ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई

ब्रह्मांड की उत्पत्ति के विषय में बहुत सिद्धांत दिए गए हैं, वैज्ञानिकों का यह मत था कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति तारों से छुपी है। तारा ब्रह्मांड में स्थित एक ऐसा विशाल पिण्ड होता है जिसके पास स्वयं की ऊर्जा विध्यमान होती है। जो नाभिकीय संलयन के कारण विकसित होती है। जिसमें H (हाइड्रोजन) के परमाणु मिलकर हिलियम परमाणु को जन्म देते हैं तथा ऊर्जा ऊष्मा एवं प्रकाश के रूप में उत्सर्जित करते हैं। इसे मुख्यतः दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है:-

  • एक तारा सिद्धांत (Monistic Theory)
  • दो तारा सिद्धांत (Dualistic Theory)

एक तारा सिद्धांत:-

एक तारा सिद्धांत से मानते थे कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति एक तारे हुई है। इसमें प्रमुख सिद्धांत ‘इमानुअल काण्ट’ तथा ‘प्लेप्लेस’ ने प्रस्तुत किया है।

काण्ट की गैसीय विचारधारा:-

काण्ट ने 1756 में अपनी पुस्तक General Natural History Of The World तथा Theory Of Heaven में पृथ्वी की उत्पत्ति की विचारधारा प्रस्तुत की है। इनके सिद्धांत के मुताबिक ब्रह्मांड (Universe) में छोटे-छोटे गति हीन कण उपस्थित थे। गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ये छोटे पिण्ड एक दूसरे की ओर आकर्षित होने लगे तथा एक दूसरे से टकराने लगे जिसके परिणामस्वरूप घर्षण बल की उत्पत्ति हुई तथा ऊष्मा उत्पन्न होने लगी। छोटे-छोटे पिण्ड मिलकर बड़े पिण्डों में तथा बड़े पिण्ड मिलकर विशाल पिण्ड में परिवर्तित होने लगे। ये प्रक्रिया चलती गई जो नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया थी।

अंततः एक विशाल गैसीय पिण्ड की उत्पत्ति हुई जो अपनी अक्ष पर घूर्णन गति कर रहा था। ऊष्मा की वृद्धि के कारण इस पिण्ड की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी जिसके कारण आप केंद्रीय बल (केंद्र से बाहर की ओर) अभिकेंद्रीय बल (केंद्र की ओर लगने वाला बल) से अधिक होने लगा जिसके परिणाम स्वरूप छल्ले के आकार का पदार्थ गैसीय पिण्ड से बाहर की ओर उत्सर्जित हुआ तथा यह प्रक्रिया 9 बार घटित हुई। उत्सर्जित होने वाले गैसीय पिण्ड का शेष भाग वर्तमान का सूर्य हो गया।

लेप्लेस की नोबुला विचारधारा (नोबुला विचारधारा):-

लेलेप्स ने काण्ट की विचारधारा का संशोधित रूप अपनी पुस्तक Exposition Of The World System में प्रस्तुत किया। इनके सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड (Universe) में एक विशाल गैसीय पिण्ड (नोबुला) विध्यमान था, जिसे लेप्लेस ने नोबुला नाम दिया। नोबुला अपनी अक्ष पर घुर्णन गति कर रहा था तथा ऊर्जा में वृद्धि के कारण इसकी घुर्णन गति में वृद्धि होती जा रही थी।

अपकेंद्रीय बल (केंद्र से बाहर लगने वाला बल) अभिकेंद्रीय बल से अधिक हो गया जिसके परिणाम स्वरूप छल्ले आकार का पदार्थ बाहर की ओर उत्सर्जित हुआ तथा इसी प्रक्रिया के कारण उत्सर्जित छल्ला 9 छल्लों में परिवर्तित हो गया जो नोबुला के चारों ओर चक्कर लगाने लगे। ठण्डे होने के पश्चात् उत्सर्जित 9 छल्ले वर्तमान के ग्रह हो गए तथा नोबुला का शेष भाग वर्तमान का सूर्य बन गया।

दो तारा सिद्धांत:-

दो तारा सिद्धांत से मानते थे कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की उत्पत्ति दो तारे से हुई है जिस में बफ़न (BUFFON) नामक वैज्ञानिक ने “टकराव सिद्धांत” प्रस्तुत किया जिसे अत्यधिक प्रसिद्धि नहीं मिल पाई। दो तारा सिद्धांत में सबसे मान्य सिद्धांत “जेम्स जीन” नामक वैज्ञानिक ने प्रस्तुत किया है।

जेम्स जीन की ज्वारीय विचारधारा (Tidal Hypothesis Of James Jean):-

जेम्स जीन ने अपनी विचारधारा दो तारा सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत की थी। जेम्स जीन की विचारधारा को 1929 में जेफरी नामक वैज्ञानिक ने संशोधित किया। जेम्स जीन के अनुसार ब्रह्मांड (Universe) में एक गैसीय पिण्ड विध्यमान था जो अपनी अक्ष पर घूर्णन गति पर कर रहा था। इसे जेम्स जीन ने प्राचीन सूर्य (Proto Sun) का नाम दिया। इस तारे के निकट से एक विशाल तारा गुजरा जिसे भेदता तारा कहा गया। ‘भेदता तारा’ जैसे-जैसे प्राचीन सूर्य के निकट आ गया था। प्राचीन सूर्य पर गुरूत्वाकर्षण बल कार्य करने लगा जिसके कारण प्राचीन सूर्य से कुछ पदार्थ बाहर की ओर उत्सर्जित होने लगा। जैसे-जैसे भेदता तारा निकट आ रहा था बल का मान बढ़ता जा रहा था।

जब दोनों तारे निकटतम दूरी पर विध्यमान थे उस समय सर्वाधिक मात्रा में प्राचीन सूर्य से पदार्थ का उत्सर्जन हुआ तथा जैसे-जैसे भेदता तारा दूर जा रहा था उत्सर्जित होने वाले पदार्थों की मात्रा घटने लगी। जब भेदता तारा प्राचीन सूर्य से अत्यधिक दूरी पर पहुंच गया तो पदार्थ का उत्सर्जन समाप्त हो गया तथा उत्सर्जित होने वाला पदार्थ प्राचीन सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगा। उत्सर्जित पदार्थ ठंडा होकर 9 गोलों में परिवर्तित हो गया जिसे ग्रह कहा गया। जेम्स जीन के अनुसार उत्सर्जित पदार्थ का आकार वर्तमान में स्थित सौर्य परिवार के भांति है जिसके मध्य में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पति तथा दोनों किनारों पर सबसे छोटे ग्रह बुद्ध तथा यम स्थित है।

बिग बैंग सिद्धांत (विशाल विस्फोट सिद्धांत-Big Bang Theory)

इस सिद्धांत का प्रतिपादन ‘जॉर्ज लेमेटियर’ नामक वैज्ञानिक ने की थी. ये सिद्धांत 1950 में प्रतिपादित हुआ। 1960 में इसका संशोधन हुआ तथा मई 1992 में इसे मान्यता प्राप्त हुई। लगभग 15 बिलियन वर्ष पूर्व ब्रह्मांड (Universe) में स्थित समस्त पदार्थ ब्रह्मांड (Universe) के केंद्र की ओर आकर्षित होने लगे तथा नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के कारण ब्रह्मांड में स्थित समस्त पदार्थ ब्रह्मांड के केंद्र पर केंद्रित हो गया। नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के कारण ऊर्जा तीव्रता से वृद्धि कर रही थी जिसके परिणाम स्वरूप एक विशाल धमाका हुआ जिसे बिग बैंग कहा गया।

ब्रह्मांड (Universe) में केंद्रित पदार्थ विखंडित होकर एक दूसरे से दूर जाने लगा अर्थात विखंडित पदार्थ का विस्तार होने लगा। विखंडित पदार्थ के भाग तारों में परिवर्तित हो गए जो आज की फैलती हुई अवस्था में पाए जाते हैं। ब्रह्मांड (Universe) सापेक्षिक रूप से आकार एवं आयाम में बहुत बड़ा है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार ब्रह्मांड (Universe) में सौ बिलियन आकाशगंगा समाहित हो सकते हैं तथा प्रत्येक आकाश गंगा में औसतन सौ विलियन तारे समाविष्ट हो सकते हैं। असंख्य तारे, ग्रह, उल्का पिंड, पुच्छल तारा, ठोस एवं गैसीय कण, सभी ‘आकाशीय पिण्ड’ कहलाते हैं। ये सभी पिण्ड ब्रह्माण्ड (Universe) में एक निश्चित कक्षा में गति करते हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • इनके बीच की दूरी को मापने के लिए हम प्रकाश वर्ष (Light Year) का प्रयोग एक मात्रक के रूप में करते हैं।
  • एक प्रकाश वर्ष से तात्पर्य वर्ष भर में प्रकाश द्वारा तय की दूरी से है।
  • यह 9.46 × 1015 मी. अथवा 9500 बिलियन कि.मी. के बराबर होता है।
  • पारसेक दूरी का मात्रक है।
  • 1 पारसेक = 3.26 प्रकाश वर्ष

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