पौधे में पोषक तत्व का वर्गीकरण एवं कमी के लक्षण

पेड़ पौधे भी इंसानों की तरह विकास करने के लिए पौधे में पोषक तत्व (Nutrients in Plants) का उपयोग करते हैं ,पौधों को अपनी वृद्धि, प्रजनन, तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए कुछ पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इन पोषक तत्वों के उपलब्ध न होने पर पौधों की वृद्धि रूक जाती है यदि ये पोषक तत्व एक निश्चित समय तक न मिलें तो पौधों की मृत्यु हो जाती है।

पौधों को 17 तत्वों की आवश्यकता होती है जिनके बिना पौधे की वृद्धि-विकास तथा प्रजनन आदि क्रियाएं सम्भव नहीं हैं। इनमें से मुख्य तत्व कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन , नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश है। इनमें से प्रथम तीन तत्व पौधे वायुमंडल से ग्रहण कर लेते हैं।

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पौधे में पोषक तत्व (Nutrients in Plants)

प्लांट न्यूट्रिएंट्स रासायनिक तत्व हैं जो पौधे के स्वास्थ्य के पोषण के लिए आवश्यक हैं। प्लांट न्यूट्रिएंट्स तीन श्रेणियों में आते हैं, जिनमें से सभी पौधों की जरूरतों पर आधारित होते हैं, व्यक्तिगत तत्वों का महत्व पर नहीं। पौधे के विकास में प्रत्येक प्लांट न्यूट्रिएंट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पोषक तत्वों को पौधों की आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है:-

  • मुख्य पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश।
  • गौण पोषक तत्व- कैल्सियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक।
  • सूक्ष्म पोषक तत्व- लोहा, जिंक, कापर, मैग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान एवं क्लोरीन।

1. प्राथमिक पोषक तत्व (Primary Nutrients)

नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटेशियम (K) हैं। इन आवश्यक तत्वों का अन्य दो श्रेणियों में आने वाले तत्वों की तुलना में पौधे द्वारा उच्च मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ये तीनों तत्व प्लांट्स बायोलॉजी में महत्वपूर्ण कार्य करते है।

प्रोटीन के निर्माण के लिए नाइट्रोजन आवश्यक है, कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन करता है, और पौधो की सेल विभाजन (विकास) के लिए आवश्यक है। फॉस्फोरस रूट वृद्धि, बीज गठन, और पौधों की परिपक्वता को प्रभावित करता है। अंत में, रोग प्रतिरोध, फल गठन, और प्रभाव संयंत्र एंजाइमों में पोटेशियम महत्वपूर्ण होता है।

2. माध्यमिक पोषक तत्व

कैल्शियम (Ca), मैग्नीशियम (Mg), और सल्फर (S) हैं। ये तत्व, हालांकि ये उच्च मात्रा में आवश्यक नहीं होते है, लेकिन पौधे के स्वास्थ्य के लिए ये आवश्यक हैं। सल्फर विटामिन विकसित करने में मदद करता है, बीज उत्पादन में सहायक होता है, और एमिनो एसिड बनाने का एक अभिन्न अंग है।

मैग्नीशियम क्लोरोफिल उत्पादन में एक प्रमुख घटक है, और पौधों को फास्फोरस और लौह का उपयोग करने में मदद करता है। अन्य माध्यमिक पोषक तत्वों की तरह कैल्शियम, श्वसन और सेल विभाजन जैसे पौधों के सिस्टम कार्यों को विनियमित करने में कई भूमिका निभाता है। हालांकि, कुछ पौधों में कैल्शियम एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, मूंगफली में nut के विकास के लिए यह आवश्यक है।

3. सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro Nutrients)

ये अन्य प्लांट न्यूट्रिएंट्स की तुलना में बहुत कम मात्रा में जरूरी होते है, लेकिन ग्रोथ और विकास के लिए आवश्यक हैं। प्लांट माइक्रोन्यूट्रिएंट्स बोरॉन(B), क्लोरीन (Cl), कॉपर (Cu), आयरन (fe), मैंगनीज (Mn), मोलिब्डेनम (Mo), और जिंक (Zn) हैं। ये सभी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स प्लांट बायोलॉजी में कई अलग-अलग भूमिकाओं में सहायता करते हैं। उनमें से कई, कॉपर की तरह, फोटोसिंथेसिस और रिप्रोडक्शन में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।


पौधों में पोषण (Nutrition in Plants)

हरे पौधे फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया द्वारा अपने स्वयं के भोजन को सिंथेसाइज करते हैं। फोटो का मतलब है कि प्रकाश और सिंथेसिस का मतलब निर्माण करना है, इसलिए फोटोसिंथेसिस का अर्थ है ‘प्रकाश से निर्माण करना’। क्लोरोफिल की उपस्थिति में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी जैसे इनऑर्गेनिक पदार्थों से सूरज की रोशनी में भोजन का निर्माण करते हैं।

हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना खाना बनाते हैं। क्लोरोफिल क्लोरोप्लास्ट नामक हरी रंगीन निकायों में मौजूद होता है। क्लोरोफिल की उपस्थिति के कारण ही पौधे की पत्तियां हरी होती हैं।

पौधे की हरी पत्तियों में भोजन तैयार किया जाता है। भोजन को बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता होती है जो हवा द्वारा ली जाती है। कार्बन डाइऑक्साइड पत्तियों में छोटे छिद्रों के माध्यम से प्रवेश करता है जिन्हें स्टोमेटा कहा जाता है। खाना बनाने के लिए आवश्यक पानी मिट्टी से लिया जाता है।

यह पानी पत्तियों में जड़ों और तने के माध्यम से ले जाया जाता है। सूरज की रोशनी हरे पत्ते में मौजूद रासायनिक प्रतिक्रियाओं और क्लोरोफिल को चलाने के लिए ऊर्जा प्रदान करती है जो इस ऊर्जा को अवशोषित करने में मदद करती है। ऑक्सीजन इस प्रक्रिया में उप-उत्पाद के रूप में उत्पादित होता है जो हवा में बाहर निकलता है।

पत्तियों द्वारा तैयार भोजन ग्लूकोज नामक सिंपल शुगर के रूप में होता है। यह ग्लूकोज तब पौधे के अन्य हिस्सों में भेजा जाता है। स्टार्च के रूप में पौधे की पत्तियों में अतिरिक्त ग्लूकोज संग्रहित होता है। ग्लूकोज और स्टार्च कार्बोहाइड्रेट नामक एक श्रेणी से संबंधित है। इस प्रकार हरे पौधे सूर्य की रोशनी को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।

फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया

  1. सूरज की रोशनी से मिली ऊर्जा क्लोरोफिल द्वारा अवशोषित की जाती है।
  2. सूर्य की रोशनी की ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर दिया जाता है और पानी को
  3. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है।
  4. कार्बन डाइऑक्साइड हाइड्रोजन में रिड्यूस हो जाता है ताकि ग्लूकोज की तरह कार्बोहाइड्रेट बन जाए।

यह आवश्यक नहीं है कि फोटोसिंथेसिस के ये चरण एक-दूसरे के बाद ही होते हो।


पौधों में पोषण के तरीके (Process of Nutrition in Plants)

क्लोरोफिल की उपस्थिति में सूर्य की रोशनी से ऊर्जा का उपयोग करके हरे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से अपना स्वयं का भोजन बनाते हैं, जिस प्रक्रिया को फोटोसिंथेसिस कहा जाता है। हरे पौधों को भी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए फूस की आवश्यकता होती है। सभी जीवित जीवों को विभिन्न क्रियाएं करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

पौधे सूर्य की रोशनी की उपस्थिति में अपना खाना बनाते हैं और इसलिए वे ऑटोट्रॉफ होते हैं। पौधे सूरज की रोशनी से मिली ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। वे क्लोरोफिल की उपस्थिति में अपना खाना बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और सूरज की रोशनी का उपयोग करते हैं।

पौधों में पोषण के दो प्रकार के तरीके होते हैं। वो हैं:

  • स्वपोषी पोषण
  • विषमपोषी पोषण

1. स्वपोषी पोषण (Autotroph)

न्यूट्रिशन जीवों के ऑटोट्रोफिक मोड में सूर्य की रोशनी की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड और पानी जैसी सरल इनऑर्गेनिक सामग्री की मदद से अपना स्वयं का भोजन बनाते हैं। इसके अलावा पोषण में आर्गेनिक भोजन इनऑर्गेनिक पदार्थों से बना होता है।

हरे पौधों में पोषण का ऑटोट्रोफिक मोड होता है। इन जीवों को ऑटोट्रॉफ कहा जाता है। ऑटोट्रॉफ में क्लोरोफिल नामक हरे रंग के रंग होते हैं जो सूरज की रोशनी को फँसाने में मदद करते हैं। वे फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाने के लिए सूरज की रोशनी का उपयोग करते हैं। ऑटोट्रॉफ द्वारा उत्पादित भोजन मनुष्यों और जानवरों द्वारा भी उपयोग किया जाता है।

2. विषमपोषी पोषण (Heterotroph)

हेटरोट्रोफिक जीव वे हैं जो अन्य जीवों से भोजन प्राप्त करते हैं। चूंकि ये जीव अपने जीने के लिए अन्य जीवों पर निर्भर करते हैं, इसलिए उन्हें उपभोक्ता कहा जाता है। fungi जैसे और गैर-हरे पौधे इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।



पौधों मे आवश्यक महत्वपूर्ण पोषक तत्वो के कार्य व कमी के लक्षण

1. नत्रजन (N)

नाइट्रोजन से प्रोटीन बनती है, जो जीव द्रव्य का अभिन्न अंग है। यह पर्ण हरित के निर्माण में भी भाग लेती है। नाइट्रोजन का पौधों की वृद्धि एवं विकास में योगदान इस तरह से है:

  • यह पौधों को गहरा हरा रंग प्रदान करता है ।
  • वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा मिलता है ।
  • अनाज तथा चारे वाली फसलों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है ।
  • यह दानो के बनने में मदद करता है ।
  • सभी जीवित ऊतकों यानि जड़, तना, पत्ति की वृद्दि और विकास में सहायक है।
  • क्लोरोफिल, प्रोटोप्लाज्मा प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्लों का एक महत्वपूर्ण अवयव है।
  • पत्ती वाली सब्जियों की गुणवत्ता में सुधार करता है।

नत्रजन-कमी के लक्षण

  • पौधों मे प्रोटीन की कमी होना व हल्के रंग का दिखाई पड़ना । निचली पत्तियाँ पड़ने लगती है, जिसे क्लोरोसिस कहते हैं।
  • पौधे की बढ़वार का रूकना, कल्ले कम बनना, फूलों का कम आना।
  • फल वाले वृक्षों का गिरना। पौधों का बौना दिखाई पड़ना। फसल का जल्दी पक जाना।

2. फॉस्फोरस (P)

  • फॉस्फोरस की उपस्थिति में कोशा विभाजन शीघ्र होता है। यह न्यूक्लिक अम्ल, फास्फोलिपिड्स व फाइटीन के निर्माण में सहायक है। प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।
  • यह कोशा की झिल्ली, क्लोरोप्लास्ट तथा माइटोकान्ड्रिया का मुख्य अवयव है।
  • फास्फोरस मिलने से पौधों में बीज स्वस्थ पैदा होता है तथा बीजों का भार बढ़ना, पौधों में रोग व कीटरोधकता बढती है.
  • फास्फोरस के प्रयोग से जड़ें तेजी से विकसित तथा सुद्दढ़ होती हैं । पौधों में खड़े रहने की क्षमता बढ़ती हैं।
  • इससे फल शीघ्र आते हैं, फल जल्दीबनते है व दाने शीघ्र पकते हैं।
  • यह नत्रजन के उपयोग में सहायक है तथा फलीदार पौधों में इसकी उपस्थिति से जड़ों की ग्रंथियों का विकास अच्छा होता है।
  • पौधों के वर्धनशील अग्रभाग, बीज और फलों के विकास हेतु आवश्यक है। पुष्प विकास में सहायक है।
  • कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक है। जड़ों के विकास में सहायक होता है।
  • न्यूक्लिक अम्लों, प्रोटीन, फास्फोलिपिड और सहविकारों का अवयव है।
  • अमीनों अम्लों का अवयव है।

फॉस्फोरस-कमी के लक्षण:-

  • पौधे छोटे रह जाते हैं, पत्तियों का रंग हल्का बैगनी या भूरा हो जाता है।फास्फोरस गतिशील होने के कारण पहले ये लक्षण पुरानी (निचली) पत्तियों पर दिखते हैं।
  • दाल वाली फसलों में पत्तियां नीले हरे रंग की हो जाती हैं ।
  • पौधो की जड़ों की वृद्धि व विकास बहुत कम होता है कभी-कभी जड़े सूख भी जाती हैं ।
  • अधिक कमी में तने का गहरा पीला पड़ना, फल व बीज का निर्माण सही न होना।
  • इसकी कमी से आलू की पत्तियाँ प्याले के आकार की, दलहनी फसलों की पत्तियाँ नीले रंग की तथा चौड़ी पत्ती वाले पौधे में पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है।

3. पोटैशियम (K)

  • जड़ों को मजबूत बनाता है एवं सूखने से बचाता है। फसल में कीट व रोग प्रतिरोधकता बढ़ाता है। पौधे को गिरने से बचाता है।
  • स्टार्च व शक्कर के संचरण में मदद करता है। पौधों में प्रोटीन के निर्माण में सहायक है।
  • अनाज के दानों में चमक पैदा करता है। फसलो की गुणवत्ता में वृद्धि करता है । आलू व अन्य सब्जियों के स्वाद में वृद्धि करता है । सब्जियों के पकने के गुण को सुधारता है । मृदा में नत्रजन के कुप्रभाव को दूर करता है।
  • एंजाइमों की क्रियाशीलता बढाता है।
  • ठण्डे और बादलयुक्त मौसम में पौधों द्वारा प्रकाश के उपयोग में वृद्धि करता है, जिससे पौधों में ठण्डक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है।
  • कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण, प्रोटीन संश्लेषण और इनकी स्थिरता बनाये रखने में मदद करता है।
  • पौधों की रोग प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि होती है।
  • इसके उपयोग से दाने आकार में बड़े हो जाते है और फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

पोटैशियम-कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ भूरी व धब्बेदार हो जाती हैं तथा समय से पहले गिर जाती हैं।
  • पत्तियों के किनारे व सिरे झुलसे दिखाई पड़ते हैं।
  • इसी कमी से मक्का के भुट्टे छोटे, नुकीले तथा किनारोंपर दाने कम पड़ते हैं। आलू में कन्द छोटे तथा जड़ों का विकास कम हो जाता है
  • पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया कम तथा श्वसन की क्रिया अधिक होती है।

4. कैल्सियम (Ca)

  • यह गुणसूत्र का संरचनात्मक अवयव है। दलहनी फसलों में प्रोटीन निर्माण के लिए आवश्यक है।
  • यह तत्व तम्बाकू, आलू व मूँगफली के लिए अधिक लाभकारी है।
  • इससे पौधों में कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है।
  • कोशिका भित्ति का एक प्रमुख अवयव है, जो कि सामान्य कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक होता है।
  • कोशिका झिल्ली की स्थिरता बनाये रखने में सहायक होता है।
  • एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
  • पौधों में जैविक अम्लों को उदासीन बनाकर उनके विषाक्त प्रभाव को समाप्त करता है।
  • कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद करता है।

कैल्सियम-कमी के लक्षण

  • नई पत्तियों के किनारों का मुड़ व सिकुड़ जाना। अग्रिम कलिका का सूख जाना।
  • जड़ों का विकास कम तथा जड़ों पर ग्रन्थियों की संख्या में काफी कमी होना।
  • फल व कलियों का अपरिपक्व दशा में मुरझाना।

5. मैग्नीशियम (Mg)

  • क्रोमोसोम, पोलीराइबोसोम तथा क्लोरोफिल का अनिवार्य अंग है।
  • पौधों के अन्दर कार्बोहाइड्रेट संचालन में सहायक है।
  • पौधों में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा के निर्माण मे सहायक है।
  • चारे की फसलों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • क्लोरोफिल का प्रमुख तत्व है, जिसके बिना प्रकाश संश्लेषण (भोजन निर्माण) संभव नहीं है।
  • कार्बोहाइट्रेड-उपापचय, न्यूक्लिक अम्लों के संश्लेषण आदि में भाग लेने वाले अनेक एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
  • फास्फोरस के अवशोषण और स्थानांतरण में वृद्दि करता है।

मैग्नीशियम-कमी के लक्षण

  • पत्तियाँ आकार में छोटी तथा ऊपर की ओर मुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं।
  • दलहनी फसलों में पत्तियो की मुख्य नसों के बीच की जगह का पीला पड़ना।

6. गन्धक (सल्फर) (S)

  • यह अमीनो अम्ल, प्रोटीन (सिसटीन व मैथिओनिन), वसा, तेल एव विटामिन्स के निर्माण में सहायक है।
  • विटामिन्स (थाइमीन व बायोटिन), ग्लूटेथियान एवं एन्जाइम 3ए22 के निर्माण में भी सहायक है। तिलहनी फसलों में तेल की प्रतिशत मात्रा बढ़ाता है।
  • यह सरसों, प्याज व लहसुन की फसल के लिये आवश्यक है। तम्बाकू की पैदावार 15-30प्रतिशत तक बढ़ती है।
  • प्रोटीन संरचना को स्थिर रखने में सहायता करता है।
  • तेल संश्लेषण और क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है।
  • विटामिन के उपापचय क्रिया में योगदान करता है।

गन्धक-कमी के लक्षण

  • नई पत्तियों का पीला पड़ना व बाद में सफेद होना तने छोटे एवं पीले पड़ना।
  • मक्का, कपास, तोरिया, टमाटर व रिजका में तनों का लाल हो जाना।
  • ब्रेसिका जाति (सरसों) की पत्तियों का प्यालेनुमा हो जाता हैं।

7. लोहा (आयरन) (Fe)

  • लोहा साइटोक्रोम्स, फैरीडोक्सीन व हीमोग्लोबिन का मुख्य अवयव है।
  • क्लोरोफिल एवं प्रोटीन निर्माण में सहायक है।
  • यह पौधों की कोशिकाओं में विभिन्न ऑक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं मे उत्प्रेरक का कार्य करता है। श्वसन क्रिया में आक्सीजन का वाहक है।
  • पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण और रख रखाव के लिए आवश्यक होता है।
  • न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में एक आवश्यक भूमिका निभाता है।
  • अनेक एंजाइमों का आवश्यक अवयव है।

लोहा-कमी के लक्षण

  • पत्तियों के किनारों व नसों का अधिक समय तक हरा बना रहना।
  • नई कलिकाओं की मृत्यु को जाना तथा तनों का छोटा रह जाना।
  • धान में कमी से क्लोरोफिल रहित पौधा होना, पैधे की वृद्धि का रूकना।

8. जस्ता (जिंक) (Zn)

  • कैरोटीन व प्रोटीन संश्लेषण में सहायक है।
  • हार्मोन्स के जैविक संश्लेषण में सहायक है।
  • यह एन्जाइम (जैसे-सिस्टीन, लेसीथिनेज, इनोलेज, डाइसल्फाइडेज आदि) की क्रियाशीलता बढ़ाने में सहायक है। क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
  • पौधों द्वारा फास्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है
  • न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन-संश्लेषण में मदद करता है।
  • हार्मोनों के जैव संश्लेषण में योगदान करता है।
  • अनेक प्रकार के खनिज एंजाइमों का आवश्यक अंग है।

जस्ता-कमी के लक्षण

  • पत्तियों का आकार छोटा, मुड़ी हुई, नसों मे निक्रोसिस व नसों के बीच पीली धारियों का दिखाई पड़ना।
  • गेहूँ में ऊपरी 3-4 पत्तियों का पीला पड़ना।
  • फलों का आकार छोटा व बीज कीपैदावार का कम होना।
  • मक्का एवं ज्वार के पौधों में बिलकुल ऊपरी पत्तियाँ सफेद हो जाती हैं।
  • धान में जिंक की कमी से खैरा रोग हो जाता है। लाल, भूरे रंग के धब्बे दिखते हैं।

9. ताँबा (कॉपर ) (Cu)

  • यह इंडोल एसीटिक अम्ल वृद्धिकारक हार्मोन के संश्लेषण में सहायक है।
  • ऑक्सीकरण-अवकरण क्रिया को नियमितता प्रदान करता है।
  • अनेक एन्जाइमों की क्रियाशीलता बढ़ाता है। कवक रोगो के नियंत्रण में सहायक है।
  • पौधों में विटामिन ‘ए’ के निर्माण में वृद्दि करता है।
  • अनेक एंजाइमों का घटक है।

ताँबा-कमी के लक्षण

  • फलों के अंदर रस का निर्माण कम होना। नीबू जाति के फलों में लाल-भूरे धब्बे अनियमित आकार के दिखाई देते हैं।
  • अधिक कमी के कारण अनाज एवं दाल वाली फसलों में रिक्लेमेशन नामक बीमारी होना।

10. बोरान (B)

  • पौधों में शर्करा के संचालन मे सहायक है। परागण एवं प्रजनन क्रियाओ में सहायक है।
  • दलहनी फसलों की जड़ ग्रन्थियों के विकास में सहायक है।
  • यह पौधों में कैल्शियम एवं पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है।
  • यह डी.एन.ए., आर.एन.ए., ए.टी.पी. पेक्टिन व प्रोटीन के संश्लेषण में सहायक है।
  • प्रोटीन-संश्लेषण के लिये आवश्यक है।
  • कोशिका –विभाजन को प्रभावित करता है।
  • कैल्शियम के अवशोषण और पौधों द्वारा उसके उपयोग को प्रभावित करता है।
  • कोशिका झिल्ली की पारगम्यता बढ़ाता है

बोरान-कमी के लक्षण

  • पौधे की ऊपरी बढ़वार का रूकना, इन्टरनोड की लम्बाई का कम होना।
  • पौधों मे बौनापन होना। जड़ का विकास रूकना।
  • बोरान की कमी से चुकन्दर में हर्टराट, फूल गोभी मे ब्राउनिंग या खोखला तना एवं तम्बाखू में टाप- सिकनेस नामक बीमारी का लगना।

11. मैंगनीज (Mn)

  • क्लोरोफिल, कार्बोहाइड्रेट व मैंगनीज नाइट्रेट के स्वागीकरण में सहायक है।
  • पौधों में आॅक्सीकरण-अवकरण क्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
  • प्रकाश संश्लेषण में सहायक है।
  • प्रकाश और अन्धेरे की अवस्था में पादप कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
  • नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ा देता है।
  • पौधों में होने वाली अनेक महत्वपूर्ण एंजाइमयुक्त और कोशिकीय प्रतिक्रियओं के संचालन में सहायक है।
  • कार्बोहाइट्रेड के आक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन आक्साइड और जल का निर्माण करता है।

मैंगनीज-कमी के लक्षण

  • पौधों की पत्तियों पर मृत उतको के धब्बे दिखाई पड़ते हैं।
  • अनाज की फसलों में पत्तियाँ भूरे रग की व पारदर्शी होती है तथा बाद मे उसमे ऊतक गलन रोग पैदा होता है।
  • जई में भूरी चित्ती रोग, गन्ने का अगमारी रोग तथा मटर का पैंक चित्ती रोग उत्पन्न होते हैं।

12. क्लोरीन (Cl)

  • यह पर्णहरिम के निर्माण में सहायक है। पोधो में रसाकर्षण दाब को बढ़ाता है।
  • पौधों की पंक्तियों में पानी रोकने की क्षमता को बढ़ाता है।

क्लोरीन-कमी के लक्षण

  • गमलों में क्लोरीन की कमी से पत्तियों में विल्ट के लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
  • कुछ पौधों की पत्तियों में ब्रोन्जिंग तथा नेक्रोसिस रचनायें पाई जाती हैं।
  • पत्ता गोभी के पत्ते मुड़ जाते हैं तथा बरसीम की पत्तियाँ मोटी व छोटी दिखाई पड़ती हैं।

13. मालिब्डेनम (Mo)

  • यह पौधों में एन्जाइम नाइट्रेट रिडक्टेज एवंनाइट्रोजिनेज का मुख्य भाग है।
  • यह दलहनी फसलों में नत्रजन स्थिरीकरण, नाइट्रेट एसीमिलेशन व कार्बोहाइड्रेट मेटाबालिज्म क्रियाओ में सहायक है।
  • पौधों में विटामिन-सी व शर्करा के संश्लेषण में सहायक है।

मालिब्डेनम-कमी के लक्षण

  • सरसों जाति के पौधो व दलहनी फसलों में मालिब्डेनम की कमी के लक्षण जल्दी दिखाई देते हैं।
  • पत्तियों का रंग पीला हरा या पीला हो जाता है तथा इसपर नारंगी रंग का चितकबरापन दिखाई पड़ता है।
  • टमाटर की निचली पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं तथा बाद में मोल्टिंग व नेक्रोसिस रचनायें बन जाती हैं।
  • इसकी कमी से फूल गोभी में व्हिपटेल एवं मूली मे प्याले की तरह रचनायें बन जाती हैं।
  • नीबू जाति के पौधो में माॅलिब्डेनम की कमी से पत्तियों मे पीला धब्बा रोग लगता हैं।

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