अनुच्छेद- 22 | भारत का संविधान

अनुच्छेद 22 (Article 22 in Hindi) – कुछ दशाओं में गिरपतारी और निरोध से संरक्षण

[1] किसी व्यक्ति को जो गिरफ्‍तार किया गया है, ऐसी गिरफ्‍तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।

[2] प्रत्येक व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्‍तारी से 24 घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।

[3] खंड (1) और खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो–

  • (क) तत्समय शत्रु अन्यदेशीय है या
  • (ख) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन गिरपतार या निरुद्ध किया गया है।

[4] निवारक निरोध का उपबंध करने वाली कोई विधि किसी व्यक्ति का तीन मास से अधिक अवधि के लिए तब तक निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जब तक कि-

  • (क) ऐसे व्यक्तियों से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित हैं, मिलकर बने सलाहकार बोर्ड ने तीन मास की उक्त अवधि की समाप्ति से पहले यह प्रतिवेदन नहीं दिया है कि उसकी राय में ऐसे निरोध के लिए पर्याप्त कारण हैं :
    • परंतु इस उपखंड की कोई बात किसी व्यक्ति का उस अधिकतम अवधि से अधिक अवधि के लिए निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जो खंड (7) के उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की गई है ; या
  • (ख) ऐसे व्यक्ति को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अनुसार निरुद्ध नहीं किया जाता है।

[5] निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किए गए आदेश के अनुसरण में जब किसी व्यक्ति को निरुद्ध किया जाता है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशक्य शीघ्र उस व्यक्ति को यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा।

[6] खंड (5) की किसी बात से ऐसा आदेश, जो उस खंड में निर्दिष्ट है, करने वाले प्राधिकारी के लिए ऐसे तनयों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होगा जिन्हें प्रकट करना ऐसा प्राधिकारी लोकहित के विरुद्ध समझता है।

[7] संसद विधि द्वारा विहित कर सकेगी कि–

  • (क) किन परिस्थितियों के अधीन और किस वर्ग या वर्गों के मामलों में किसी व्यक्ति को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन तीन मास से अधिक अवधि के लिए खंड (4) के उपखंड (क) के उपबंधों के अनुसार सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना निरुद्ध किया जा सकेगा ;
  • (ख) किसी वर्ग या वर्गों के मामलों में कितनी अधिकतम अवधि के लिए किसी व्यक्ति को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध किया जा सकेगा ; और
  • (ग) खंड (4) के उपखंड (क) के अधीन की जाने वाली जांच में सलाहकार बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया क्या होगी।

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अनुच्छेद 22 और फ़ौजदारी कानून में नागरिक को प्राप्त मौलिक अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 22 और फ़ौजदारी कानून में प्रत्येक गिरफ़्तार व्यक्ति को निम्नलिखित मौलिक अधिकार दिए गए हैं:-

  • गिरफ़्तारी के समय उसे यह जानने का अधिकार है कि गिरफ़्तारी किस कारण से की जा रही है।
  • गिरफ़्तारी के 24 घंटों के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का अधिकार।
  • पुलिस हिरासत में दिए गए इकबालिया बयान को आरोपी के खिलाफ़ सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
  • गिरफ़्तारी के दौरान या हिरासत में किसी भी तरह के दुर्व्यवहार या यातना से बचने का अधिकार।
  • 15 साल से कम उम्र के बालक और किसी भी महिला को केवल सवाल पूछने के लिए थाने में नहीं बुलाया जा सकता।
  • प्रत्येक व्यक्ति को एक वकील के जरिए अपना बचाव करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।

सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी हिरासत और पूछताछ के बारे में पुलिस एवं अन्य संस्थाओं के लिए कुछ खास शर्त और प्रक्रियाएं तय की; इन नियमों को डी.के. बसु दिशानिर्देश कहा जाता है।

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संविधान संशोधन – 46वाँ

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