कम से कम तीन वर्ष तक लगातार खेत में करें इसके बाद इसे पुनः डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • यदि धान में किसी खरपतवारनाशी का प्रयोग किया है तो इसका प्रयोग खरपतवार नाशी के प्रयोग के 3-4 दिन बाद करें।

नील हरित जैव उर्वरक से लाभ

  • इसके प्रयोग से 30 किग्रा०/ हे० नाइट्रोजन प्राप्त होती है।
  • इससे धान के उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
  • इसके प्रयोग से वृद्धि नियंत्रक, विटामिन-बी-12 अमीनों अम्ल भी श्रावित करते हैं जिससे पौधों में अच्छी वृद्धि के साथ-साथ दानों की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

फास्फेटिक कल्चर

फास्फेटिका जीवाणु खाद भी स्वतन्त्र-जीवी जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप में उत्पाद है। नत्रजन के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पोषक तत्व फास्फोरस है जिसे पौधे सर्वाधिक उपयोग में लाते हैं। फास्फेटिक उर्वरकों का लगभग एक तिहाई भाग पौधे अपने उपयोग में ला पाते है। शेष अघुलनशील अवस्था में ही पड़ा रह जाता है जिसे पौधे स्वयं घुलनशील नहीं बना पातें।

जब हम यह जीवाणु युक्त खाद प्रयोग करते हैं तो मृदा में उपस्थित अघुनशील फास्फोरस को जीवाणुओं द्वारा घुलनशील अवस्था में बदल दिया जाता है। तथा इसका प्रयोग सभी फसलों में किया जा सकता है। साधारणतया यह आवश्यक नहीं है कि मृदा में भी उपस्थित जीवाणु सक्षम एवं असरकारक हो। अतः कल्चर के माध्यम से किसानों को असरकारक जीवित पदार्थ या जीवाणु उपलब्ध कराये जाते हैं।

फास्फेटिका से लाभ

  • फास्फेटिका जीवाणु खाद के प्रयोग से फसलों की 10-20 प्रतिशत तक पैदावार में वृद्धि होती है।
  • इसके प्रयोग करने से 25-30 किग्रा० प्रति हे० की दर से उपलब्ध फास्फेट की बचत की जा सकती है।
  • जड़ों का विकास अधिक होता है, जिससे पौधा स्वस्थ बना रहता है।

एजोला फर्न

यह ठण्डे मौसम में स्थिर पानी के ऊपर तैरते हुए पाया जाता है जो दूर से देखने में हरे या लाल रंग की चटाईनुमा लगता है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी तथा मोटी होती हैं। इन पत्तियों के नीचे छिद्रों में सहजीवी साइनो-वैक्टीरिया (एनावीना एजोली) पाया जाता है, जो नत्रजन स्थिरीकरण में सहायक है।

यह जलमग्न धान के खेतों में बुवाई के एक सप्ताह बाद 10 कु०प्रति हे० की दर से उगाया जा सकता है जो दो किलोग्राम नत्रजन प्रति दिन की दर से स्थिर कर सकता है। इसका प्रयोग कम्पोस्ट बनाने में अथवा 10 टन प्रति हे० की दर से हरी खाद के रूप में भूमि में मिलाकर किया जा सकता है। इसके प्रयोग से धान में खरपतवार कम पनपते हैं तथा नत्रजन के प्रयोग में 40-80 किलोग्राम तक बचत की जा सकती है।


माइकोराइजा

इसमें फफूंदी का पौधें की जड़ों से सहजीवन होता है, जिसमें फफूंदी अपनी जड़ों से पोषक तत्वों को अवशोषित करती है और पौधों को इन तत्वों को तुरन्त उपलब्ध कराती है कवक इसके बदले भोजन पौधे लेता है। यह दो प्रकार का होता है

  • एक्टोमाइकोराइजा
  • इन्डोमाइकोराइजा

माइकोराइजा से लाभ

  • इसके प्रयोग से फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम एवं सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है।
  • यह प्रयोग करने से वृद्धि वर्धक साइटोकाइनिन हार्मोन्स भी पौधों को उपलब्ध होता है।
  • इसके प्रयोग से पौधों हेतु जल की उपलब्धता बढ़ता है।

जैव उर्वरकों (Biofertilizer) के प्रयोग में सावधानियॉ


  • जीवाणु खाद को धूप व गर्मी से दूर दूर सूखे एवं ठण्डे स्थान पर रखें।
  • जीवाणु खाद या इससे उपचारित बीजों को किसी भी रसायन या रासायनिक खाद के साथ न मिलायें।
  • राइजोबियम जीवाणु फसल विशिष्ट होता है। अतः पैकेट पर अंकित फसल में ही प्रयोग करें।
  • यदि बीजों पर फफूंदी नाशी बेविस्टीन का प्रयोग करना हो तो बीजों को पहले फफूंद नाशी से उपचारित करें तथा फिर जीवाणु खाद की दुगुनी मात्रा से उपचारित करें।
  • जैव उर्वरकों का प्रयोग पैकेट पर लिखी अन्तिम तिथि से पहले ही कर लेना चाहिए।

कृषि उत्पादन में जैव उर्वरकों (Biofertilizer) की महत्ता एवं उपयोग


भारत जैसे विकासशील देश में नत्रजन की इस बड़ी मात्रा की आपूर्ति केवल रासायनिक उर्वरकों से कर पाना छोटे और मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से परे है अतः फसलों की नत्रजन आवश्यकता की पूर्ति के लिए पूर्णरूप से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहना तर्क संगत नहीं है। वर्तमान परिस्थितियों में नत्रजनधारी उर्वरकों के साथ-साथ नत्रजन के वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि मृदा की उर्वरा शक्ति को टिकाऊ अक्षुण रखने के लिए भी आवश्यक है।

ऐसी स्थिति में जैव उर्वरकों एवं सान्द्रिय पदार्थो के एकीकृत उपयोग की नत्रजन उर्वरक के रूप में करने की अनुशंसा की गई है। भूमि में सूक्ष्म जीवों की सम्मिलित सक्रियता के लिए निम्न दशाएं अनुकूल होती हैं।

  • जीवांश पदार्थो की उपस्थिति
  • नमी
  • वायु संचार
  • निरन्तर उदासीन के आसपास पी.एच मान यह चारों आवश्यकताओं एक मात्र कम्पोस्ट से पूरी की जा सकती है।

फसलों द्वारा भूमि से लिए जाने वाले प्राथमिक मुख्य पोषक तत्वों-नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश में से नत्रजन का सर्वाधिक अवशोषण होता है क्योंकि इस तत्व की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं भूमि में डाले गये नत्रजन का 40-50 प्रतिशत ही फसल उपयोग कर पाते हैं और शेष 55-60 प्रतिशत भाग या तो पानी के साथ बह जाता है या वायु मण्डल में डिनाइट्रीफिकेशन से मिल जाता है या जमीन में ही अस्थायी बन्धक हो जाते हैं।

अन्य पोषक तत्वों की तुलना में भूमि में उपलब्ध नत्रजन की मात्रा सबसे न्यून स्तर की होती है। यदि प्रति किलो पोषक तत्व की कीमत की ओर ध्यान दें तो नत्रजन ही सबसे अधिक कीमती है। अतः नत्रजनधारी उर्वरक के एक-एक दाने का उपयोग मितव्ययता एवं सावधानी से करना आज की अनिवार्य आवश्यकता हो गई है।

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