अनुच्छेद 21 (Article 21 in Hindi) – प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
यह एक मूल अधिकार है, इसमें कहा गया है; कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन और निजता की स्वतंत्रता से बंछित किये जाने संबंधी कार्यवाही उचित ऋजु एवं युक्तियुक्त होनी चाहिए। यह सब अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है।
अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य की सावधानी का अधिकार वैसा ही है, जैसे जीवन का अधिकार होता है। यह अनुच्छेद भारत के प्रत्येक नागरिक के जीवन जीने और उसकी निजी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, यदि कोई अन्य व्यक्ति या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने का प्रयास करता है, तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे उच्चतम न्यायलय तक जाने का अधिकार होता है। अन्य शब्दों में किसी भी प्रकार का क्रूर, अमाननीय उत्पीड़न या अपमान जनक व्यवहार चाहे वह किसी भी प्रकार की जॉंच के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्न से या किसी अन्य स्थान पर हो, तो यह इस अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण करता है, जो कि भारतीय संविधान के अनुसार वर्जित है।
व्याख्या
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। यह अधिकार केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही सीमित किया जा सकता है।
निजता का अर्थ क्या है?
Privacy (निजता) का अर्थ है “लोगों के ध्यान से घुसपैठ या किसी के कृत्यों या निर्णयों में हस्तक्षेप से मुक्त होने की स्थिति या स्थिति।”
निजता के अधिकार का अर्थ है:
- व्यक्तिगत स्वायत्तता का अधिकार।
- किसी व्यक्ति और व्यक्ति की संपत्ति का अनुचित सार्वजनिक जांच या जोखिम से मुक्त होने का अधिकार।
जबकि निजता के आक्रमण का अर्थ है “किसी के व्यक्तित्व का अनुचित शोषण और किसी की व्यक्तिगत गतिविधियों में घुसपैठ।” निजता को “अकेले रहने के अधिकार” के पर्याय के रूप में भी माना जाता है।
गोपालन मामला (1950): अनुच्छेद 21 की प्रारंभिक व्याख्या
- फैसले का सार:
- अनुच्छेद 21 केवल कार्यकारी मनमानी के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है, न कि विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के विरुद्ध।
- अगर कोई कानून वैध रूप से बनाया गया है, तो राज्य उसके आधार पर किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता को बाधित कर सकता है।
- सीमाएं:
- इस व्याख्या ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सीमित रूप में परिभाषित किया।
- इसे केवल शारीरिक स्वतंत्रता तक सीमित रखा गया।
मेनका गांधी मामला (1978): अनुच्छेद 21 की विस्तृत व्याख्या
- फैसले का सार:
- सुप्रीम कोर्ट ने गोपालन मामले के फैसले को पलट दिया।
- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को न्याय, उचितता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से जोड़ा गया।
- अब यह सुरक्षा न केवल कार्यकारी मनमानी के खिलाफ, बल्कि विधानमंडल की अनुचित क्रियाओं के खिलाफ भी उपलब्ध है।
- व्याख्या का विस्तार:
- जीवन का अर्थ केवल शारीरिक अस्तित्व तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गरिमामय, स्वस्थ और सुरक्षित जीवन के अधिकार को भी समाहित करता है।
उच्चतम न्यायालय ने मेनका मामले में अपने फैसले को दोबारा स्थापित किया। इसमें अनुच्छेद 21 के भाग के रूप में निम्नलिखित अधिकारों की घोषणा की।
- मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार।
- स्वच्छ पर्यावरण प्रदूषण रहित जल एवं वायु में जीने का अधिकार एवं हानिकारक उद्योगों के विरुद्ध सुरक्षा।
- जीवन रक्षा का अधिकार।
- निजता का अधिकार।
- आश्रय का अधिकार।
- स्वास्थ्य का अधिकार।
- 4 वर्ष की उम्र तक निःशुल्क शिक्षा का अधिकार।
- नि:शुल्क कानूनी सहायता का अधिकार।
- अकेले कारावास में बंद होने के विरुद्ध अधिकार।
- त्वरित सुनवाई का अधिकार।
- हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार।
- अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार।
- देर से फांसी के विरुद्ध अधिकार।
- विदेश यात्रा करने का अधिकार।
- बंधुआ मजदूरी करने के विरुद्ध अधिकार।
- हिरासत में शोषण के विरुद्ध अधिकार।
- आपातकालीन चिकित्सा सुविधा का अधिकार।
- सरकारी अस्पतालों में समय पर उचित इलाज का अधिकार।
- राज्य के बाहर न जाने का अधिकार।
- निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार।
- कैदी के लिए जीवन की आवश्यकताओं का अधिकार।
- महिलाओं के साथ आदर और सम्मानपूर्वक व्यवहार करने का अधिकार।
- सार्वजनिक फांसी के विरुद्ध अधिकार।
- पहाड़ी क्षेत्रों में मार्ग का अधिकार
- सूचना का अधिकार।
- प्रतिष्ठा का अधिकार।
- दोषसिद्धि वाले न्यायालय आदेश से अपील का अधिकार
- पारिवारिक पेंशन का अधिकार
- सामाजिक एवं आर्थिक न्याय एवं सशक्तीकरण का अधिकार
- बार केटर्स के विरुद्ध अधिकार
- जीवन बीमा पॉलिसी के विनियोग का अधिकार
- शयन का अधिकार
- शोर प्रदूषण से मुक्ति का अधिकार
- धरणीय विकास का अधिकार
- अवसर का अधिकार
अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान का सबसे व्यापक और गतिशील अनुच्छेद है। यह न्यायपालिका की व्याख्या के अनुसार निरंतर विकसित होता रहा है। यह प्रावधान केवल जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागरिकों को एक गरिमामय और सुरक्षित जीवन जीने की गारंटी देता है।
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Source : – भारत का संविधान