अनुच्छेद 31 (Article 31 in Hindi) – संपत्ति का अनिवार्य अर्जन
अनुच्छेद 31 के अनुसार, प्रारंभ में सम्पति का अर्जन एक मूल अधिकार था जो 40वां संविधान संशोधन के बाद कानूनी अधिकार का रूप दे दिया गया।
संविधान के भाग 3 में उल्लिखित 7 मौलिक अधिकारों में से संपत्ति का अधिकार एक था।
- हालाँकि संविधान लागू होने के समय से ही संपति का मौलिक अधिकार सबसे अधिक विवादास्पद रहा।
- 44वें संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा मौलिक अधिकारों में से संपत्ति के अधिकार, भाग 3 में अनुच्छेद 19 (1) (च) को समाप्त कर दिया गया और इसके लिये संविधान के भाग XII में नए अनुच्छेद 300 A के रूप में प्रावधान किया गया।
- संपत्ति का अधिकार अब भी एक कनूनी अधिकार (संवैधानिक अधिकार) है।
अनुच्छेद 31 ने कई संवैधानिक संशोधनों का नेतृत्व किया जैसे- 1, 4वें, 7वें, 25वें, 39वें, 40वें और 42वें संशोधन।
- प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951 ने अनुच्छेद 31A और 31B को संविधान में सम्मिलित किया।
- 25वें संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 31C को शामिल किया गया था।
व्याख्या
संपत्ति का अधिकार भारतीय संविधान में एक विवादास्पद और महत्वपूर्ण विषय रहा है। संविधान के लागू होने के समय से ही इस अधिकार पर कई संशोधन किए गए हैं और उच्चतम न्यायालय ने भी इस पर कई फैसले दिए हैं। हालांकि, 44वें संशोधन अधिनियम (1978) ने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से बाहर कर दिया, फिर भी यह एक विधिक अधिकार के रूप में अस्तित्व में है।
संपत्ति अधिग्रहण का संविधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 और बाद के संशोधनों के द्वारा राज्य को संपत्ति अधिग्रहण की शक्ति प्रदान की गई है। हालांकि, इस शक्ति के तहत राज्य को दो महत्वपूर्ण शर्तों का पालन करना होता है:
- सार्वजनिक उद्देश्य के लिए संपत्ति का अधिग्रहण किया जाए।
- अधिग्रहण करने के बाद हरजाना (क्षतिपूर्ति) उस संपत्ति के मालिक को दिया जाए।
संपत्ति का अधिकार और विवाद
यह अधिकार एक लंबे समय तक विवादास्पद रहा, विशेष रूप से संसद और उच्चतम न्यायालय के बीच। संपत्ति के अधिकार को लेकर कई संविधान संशोधन हुए, जिनमें पहला, चौथा, सातवां, पच्चीसवां, उनतालिसवां, चालीसवां, और बयालिसवां संशोधन शामिल हैं।
इन संशोधनों के दौरान अनुच्छेद 31क, 31ख, और 31ग को जोड़ा गया, जो संपत्ति के अधिग्रहण और उसकी क्षतिपूर्ति से संबंधित थे। हालांकि, इन संशोधनों का उद्देश्य निजी संपत्ति के अधिकारों का पुनः निर्धारण करना था, जिससे कानूनी अधिकारों और राज्य की संपत्ति अधिग्रहण शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके।
44वां संशोधन अधिनियम, 1978: संपत्ति का अधिकार
44वें संशोधन अधिनियम (1978) ने संपत्ति के अधिकार को भाग 3 से हटा दिया। अब इसे विधिक अधिकार के रूप में भाग 12 में अनुच्छेद 300A के तहत लागू किया गया। इस संशोधन ने यह व्यवस्था दी कि:
- कोई भी व्यक्ति कानून के बिना संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
- यह अधिकार अब मूल अधिकार के रूप में नहीं रहा, बल्कि कानूनी अधिकार बन गया है।
- संपत्ति का अधिकार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा नहीं है, लेकिन यह विधिक अधिकार के रूप में अस्तित्व में है।
संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार
अब संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार के रूप में लागू होता है, और इसे निम्नलिखित तरीकों से संचालित किया जा सकता है:
- इसे संसद के सामान्य कानून के तहत बिना संविधान संशोधन के संशोधित या पुनर्निर्धारित किया जा सकता है।
- यह कार्यकारी क्रिया के खिलाफ निजी संपत्ति की रक्षा करता है, लेकिन विधायी कार्य के खिलाफ नहीं।
- उल्लंघन के मामले में पीड़ित व्यक्ति अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय और अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय में नहीं जा सकता।
- राज्य द्वारा निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर हरजाना की कोई गारंटी नहीं है।
वर्तमान स्थिति: राज्य द्वारा संपत्ति अधिग्रहण पर हरजाने का अधिकार
हालांकि संपत्ति का अधिकार अब मूल अधिकार नहीं है, फिर भी राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण पर हरजाने का अधिकार अब भी मौजूद है, लेकिन यह केवल दो विशेष मामलों में लागू होता है:
- अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान (अनुच्छेद 30) की संपत्ति का अधिग्रहण।
- कृषि भूमि का अधिग्रहण, जहां व्यक्ति अपनी फसल उगा रहा है और भूमि सांविधिक सीमा के भीतर है (अनुच्छेद 31क)।
इन दोनों मामलों में राज्य द्वारा संपत्ति अधिग्रहण के बाद हरजाना (क्षतिपूर्ति) का भुगतान किया जाएगा।
संपत्ति के अधिकार में संविधान संशोधन का इतिहास
भारत में संपत्ति के अधिकार पर विवादों का लंबा इतिहास है। उच्चतम न्यायालय और संसद के बीच कई बार टकराव हुआ और इस पर कई संविधान संशोधन किए गए। इसमें से प्रमुख संशोधन निम्नलिखित हैं:
- 44वां संशोधन (1978): संपत्ति के अधिकार को भाग 3 से हटा कर भाग 12 में अनुच्छेद 300A में डाल दिया गया।
- 17वां संशोधन (1964): इसे अनुच्छेद 31क में जोड़ा गया।
- अन्य संशोधन: जैसे 31ख और 31ग, जो संपत्ति के अधिग्रहण और हरजाने से संबंधित थे।
संपत्ति का अधिकार अब एक विधिक अधिकार के रूप में लागू है, और राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण के बाद हरजाने का अधिकार केवल कुछ विशेष मामलों में ही लागू होता है। हालांकि, यह अधिकार अब मूल अधिकार के रूप में नहीं है, फिर भी यह कानूनी अधिकार के रूप में संविधान में संरक्षित किया गया है।
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Source : – भारत का संविधान