अनुच्छेद- 180 | भारत का संविधान

अनुच्छेद 180 (Article 180 in Hindi) – अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति

(1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तो उपाध्यक्ष, या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो विधानसभा का ऐसा सदस्य, जिसको राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

(2) विधानसभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो विधानसभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विधानसभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।

अनुच्छेद 180 : अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन

संविधान के अनुच्छेद 180 के अंतर्गत विधानसभा अध्यक्ष के रूप में कार्य करने अथवा उसके दायित्त्वों का निर्वाह करने की उपाध्यक्ष या किसी अन्य व्यक्ति की शक्तियों का उल्लेख किया गया है।

अध्यक्ष की भूमिका

सदन का अध्यक्ष सदन का प्रधान प्रवक्ता होता है और सदन में सामूहिक मत का प्रतिनिधित्व करता है।

  • दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता के मामलों सहित सभी संसदीय मामलों में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है, जिसे सामान्यतः न्यायालय के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  • इस प्रकार अध्यक्ष सदन में मध्यस्थ के रूप में भी कार्य करता है।
  • अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने और उसे विनियमित करने के लिये सदन में व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखने का कार्य भी करता है।
  • अध्यक्ष को बहस के लिये अवधि आवंटित करने और सदन के सदस्यों को अनुशासित करने का अधिकार है। साथ ही वह सदन की विभिन्न समितियों द्वारा लिये गए निर्णयों को भी रद्द कर सकता है।
  • सदन का अध्यक्ष सदन के कामकाज से संबंधित नियमों का अंतिम व्याख्याकार भी होता है।

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