औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम, 2019

हाल ही में लोकसभा अध्यक्ष के सामने श्रम संबंधी संसदीय समिति ने नियम-280 के तहत औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम, 2019 (The Industrial Relations Code-2019) पर एक प्रावधान प्रस्तुत की है। इस संहिता में श्रमिक संगठनों के नामांकन की प्रक्रिया, हड़ताल और बंद के लिये नोटिस की अवधि तथा औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिये औद्योगिक न्यायाधिकरण एवं राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण की स्थापना जैसे प्रावधान किये गए हैं।

औद्योगिक संबंध संहिता अधिनियम – मुख्य बिंदु

  • औद्योगिक संबंध संहिता के प्रस्ताव में ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 (Trade Union Act of 1926), औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम, 1946 (Industrial Employment (Standing Order) Act of 1946) तथा औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act of 1947) के प्रावधानों को मिश्रित, सरलीकृत तथा तर्कसंगत को समाहित किया गया है।
  • वर्ष 2018 में सरकार ने केंद्रीय श्रमिक कानूनों को चार संहिताओं (Codes) में संहिताबद्ध करने का प्रस्ताव किया था जो इस प्रकार हैं।
    • वेतन संहिता (Code on Wages)
    • औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code)
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code)
    • पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code)
  • सरकार ने पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य शर्त संहिता को जुलाई 2019 में लोक सभा में प्रस्तुत किया, जबकि हाल ही में वेतन संहिता, 2019 को संसद ने पारित किया है।

प्रावधान का मुख्य तथ्य :-

  • “छंटनी और तालाबंदी” से संबंधित प्रावधानों की जाँच पर समिति मंत्रालय के यह तर्क दिया है कि बिजली, कोयले इत्यादि की कमी मज़दूरों की वजह से नहीं होती है, इसलिये उनकी अनुपलब्धता के कारण कामकाज ठप होने की स्थिति में श्रमिकों को मुआवजा दिया जाना चाहिये।
  • आँगनबाड़ी, आशा, मध्याह्न भोजन आदि कार्यक्रमों से जुड़े हुए कर्मियों को भी कामगार की परिभाषा के अन्दर लाया जाना चाहिए।
  • कामगार/कर्मी की को पर्यवेक्षकों, प्रबंधकों आदि में समाहित करना चाहिए।
  • बिजली की कमी, मशीनरी के टूटने की स्थिति में मज़दूरों को 45 दिनों के लिये 50% मज़दूरी का भुगतान उचित हो सकता है। नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच एक समझौते के बाद इस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
  • प्राकृतिक आपदाओं के दौरान श्रमिकों की मज़दूरी का भुगतान तब तक अनुचित होगा जब तक उद्योग पुनः पूर्ण रूप से संचालित न होने लगे। इन प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप, बाढ़, सुपर साइक्लोन इत्यादि शामिल हैं।
  • कानून उचित और न्याय संगत होना चाहिये और किसी भी ऐसी परिस्थिति में जो नियोक्ता के नियंत्रण से अलग हो, उसे वेतन का इतना हिस्सा प्रदान करने हेतु मजबूर नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि कर्मचारियों को नियोक्ताओं को भी प्रभावित करता है।
  • COVID-19 की वजह से देशभर में लॉकडाउन चल रहा है। समिति ने COVID-19 को प्राकृतिक आपदा में शामिल करने का सुझाव दिया है।

औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक का लाभ

  • इस विधेयक में ‘निश्चित अवधि के रोज़गार’ (Fixed Term Employment) की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। इस विधेयक के लागू होने के बाद कंपनियाँ श्रमिकों को प्रत्यक्ष तौर पर एक निश्चित अवधि के लिये अनुबंधित कर सकेंगी।
  • ‘निश्चित अवधि के रोज़गार’ के तहत अनुबंधित कर्मचारियों को नोटिस अवधि की कोई सुविधा नहीं दी जाएगी तथा छँटनी होने पर मुआवज़े का भुगतान भी नहीं किया जाएगा।
  • किसी कंपनी, जिसमें 100 या उससे अधिक कर्मचारी कार्य कर रहे हों, को कर्मचारियों की संख्या में छँटनी के लिये सरकार से अनुमति लेनी आवश्यक होगी।
  • इसमें जोड़े गए एक प्रावधान के तहत कर्मचारियों की इस संख्या को सरकार अधिसूचना के माध्यम से बदल सकती है।
  • वर्ष 2018 में औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक के प्रस्तावित मसौदे में यह सीमा 300 कर्मचारी थी।
  • इसके तहत दो सदस्यीय न्यायाधिकरण की स्थापना की जाएगी जो किसी महत्त्वपूर्ण मामले पर संयुक्त रूप से निर्णय लेगा, जबकि शेष मामलों पर एकल सदस्य द्वारा अधिनिर्णय लिया जाएगा।
  • ऐसे विवाद जिनमें दंड के रूप में जुर्माने का प्रावधान है, न्यायाधिकरण पर बोझ कम करने के लिये उन पर निर्णय लेने का अधिकार सरकारी अधिकारियों को दिया जाएगा।

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