Frustration या कुंठा का अर्थ, परिभाषा, लक्षण, कारण, दुष्प्रभाव

कुंठा (Frustration) से ग्रस्त किसी भी उम्र में, कोइ्र भी व्यक्ति हो सकता है। कुंठित रहने से ही अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती है। कुंठा हर उम्र के लोगों में होती है। जब किसी दूध-पीते बच्चे को अपनी माता का प्यार नहीं मिलता है तो प्यार न मिल पाना भी कुंठा का कारण है।

कुंठा (Frustration) होने की उम्र

कुंठा हर उम्र के लोगों में होती है।

1. जब किसी दूध-पीते बच्चे को अपनी माता का प्यार नहीं मिलता है तो प्यार न मिल पाना भी कुंठा का कारण है। 

2. कई बार इक्कीसवीं सदी में माताएँ नौकरी अपना रही है और 5 से 8 घंटों तक बच्चे को माँ से अलग रहना पड़ता है और बच्चे इससे कुंठित रहते है।

3. जब बचपन का पड़ाव पार कर किशोरावस्था की शुरूआत होती है तो बच्चे में अनेक शरीरिक बदलाव आते हैं तो उन बदलाव के कारण उसे मन में तरह-तरह के विचार आते हैं। कई बार बच्चे इससे भी कुंठित हो जाते हैं।

4. प्रौढ़ अवस्था में अकेलापन, अजनबीपन झेलना पड़ता है जिससे वर्तमान युग में प्रौढ़ अवस्था के दुख तो न जाने कितने होते हैं। शारीरिक दु:ख इतने घेर लेते हैं कि मानव इस उम्र में कुंठाग्रस्त रहने लग जाता है।

इस प्रकार प्रत्येक आयु के लोगों को कुंठा का सामना करना पड़ता है।

कुंठा का अर्थ (Meaning of frustration)

कुंठा का अर्थ हताशा और निराशा है। कुंठा का प्रमुख कारण मूल्यों का विघटन माना जाता है। ‘कुंठा’ को अंग्रेजी में ‘Frustration’ भी कहा जाता है। कुंठा का शिकार प्रत्येक उम्र के व्यक्ति हैं। हर उम्र की कुंठा अलग-अलग होती है। कुंठा के कारण जब मानव ज्यादा तनाव सह नहीं पाता है तो जीवन की कशमकश तले टूटकर वे गहरे अवसाद से घिर जाते हैं।

कुंठा की परिभाषा (Definition of frustration)

कुंठा को परिभाषित इस प्रकार किया जा सकता है।

1. साइमन्डस के अनुसार – ‘‘जब कोई आवश्यकता उत्पन्न होती साइमन्डस के अनुसार – है और फिर उसकी पूर्ति किसी बाधा अथवा रूकावट के कारण नहीं हो पाती, तब इसका परिणाम कुंठा होता है।’’

2. डी.बी. क्लाइन के अनुसार -’’लक्ष्य निर्देशित प्रयास की पूर्ति में बाधा ही कुंठा है।’’

3. नरमन केमरन के अनुसार – ‘‘जब हम कुंठा की चर्चा करते हैं तब हमारा तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें कि एक व्यक्ति का अभिप्रेरित व्यवहार अथवा उसके कार्य की नियोजित रूपरेखा स्थायी अथवा अस्थायी रूप से पूरी नहीं हो पाती।’’

4. जेम्स जी कालमेन :- ने कुंठा की एक सरल परिभाषा इन शब्दों में की है कि ‘‘कुंठा किसी आवश्यकता अथवा इच्छा की पूर्ति का न होना।’’

कुंठा के लक्षण (Symptoms of frustration)

कुंठा के मुख्य लक्षण को देखा जाए तो कुंठा को मानसिक रोग ही कहा जाएगा। मानसिक रोग का प्रभाव शरीर पर अवश्य पड़ता है। मानसिक रोगों के मुख्य लक्षण यह होते हैं-

लक्षण 1. मन उदास रहना

जब व्यक्ति को किसी कारणवश कोई परेशानी का सामना करना पड़ता है तो उसका मन उदास रहने लगता है। बच्चे को आजकल अपनी पढ़ाई के कारण, मनुष्य को कई बार अपने भविष्य में रोजगार की चिन्ता के कारण, बुर्जुगों को अकेलेपन व अजनबीपन के कारण उदास रहना पड़ता है।

मन उदास रहने के कारण यह उदासी धीरे-धीरे मनुष्य के अन्दर घर जाती है और वह कुंठित से अपने को घिरा हुआ पाता है। आजकल भाग-दौड़ की जिन्दगी और स्वार्थपन जीवन ने मानव के मन को उदास कर दिया है। और यह भी एक मन के रोग का मुख्य लक्षण है।

लक्षण 2. नकारात्मक सोच

यदि मनुष्य को कुंठा रहती है तो इस मानसिक रोग के कारण सकारात्मक सोच नहीं रख पाता है। दूसरे के प्रति नकारात्मक सोच रखता है और गलत सोच के कारण वह दूसरों से झगड़ा भी कर बैठता है। कुंठा से र्गस्त व्यक्ति कई बार गलतफहमी के कारण मुसीबत में पड़ जाता है।

लक्षण 3. काम में अरुचि

कुंठा से ग्रस्त व्यक्ति अपने काम में रुचि नही रखता है। चाहे वह घर हो या फिर दफ्तर सभी जगह वह कुंठा के कारण खोया हुआ सा लगता है।

लक्षण 4. जिंदगी बेकार लगना 

जिंदगी बेकार लगना भी मानसिक रोग की पहचान है।

लक्षण 5. भुल्लकड़पन

जब मानव कोई वस्तु रखकर बार-बार भूल जाता है। वह ऐसे मानसिक रोग के कारण होता है। भूलने की आदत बुजुर्ग होने या फिर सिर के किसी हिस्से में चोट लगने से भी होती है। लेकिन वर्तमान में मनुष्य मन के रोगों से त्रस्त है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और पारिवारिक समस्याओं के कारण कुंठित व संत्रस्त रहता है। इस कारण से भी वह भूलने की आदत का शिकार हो जाता है।

लक्षण 6. आत्मविश्वास की कमी 

कुंठा के कारण आत्मविश्वास में कमी आना स्वाभाविक है। क्योंकि कुंठा का जन्म किसी इच्छा की पूर्ति न होने के कारण होता है।

लक्षण 7. उल्टी-सीधी हरकतें या बार-बार हाथ धोना

मानसिक रूप से बीमार है वह बार-बार हाथ पैर धोता है।

कुंठा के कारण (Cause of frustration)

कुण्ठा के अनेक कारण एवं स्रोत हो सकते हैं जिनमें से कुछ कारण निम्नलिखित हैं- 

कारण 1. भौमिक कारण

वातावरण में पाये जाने वाले अनेक भौतिक या प्राकृतिक तत्व जहाँ एक ओर व्यक्ति की आवश्यकताओं और प्रेरकों की पूर्ति में सहायक होते हैं, वही दूसरी ओर अनेक भौतिक तत्व, जैसे-अकाल, बाढ़, अनावृष्टि, भूचाल आदि आवश्यकताओं और प्रेरकों की पूर्ति में बाधक सिद्ध होते हैं जिससे व्यक्ति के मन में घोर निराशा और असंतोष उत्पन्न होता है। 

कारण 2. व्यक्तिगत कारण

कुछ व्यक्ति अथवा बालक अपने मानसिक, संवेगात्मक या शारीरिक दोषों, जैसे-बुद्धि की कमी, भय, हीनता की भावना, अकुशलता, अंधपन, बहरापन, लंगड़ापन, मोटापा आदि के कारण अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति में असफल रह जाते हैं। इससे भी मन में असंतोष और कुण्ठा की भावना पैदा होती है। 

कारण 3. सामाजिक कारण

समाज के कठोर नियम, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, जाति-प्रजाति, धर्म और कानून भी व्यक्ति की स्वतंत्रा इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधक होते हैं जिनसे व्यक्ति को निराशा और असंतोष का सामना करना पड़ता है और वह अपने को वातावरण के साथ समायोजित कर पाने में कठिनाई का अनुभव करता है। 

कारण 4. आर्थिक कारण

कुण्ठा का एक प्रमुख कारण आर्थिक कारक भी है। आर्थिक परिस्थिति अच्छी न होने के कारण व्यक्ति अपनी बहुत-सी इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है और अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाता। 

कारण 5. व्यक्ति का नैतिक मानक

अपने जीवन में कुछ नैतिक आदर्श जैसे अहिंसा, चोरी न करना, झूठ बोलना आदि होते हैं जिससे कि वह अपनी कुछ इच्छाओं और आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता।

कारण 6. वर्तमान परिस्थितियाँ और दशाएँ

सामाजिक महँगाई, निर्धनता, बेकारी, रहने का अनुपयुक्त स्थान, घर का अशांत वातावरण आदि के कारण बालक की बहुत-सी आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ अपूर्ण रह जाती हैं, इससे उसे निराशा होती है।

कारण 7. असंगत आवश्यकताएँ या लक्ष्य

बहुत-सी विरोधी आवश्यकताओं या लक्ष्य के कारण भी व्यक्ति में मानसिक द्वन्द्व उत्पन्न होता है जिसके कारण उसे निराशा का सामना करना पड़ता है।

कुंठा के दुष्प्रभाव (Side effects of frustration)

व्यक्ति के विकास एवं वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने में कुण्ठा का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कुछ दुष्परिणाम हैं- 

  1. व्यक्ति के विकास एवं समायोजन में बाधा। 
  2. व्यक्ति की भावात्मक दशा अस्थिर हो जाती है जिससे वह घबराया हुआ एवं असंतुलित-सा दिखाई पड़ता है।
  3. असाधारण व्यक्तित्व-प्रकाशन। 
  4. असामाजिकता और विमुखता। 
  5. मानसिक तनाव में वृद्धि और मानसिक रुग्णता।

निष्कर्ष

वर्तमान युग में प्रत्येक आयु के लोगों को कुंठा का सामना करना पड़ता है। वर्तमान युग के मनुष्य की तुलना पत्थर के युग के मानव से की जाए तो उस समय मानव पशु के समान गुफाओं में रहता था। उस वक्त मनुष्य के मन में किसी भी प्रकार के विचार भाव उत्पन्न नहीं होते थे। मनुष्य स्वार्थ, घृणा, लोभ, द्वेष की भावना से मुक्त था। मानव उस समय प्राकृतिक जीवन व्यतीत करता था। मानव को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था। परन्तु आज का मानव अपने स्वार्थ के लिए दूसरे मानव से लड़ता है। वर्तमान युग में मनुष्य के हृदय में एक-दूसरे के प्रति विष उगल रहा है। वर्तमान युग में रिश्ते केवल दिखावे बनकर रह गए हैं। स्वार्थ, लोभ, अंहकार, घृणा की भावना से मानव का जीवन भरा हुआ है। जिस कारण वह कुंठित है।

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