भारत का संविधान

भारतीय संविधान की रचना एक संविधान सभा द्वारा हुई है। यह सभा एक अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित संस्था थी। इस सभा ने भारतीय संविधान में शामिल किए जाने हेतु कुछ आदर्श लोकतंत्र के प्रति कटिबद्धता, सभी भारतवासियों के लिए न्याय, समानता तथा स्वतंत्रता की गारंटी आदि का ध्यान रखते हुए सुनिश्चित किए गए। इस सभा के द्वारा यहभी घोषणा की गई कि भारत एक प्रभुसत्ता संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य होगा। भारतीयसंविधान का प्रारंभ एक प्रस्तावना के साथ होता है। प्रस्तावना के अंतर्गत संविधान केआदर्श, उद्देश्य तथा मुख्य सिद्धांतों का उल्लेख है।

‘‘प्रस्तावना भारतीय संविधान का सबसे बहुमूल्य अंग है, यह संविधान की आत्मा है, यह संविधान की कुंजी है तथा यह वह उचित मापदण्ड है, जिसमें संविधान की सहजता नापी जाती है, यह स्वयं में पूर्ण है। हम चाहेंगे कि संविधान के सभी उपबन्धों को इसी प्रस्तावना की कसौटी से जांचना चाहिए और तभी हम यह निर्णय कर पाएंगे संविधान हमारे समाज के लिए परिपूर्ण है या अधूरा?

भारतीय संविधान का इतिहास

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा जिसमें 3 मंत्री थे। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से आरम्भ कर दिया।

भारत का संविधान का निर्माण

  • भारत का संविधान एक संविधान सभा द्वारा निर्मित किया गया है। इस सभा कागठन 1946 में हुआ। संविधान सभा के सदस्य तत्कालीन प्रांतीय विधान सभाओं केसदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित हुए थे।
  • इसके अतिरिक्त ऐसे सदस्य भी थे जोरियासतों के शासकों द्वारा मनोनित किए गए थे। भारत की आजादी के साथ ही संविधान सभा एक पूर्ण प्रभुसत्ता संपन्न संस्था बन गई।
  • 1947 में देश के विभाजन के पश्चातसंविधान सभा में 31 दिसंबर 1947 को 299 सदस्य थे। इनमें से 229 सदस्यों का चुनाव प्रांतीय विधान सभाओं ने किया था; तथा शेष देशी रियासतों के शासकों ने मनोनित किए थे।
  • संविधान सभा के अधिकांश सदस्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से थे; स्वतंत्रता आंदोलन सभी प्रमुख नेता के सदस्य सभा के सदस्य थे।
  • संवि धान सभा के जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे।
  • संविधान सभा में कुल 12 अधिवेशन किए तथा अंतिम दिन 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किया; और संविधान बनने में 166 दिन बैठक की गई; इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी।
  • भारत के संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सभी 389 सदस्यो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई; इस सविधान में सर्वाधिक प्रभाव भारत शासन अधिनियम 1935 का है; इस में लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिये गए हैं।

देशी रियासतें – ब्रिटिश शासन के समय भारत के कुछ भाग सीधे ब्रिटिश नियंत्रण में नहीं थे। ऐसे लगभग 560 क्षेत्र थे; भातरीय रियासतें देशी शासकों के अधीन थीं। कश्मीर, हैद्रराबाद, पटियाला, ट्रावनकोर, मैसूर, बड़ौदा आदि बड़ी देशी रियासतें थी।

संविधान सभा की कार्य प्रणाली

  • संविधान सभा की अध्यक्षता सभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती थी। डा. राजेन्द्र प्रसाद इस संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए। सभा अनेकों समितियों तथा उपसमितियों की मदद से कार्य करती थी।
  • ये समितियाँ दो प्रकार की थीं –
    • कार्यविधि संबंधी
    • महत्वपूर्ण मुद्दों संबंधी।
  • इसके अतिरिक्त एक परामर्श समिति भी थी। इसमें सबसे महत्वपूण समिति प्रारूप समिति थी; जिसके अध्यक्ष डा. भीम राव अम्बेडकर थे। इस समिति का कार्य संविधान को लेखबद्ध करना था।
  • संवि धान सभा की बैठकें 2 वर्ष 11 महिने तथा 18 दिन के अंतराल में 166 बार हुई।

संविधान के उद्देश्य 

  • संविधान सभा, लगभग 200 वर्षों के औपनिवेशिक शासन, जन-आधारित स्वतंत्रतासंघर्ष, राष्ट्रीय आंदोलन, देश के विभाजन, व राष्ट्र-व्यापी सांप्रदायिक हिंसा की पृष्ठभूमिमें स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण कर रही थी।
  • इसलिए संविधान निर्माता, जनआकांक्षाओं की पूर्ति, देश की एकता व अखण्डता तथा लोकतांत्रिक समाज की स्थापना के प्रति सचेत थे। सभा के अंदर भी विभिन्न विचार धाराओं को मानने वाले सदस्य थे।
  • कुछ सदस्यों का झुकाव समाजवादी सिद्धांतों के प्रति था जबकि अन्य गांधीवादी दर्शन से प्रभावित थे। परंतु अधिकांश सदस्यों का दृष्टिकोण उदार था। आम सहमति बनाने के प्रयास होते रहते थे। ताकि संविधान बनने की प्रगति में बाधा न आए। उनका मुख्य लक्ष्य था भारत को एक ऐसा संविधान देना जो देश के लोगों के आदर्शों एवं विचारों को पूरा कर सकें।
  • विभिन्न मुद्दों तथा सिद्धांतों के प्रति आम सहमति बनाने तथा असहमति से बचने के भरपूर प्रयास संविधान सभा में किए गए। यह आम सहमति दिसम्बर 3, 1946 को ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ के रूप में पं नेहरू द्वारा प्रस्तुत की गई; तथा जनवरी 22, 1947 को लगभग सर्वसम्मति से अपनाई गई।
  • इन उद्देश्यों के आधार पर पर सभा ने 26 नवंबर 1949 कोअपना कार्य पूरा किया; तथा 26 जनवरी 1950 से संविधान लागू किया गया। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में; 31 दिसंबर, 1929 को लिए गए निर्णय के आधार पर 26 जनवरी,1930 को मनाए गए; प्रथम स्वाधीनता दिवस के ठीक 20 वर्ष बाद, 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणराज्य बना।

अत: 26 जनवरी 1950 की तिथि को ही संविधान के लागू होने की तिथि के रूप में निश्चित किया गया। 

सविंधान की प्रस्तावना

भारतीय संविधान की शुरूआत एक प्रस्तावना के साथ हुई है। प्रस्तावना किसी पुस्तक की भूमिका के समान है। भूमिका के रूप में प्रस्तावना संविधान के उपबंधों का भाग नहीं है परंतु यह संविधान निर्माण का उद्देश्यों व लक्ष्यों की व्याख्ता करती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना भी इसी रूप में है। इस प्रकार से प्रस्तावना संविधान की मार्गदर्शिका होती है। इस प्रस्तावना को श्री के.एम.मुशी ने संविधान की ‘‘राजनीतिक जन्म कुण्डली’’ कहा है।

  • 42 वें संवैधानिक संशोधन के पश्चात् प्रस्तावना
    • 1976 में 42वां संवैधानिक संशोधन हुआ था। इस संशोधन के द्वारा भरतीयसंविधान के मूल प्रस्तावना में तीन नये शब्द जोड़ा गया- समाजवादी, धर्मनिरपेक्षता और अखण्डता।

‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्म निपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार-अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवबंर, 1949 (मिती मार्गशीर्ष शुल्क सप्तमी, संवत् 2006 विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते है।’’

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के प्रमुख तत्व 

भारतीय संविधान का यह प्रस्तावना बहुत अधिक श्रेष्ठ रूप में संविधान निर्माताओं के मनोभावों को व्यक्त करती है; उच्चतम न्यायलय ने प्रस्तावना को ‘संविधान-निर्माताओं के उद्देश्य को प्रकट करने वाली कुंजी’ (Key to the Intention of the makers of the Act) कहा है; भारतीय संविधान की प्रस्तावना के प्रमुख तत्व हैं –

हम भारत के लोग

  • इस वाक्य से तीन बातें स्पष्ट होती हैं
    • प्रथम संविधान निर्माता भारतीय ही हैं कोई विदेशी नहीं,
    • द्वितीय भारतीयसंविधान भारतीय जनता की इच्छा का परिणाम है; और भारतीय जनता ने ही इसे राष्ट्र को समर्पित किया है और
    • तृतीय अन्तिम प्रभुसत्ता जनता में ही निहित है।
  • इसके अतिरिक्त ‘हम भारत के लोग’ वाक्यांश का अभिप्राय यह भी है; कि भारतीय जनता ने संविधान को बनाया है; इसलिए भारतीय संघ को कोई भी राज्य संविधान को न तो समाप्त कर सकता है; और न ही संविधान द्वारा स्थापित संघ से अपना संबंध-विच्छेद कर सकता है।
  • डॉ. अम्बेडकर के शब्दों में – ‘‘यह प्रस्तावना इस सदन के प्रत्येक सदस्य की इच्छानुसार यह स्पष्ट कर देती है; कि इस संविधान का आधार जनता है और इसमें निहित सत्ता व प्रभुता समस्त जनता के पास है।’’

संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न

26 जनवरी 1950 से भारत की अधिराज्य की स्थिति समाप्त हो गयी और भारत एक ‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य’ हो गया है। ‘‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न’’ का अर्थ है कि आंतरिक याबाह्य दृष्टि से भारत पर किसी विदेशी सत्ता का अधिकार नहीं है।

भारत अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी इच्छानुसार आचरण कर सकता है और वह किसी भी देश से संधि या समझौता करने के लिए बाध्य नहीं है।

समाजवादी राज्य

मूल संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ शब्द नहीं जोड़ा गया था; परंतु संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ शब्द जोड़कर भारत को एक ‘समाजवादी राज्य’ घोषित किया गया।

समाजवादी शब्द से जो तात्पर्य ‘प्रजातंत्रातत्मक समाजवाद’ से है। संविधान में समाजवादी शब्द को लिखने का मुख्य उद्देश्य सरकार को गरीबी मिटाने एवं आर्थिक व सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए निर्देशित करना है।

धर्मनिरपेक्ष राज्य

धर्मनिपेक्षता शब्द 42वें संशोधन (1976) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया है; क्योंकि इसका उद्देश्य भारत को एक ‘‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’’के रूप में प्रतिष्ठित करना है; इसीलिए भारत का कोई अपना ‘‘राजधर्म’’घोषित नहीं किया गया है।

‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ का अर्थ यह है कि भारतधर्म के विषय में पूर्णत: तटस्थ है, वह सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है, उन्हें समान संरक्षण प्रदान करता है।

देश के समस्त नागरिकों को अपनी आस्था के अनुसार किसी भी धर्म को मानने, उपासना करने, प्रचार-प्रसार करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गयी है। राज्य न तो किसी धर्म को प्रोत्साहन देगा और न धार्मिक नीतियों में हस्तक्षेप करेगा।

लोकतंत्रात्मक गणराज्य

  • भारत एक ‘लोकतंत्रात्मक’ राज्य है, जिसका अर्थ यह है कि शासन की सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है; परंतु जनता राजसत्ता या शक्ति का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से स्वयं न करके, अप्रत्यक्ष रूप में अपने द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से करती है।
  • ‘गणराज्य’ शब्द का अर्थ है कि भारतीय संघ का प्रधान अर्थात राष्ट्रपति निर्वाचित होगा, वंशानुगत आधार पर नहीं होगा।
  • इस प्रकार भारत के राष्ट्रपति के पद पर निर्धारित योग्यताधारी देश का कोई भी नागरिक निर्वाचित हो सकता है; भारत अमेरिका की तरह गणराज्य है, किन्तु ब्रिटेन गणराज्य नहीं है, वरन् राजतंत्र है; क्योंकि वहां राज्य का पद वंशानुगत है।

स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व

  • स्वतंत्रता का अर्थ देश के सभी नागरिकों को नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना है। समानता का अर्थ; देश के सभी नागरिकों को उनकी उन्नति एवं विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रदान करना है; एवं बंधुत्व का अर्थ देश के समस्त नागरिकों में आपसी भाईचारे की भावना का विकास करना है।

एकता और अखण्डता

  • भारतीय संविधान देश की एकता और अखण्डता को अक्षुण्य बनाये रखने के उद्देश्य से 42वें संविधान संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में एकता के साथ अखण्डता शब्द और जोड़ा गया है।

भारतीय संविधान की विशेषताएं

हमारा संविधान विश्व का सबसे विशालकाय संविधान है। संविधान बनने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगाकर संविधान का प्रारूप तैयार किया परंतु भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों में संविधानों से भी कई विचार ग्रहण किये; तथा इसे मौलिकता प्रदान की। भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषतांए है –

निर्मित एवं लिखित संविधान – भारतीय संविधान का निर्माण एक विशेष समय और निश्चित योजना के अनुसार संविधान सभा द्वारा किया गया था अत: यह निर्मित संविधान है इसमें सरकार के सगंठन के लिए सिद्धातं ,व्यवस्थापिका कार्यपालिका, न्यायपालिका आदि के गठन एवं कार्यनागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य आदि के विषय में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।

विस्तृत एवं व्यापक संविधान – भारतीय संविधान विश्व के सभी संविधानों से व्यापक है; इसमें 395 अनुच्छेद एवं 22 भागों में विभक्त है; जबकि अमेरिका के संशोधित संविधान में केवल 21 अनुच्छेद, चीन में 106 अनुच्छेद है।

सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य – इसका अर्थ यह है; कि भारत अपने आंतरिक एवं बाह्यनीतियों के निर्धारण में पूर्णरूप से स्वतंत्र है एवं राज्य की सर्वोच्च शक्ति जनता में निहित है; हमारे देश का प्रमुख राष्ट्रपति वंशानुगतन होकर एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होता है।

कठोर एवं लचीलेपन का साम्मिश्रण – हमारे संविधान में संशोधन की तीन विधियां दी गई है। इसके कुछ अनुच्छेद संसद के विशेष बहुमत द्वारा परिवर्तित किये जा सकते है जो लचीलापन का उदाहरण है एवं कुछ अनुच्छेद को आधे से अधिक राज्यों के विशेष बहुमत के साथ ही संसद में उपस्थित दोनो सदनों के दो तिहाई बहुमत के द्वारा ही संशोधन परिवर्तन संभव है; जो संविधान की कठोरता का उदाहरण है।

संघात्मक होते हुए भी एकात्मक – भारत का संविधान संघात्मक होते हुए एकात्मकता के गुण लिए हुए हैं यथा लिखित संविधान, केन्द्र एंव राज्यों के मध्य शक्ति विभाजन, संविधान की सर्वोच्चता जहां संघात्मक के लक्षण हैं; वहीं दूसरी ओर इकहरी नागरिकता एक सी न्याय व्यवस्था और एकात्मकता के लक्षण है।

इकहरी नागरिकता – संधात्मक शासन प्रणाली में नागरिकों को दोहरी नागरीकता प्राप्त होती है; जैसा कि अमेरिका में है; जबकि भारत में केवल इकहरी नागरिकता है इसका अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक है; चाहे वह भारत के किसी भी स्थान पर निवास करता हो या किसी भी स्थान पर उसका जन्म हुआ हो।

सार्वभौम वयस्क मताधिकार – भारतीय संविधान के द्वारा 18 वर्ष से ऊपर प्रत्येक नागरिक को जाति, धर्म, लिंग, प्रजाति या संपत्ति के आधार पर बिन किसी भेदभाव के निर्वाचन में मत देने का अधिकार प्रदान किया है।

स्वतंत्र न्यायपालिकाभारतीय न्यायपालिका स्वतंत्र है; न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी योग्यता के आधार पर होती है एवं उन्हें आसानी से हटाया नहीं जा सकता है।

मौलिक अधिकारों की व्यवस्था – मौलिक अधिकार भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषताहै संविधान में छ: मौलिक अधिकार दिये गये है।

मौलिक कर्त्तव्यों की व्यवस्था – भारतीय संविधान के 42वें संशोधन के द्वारा नागरिकों के 10 मौलिक कर्त्तव्य जोड़ दिये गये है।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत – नीति निर्देशक सिद्धांत हमारे संविधान में आयर लैण्ड के संविधान से लिए गए हैं। लोगों को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाने के उद्देश्य से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों को संविधान में शामिल किया गया है।

एकीकृत न्याय व्यवस्था – भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता एकीकृत न्याय व्यवस्था है; जिस के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय सर्वोपरि अदालत है; इसके आधीन उच्च न्यायालय है। इस प्रकार भारतीय न्यायपालिका एक पिरामिड की तरह है।

लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना –भारतीय संविधान में एक लोकल्याणकारी राज्य की स्थापना का लक्ष्य निर्धारित किया गया है; जिसमें समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिलेगा और सभी को बिना भेदभाव के समान अवसर प्राप्त होंगे।

अस्पृश्यता का अन्त –भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता का अंत किया गया है; और उसका किसी भी रूप आचरण निबंद्ध किया जाता है।

आपात काल की व्यवस्था – संकट काल (आपातकाल) का सामना करने के लिए संविधान में कुछ आपातकालीन प्रावधानों की व्यवस्था की गई है। आपातकालीन घोषणा निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में की जा सकती है। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध या बाह्य आक्रमण अथवा आंतरिक अशांति उत्पन्न होने पर अनुच्छेद 356 के तहत राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था असफल होने पर और अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर आपातकाल की घोषणा कर सकती है।

भारतीय सविंधान में प्रस्तुत मूल कर्तव्य

मूल कर्तव्य 42वें संशोधन (1976) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया है; ये रूस से प्रेरित होकर जोड़े गये तथा संविधान के भाग 4(क) के अनुच्छेद 51 – अ में रखे गये हैं।

  • संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का आदर करे।
  • स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे; और उन का पालन करे।
  • भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
  • देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
  • भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे; जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो; ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
  • हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उस का परिरक्षण करे।
  • प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अंतर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं; रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
  • सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे; जिस से राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊंचाइयों को छू ले।
  • यदि माता-पिता या संरक्षक है; छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।

भारतीय संविधान विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। एक संशोधन के प्रस्ताव की शुरुआत संसद में होती है जहाँ इसे एक बिल के रूप में पेश किया जाता है; भारतीय संविधान में अब तक 124 बार संशोधन किया जा चुका है।

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