जल विद्युत ऊर्जा परियोजना

जम्मू-कश्मीर के जल विद्युत ऊर्जा के इतिहास में लगभग 4134 मेगावाट क्षमता की पांच जल बिधुत ऊर्जा की परियोजनाओं हेतु किया गया करार अब तक का सबसे बड़ा कदम है। उक्त पाँच परियोजनाओं में सबसे बड़ी परियोजना लगभग 1856 मेगावाट क्षमता की सावलकोट परियोजना सबसे बड़ी है। सावलकोट परियोजना देश की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है।

जल विद्युत ऊर्जा (hydroelectric power) क्या है?

जल विद्युत ऊर्जा (hydroelectric power) में जल की स्थिजित एवं गतिज ऊर्जा का इस्तेमाल करके बिजली उत्पन्न की जाती है। इस तरह बिजली उत्पादन में लागत काफी कम आती है क्योंकि इसकी लागत अपेक्षाकृत कम है, जो इसे अक्षय ऊर्जा का एक प्रतिस्पर्धी स्रोत बनाती है।

दरअसल जल विद्युत संयत्र में जल को एक उच्चतर स्तर पर संग्रहित किया जाता है। फिर इस जल को पाइपों के माध्यम से निचले स्तर पर भेजा जाता है। इस गिरते हुए जल की सहायता से टरबाईनों को चलाया जाता है। इससे टरबाइन की यांत्रिक ऊर्जा विद्युत में परिवर्तित होती है।

प्रस्तावित ऊर्जा परियोजनाओं से लाभ

  • उक्त पाँच परियोजनाओं पर करार होने से जम्मू-कश्मीर आगामी वर्षों में जल बिधुत ऊर्जा क्षेत्र का बड़ा केंद्र बनेगा।
  • इन परियोजनाओं से राज्य को बिजली के अधिशेष से राजस्व भी प्राप्त होगा।
  • वहाँ के उद्योगों को पर्याप्त मात्र में ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। जिससे यहाँ तीव्र विकास होगा।
  • इन परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाली बिजली से ग्रिड स्थायित्व में मदद मिलेगी और बिजली की आपूर्ति में सुधार होगा।
  • इन परियोजनाओं की निर्माणात्मक गतिविधियों से भारी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। जिससे राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में मदद मिलेगी।

जल विद्युत ऊर्जा परियोजनाओं से जुड़ी समस्याएँ

  • जल बिधुत ऊर्जा के उत्पादन हेतु भारी मात्रा में जल को एकत्रित करने की आवश्यकता होती है। जिससे बांध का निर्माण किया जाता है। ये बांध आस-पास के क्षेत्रों को जलमग्न कर देते हैं, जिससे विस्थापन की समस्या उत्पन्न होती है।
  • विस्थापित हुए लोगों में अलगाववाद आदि जैसी भावनाएं उत्पन्न हो सकती हैं, जो आंतरिक सुरक्षा के लिए घातक है।
  • भारी मात्र में एकत्रित जल भूकम्प जैसी आपदाओं को भी जन्म दे सकता है।
  • बांध आदि के निर्माण से बाढ़ का खतरा भी बना रहता है।
  • जल विद्युत ऊर्जा का उत्पादन पहाड़ी क्षेत्रों में ही संभव है।

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