ज्वालामुखी भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है जिससे होकर पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, गैस या भाप, राख इत्यादि बाहर निकलते हैं। पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, जो ज्वालामुखी से बाहर निकलता है, भूराल या लावा (Lava) कहलाता है। यह बहुत ही गर्म और लाल रंग का होता है। लावा जमकर ठोस और काला हो जाता है जो बाद में जाकर ज्वालामुखी-चट्टान के नाम से जाना जाता है।
लावा में इतनी अधिक गैस होती है कि वह एक ही बार निकल पाती है। लावा में बुलबुले इन गैसों के निकलने के कारण हो उठते हैं। लावा का बहना बंद हो जाने पर कुछ काल तक भाप निकलते देखा जाता है।
ज्वालामुखी का इतिहास
एक हजार वर्ष से पहले की बात है। इतालिया (इटली/Italy) के लोगों ने सुना था कि उनके देश का विसूवियस पहाड़ (Mount Vesuvius) किसी जमाने में फट पड़ा था, उससे आग निकली थी। लोग ऐसी बात से यह कल्पना भी नहीं कर पाते थे कि वह फिर से आग उगल सकता है।
उस घटना को हुए कई हजार साल बीत चुके थे और धुप, पाला, हवा, वर्षा इत्यादि से उसके झुलसे हुए मुँह और पहाड़ी ढालों पर हरियाली छा चुकी थी। उसके घाव भर गए थे, नए नगर बस गए। पम्पियाई और हरक्युलैनियम (Herculaneum) जैसे इतिहास-प्रसिद्ध नगर उसी की तलहटी में विकसित हो रहे थे।
24 अगस्त, सन् 79 ई. दोपहर के समय में विसूवियस के मुँह से सफ़ेद धुआँ निकलने लगा। पृथ्वी का कम्पन बढ़ा और जोर की गड़गड़ाहट के साथ विस्फोट हो गया। नगर के लोगों ने समझा कि संसार का अब अंत होने वाला है। राख, धूल और पत्थरों की वर्षा होने लगी, आकाश काले बादलों से भर गया, चारों ओर भीषण अंधेरा छा गया। देखते-देखते नगरों के इमारतें धराशायी हो गयीं। जहाँ-तहाँ आग लग गई। कई लोग मर गए। पम्पाई में मुश्किल से 1/10 लोग (लगभग दो हजार) भाग पाए।
ज्वालामुखी-विस्फोट कैसे होता है।
“ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उगे हुए फोड़े हैं। ये वहीं फूटते हैं जहाँ की पपड़ी कमजोर होती है, जहाँ इन्हें कोई रास्ता मिल जाता है।” हम पृथ्वी की पपड़ी को भेद कर तो नहीं देख पाते, मगर अनुमान लगाते हैं कि वहाँ की स्थिति क्या हो सकती है। हम अभी तक चार मील की गहराई तक खुदाई कर सके हैं और हम लोगों ने पाया कि गहराई के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता जाता है। हमें सबसे गहरी खानों को इसी कारण वातानुकूलित (Air-conditioned) करना पड़ता है।
किन्हीं कारणों से पृथ्वी की पपड़ी का दबाव कम हो गया हो। पपड़ी खिंचकर ऊपर उठ गई हो, इसलिए कि पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी हो रही है, सिकुड़ रही है और पपड़ी में झुर्रियाँ पड़ रही हैं। ऐसा होने से दबाव कम होगा और कुछ नीचे (50-60 मील नीचे) की चट्टानों को फैलकर द्रव बन्ने की जगह मिल जाएगी।
मैग्मा
पृथ्वी के भीतर पिघली हुई चट्टानों के कोष को “मैग्मा (Magma)” कहा गया है। इसकी तुलना बोतल में भरे सोडावाटर से की जा सकती है। काग खुलते ही सोडावाटर मुँह की ओर दौड़ता है, उसी तरह कमजोर भूपटल पाकर गैसयुक्त लावा ऊपर आने के लिए दौड़ पड़ता है और जहाँ-तहाँ अपना रास्ता बना ही लेता है। तेजी से आने के कारण जोरों का विस्फोट होता है और धरती को कंपा देता है। वहाँ की चट्टानें टूट-टूट कर चारों ओर बिखर जाती है; धूल, वाष्प और अन्य गैसों के बादल छा जाते हैं और फिर लावा बह निकलता है।
लावा के बहने और जमने से उलटे funnel के आकार का पर्वत बन जाता है और उसके मुँह पर गड्ढा हो जाता है जिसे क्रेटर (Crater) या ज्वालामुखी कहते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार
- सक्रिय या जाग्रत (Active)
- सुषुप्त या निद्रित (Dormant)
- मृत (Extinct)
सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी
सक्रिय ज्वालामुखी वे हैं जिनसे समय-समय पर विस्फोट हो जाया करता है अर्थात् जिनसे लावा, गैस, वाष्प इत्यादि निकला करता है। संसार में इनकी संख्या लगभग 1,500 है। भारत में अंडमान निकोबार के Barren Island में सक्रिय ज्वालामुखी है। संसार के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी (names of active volcanoes) ये हैं –
- हवाई द्वीप का मौना लोआ (Mauna Loa),
- सिसली का एटना (Mount Etna) और स्ट्राम्बोली (Stromboli volcano),
- इटली का विसुवियस (Italy’s Vesuvius),
- इक्वेडोर का कोटोपैक्सी (Ecuador’s Cotopaxi),
- मेक्सिको का पोपोकैटपेटल (Mexico’s Popocatepetl) ,
- कैलिफ़ोर्निया का लासेन।
सुषुप्त या निद्रित ज्वालामुखी
सुषुप्त या निद्रित ज्वालामुखी वे हैं जो वर्षों से शांत, स्तब्ध या सोये हुए जान पड़ते हैं पर उनके सक्रीय या जाग्रत होने की संभावना रहती है। ऐसे ज्वालामुखी बड़े खतरनाक साबित होते हैं। लोग किसी ज्वालामुखी को शांत समझकर उसकी तलहटी में बस जाते हैं पर जब किसी दिन वह विशालकाय दैत्य जागता है तो धरती हिलने लगती है, भीतर से गड़गड़ाहट की आवाज़ आने लगती है और विध्वंस-लीला होने लगती है। आसपास के नगर और गाँव बर्बाद हो जाते हैं। सन् 79 ई. का विसुवियस विस्फोट सुषुप्त ज्वालामुखी का ही उदाहरण था।
जापान का फ्यूजीयामा जो संसार का सबसे सुन्दर ज्वालामुखी कहा जाता है, सुषुप्त ज्वालामुखी के अन्दर आता है. पता नहीं, वह कब विध्वंस की लीला शुरू कर दे, फिर भी जापानियों को वह बहुत प्रिय है। फिलीपीन का मेयन भी एक सुन्दर ज्वालामुखी है जिसे “फिलीपीन का फ्यूजीयामा” कहा जाता है।
यह इतने जोर का विस्फोट हुआ कि उसकी आवाज़ हजारों मील तक सुनाई पड़ी थी। समुद्र में इतनी बड़ी लहरें उत्पन्न हुई थीं कि वे पृथ्वी की परिक्रमा करने लगीं। आकाश में उससे इतनी अधिक धूल और राख फैली कि तीन वर्ष तक उड़ती रही। उस समय विस्फोट से वायु में इतनी तेज लहरें पैदा हुईं कि वे तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा कर आयीं। उस विस्फोट में लगभग 36 हज़ार आदमी मरे और सारा द्वीप नष्ट हो गया।
मृत या शांत ज्वालामुखी
मृत या शांत ज्वालामुखी वे हैं जो युगों से शांत हैं और जिनका विस्फोट एकदम बंद हो गया है। बर्मा का पोपा, अफ्रीका का किलिमंजारो, दक्षिण अमेरिका का चिम्बराजो, हवाई द्वीप का मीनाको, ईरान का कोह सुल्तान में मृत ज्वालामुखी हैं।