रौलेट एक्ट (ROWLATT ACT-1919) क्या है?

[wpsm_update date=”2020.08.14″ label=”Update”][/wpsm_update]13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) के विरोध में हजारों लोग एकत्र हुए थे। अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने इस बाग को घेर अपने सैनिकों और हथियारंबद वाहनों से रोक कर निहत्थी भीड़ पर गोलियों की बरसात कराई थी। इस घटना में लगभग 1000 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 1500 से ज्यादा घायल हुए थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मरने वाले लोगों की संख्या 379 और घायल लोगों की संख्या 1200 बताई थी। यहाँ लोग रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे।

11 नवम्बर 1918 में यूरोप का पहला महायुद्ध समाप्त हो चुका था। जर्मनी और उसके साथियों को पूरी तरह परास्त करके वह पक्ष जीत गया था, जिसका सबसे बड़ा भागीदार ब्रिटेन था। इस जीत ने भारत के वातावरण को बिल्कुल बदल दिया था। युद्ध के दिनों अँग्रेज़ शासकों में जो थोड़ा-बहुत विनय का भाव दिखता था, विजय मिलने के बाद वह भाव ग़ायब हो गया। 1919 के प्रारम्भ में देश की आर्थिक स्थिति बहुत विकट हो रही थी।

रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) क्या था

रौलेट समिति (Rowlatt Committee) की स्थापना की घोषणा 10 दिसम्बर 1917 को हुई. समिति ने लगभग चार महीनों तक “तहकीकात” की। रौलेट समिति की रिपोर्ट में भारत के जोशीले देशभक्तों द्वारा किये गए बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर बड़े उग्र रूप में चित्रित किया गया था। रौलेट समिति के सभा पति ने 15 अप्रैल, 1918 के दिन अपनी रिपोर्ट भारत मंत्री के सेवा में उपस्थित की और उसी दिन वह भारत में भी प्रकाशित की गई। वह रिपोर्ट “रौलेट समिति की रिपोर्ट” कहलाई।

इस एक्ट (Rowlatt Act) को काला कानून भी कहा जाता है, 26 January 1919 को रॉलेट एक्ट की स्थापना हुई थी। इस एक्ट को भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए बनाया गया। ये कानून सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली सेडिशन समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इस कानून से ब्रिटिश सरकार को ये अधिकार प्राप्त हो गया था, कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए, उसे जेल में बंद कर सकती थी।

रौलेट बिल (ROWLATT BILL/ROWLATT ACT)

  • क्रांतिकारियों के मुक़दमे हाईकोर्ट के तीन जजों की अदालत में पेश हों, जो शीघ्र ही उनका फैसला कर दें। निचली कचहरियों में उनके जाने की आवश्यकता नहीं ताकि अपील की भी कोई गुंजाईश न रहे।
  • जिस व्यक्ति पर राज्य के विरुद्ध अपराध करने का संदेह हो, उससे जमानत ली जा सके और उसे किसी विशेष स्थान पर जाने तथा विशेष कार्य करने से रोका जा सके।
  • प्रांतीय सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे किसी भी व्यक्ति को जिस पर उन्हें संदेह हो, गिरफ्तार करके कहीं नजरबन्द कर सकती हैं और यदि संदेहास्पद आदमी जेल में हो तो उसे वहीं रोक कर रख सकती है।
  • गैर कानूनी सामग्री का प्रकाशन व वितरण करना या करने के लिए अपने पास रखना, अपराध होगा।

इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने पर देश में बैचेनी पैदा हो गयी। रौलेट बिल (Rowlatt Act) के प्रति देश में विरोध का भाव था। समाचार पत्रों में रौलेट रिपोर्ट और उस पर आधारित बिलों का कठोर विरोध किया जा रहा था फिर भी सरकार ने उन्हें छोड़ा नहीं। भारतीय प्रतिनिधियों ने बिल का डटकर विरोध किया। पं. मालवीय, श्रीयुत विट्ठल भाई पटेल, मजरुल हक आदि लोक नेताओं ने सरकार को समझाने का बहुत प्रयत्न किया पर सरकार ने उनकी नहीं मानी। सरकार ने यह युक्ति दी कि उनका उद्देश्य राजनीतिक आन्दोलन को दबाना नहीं, अपितु देश को आतंकवाद से छुड़ाना है।

रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) में महात्मा गाँधी का योगदान

महात्मा गाँधीजी ने इस एक्ट के खिलाफ व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) गांधी जी के द्वारा किया गया राष्ट्रीय लेवल का प्रथम आंदोलन था। 24 फरवरी 1919 के दिन गांधी जी ने मुंबई में एक “सत्याग्रह सभा”का आयोजन किया था और इस सभा में तय किया गया और कसम ली गई थी की रोलेट एक्ट का विरोध ‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ के मार्ग पर चलकर किया जाएगा। गांधी जी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का विरोध भी कुछ सुधारवादी नेताओं ने किया था, जिसमें सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, तेज बहादुर सप्रु, श्री निवास शास्त्री जैसे नेता शामिल थे। लेकिन गांधी जी को बड़े पैमाने पर होमरूल लीग के सदस्यों का समर्थन मिला था।

कानून का जमकर हुआ विरोध

इस कानून का पूरे देश में जमकर विरोध हुआ। देशव्यापी हड़तालें, जूलूस और प्रदर्शन होने लगे। अमृतसर के दो बड़े सामाजिक नेता डॉ सत्यपाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू गिरफ्तार कर लिए गए। तब अमृतसर समेत पूरे पंजाब में लोगों में रोष फैल गया। उन दिनों 13 अप्रैल 1919 को वैशाखी वाले दिन पंजाब के किसान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एकत्र हुए थे। इसी दिन जलियांवाला बाग़ में एक विरोध सभा का आयोजन हुआ। जिसमें जनरल डायर ने लोगों पर गोलियां बरसा दीं। इस घटना को ब्रिटिश भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन माना जाता है।

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