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Reading: अनुच्छेद 88 – सदन मे मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार
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अनुच्छेद 88 – सदन मे मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार

अनुच्छेद 88 भारतीय संविधान में यह प्रावधान करता है कि प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में बोलने और कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा, भले ही वह उस सदन का सदस्य न हो।

Last updated: January 26, 2025 10:27 pm
By TD Desk
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3 Min Read
अनुच्छेद 88 – सदन मे मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार

अनुच्छेद 88 (Article 88 in Hindi) – सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार

प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सदन में, सदनों की किसी संयुक्त बैठक में और संसद‌ की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।

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व्याख्या

अनुच्छेद 88 भारतीय संविधान में यह प्रावधान करता है कि प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में बोलने और कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा, भले ही वह उस सदन का सदस्य न हो। लेकिन मत देने का अधिकार उस मंत्री के संबंधित सदन मे ही होगा ।

अनुच्छेद 88 का मुख्य प्रावधान

1. मंत्रियों का अधिकार

किसी भी मंत्री को संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में बोलने का अधिकार होगा। वह संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है और बहस या चर्चा में हिस्सा ले सकता है।

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2. महान्यायवादी का अधिकार:

भारत के महान्यायवादी को भी यह अधिकार प्राप्त है कि वह संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही में भाग ले सके और किसी भी विषय पर बोल सके। यह प्रावधान महान्यायवादी को विधायी चर्चाओं में अपनी विशेषज्ञ राय देने की अनुमति देता है।

3. मत देने का अधिकार नहीं:

हालांकि मंत्री या महान्यायवादी, मत देने के लिए उस सदन का सदस्य होना अनिवार्य है। यह अधिकार केवल सदन के निर्वाचित सदस्यों को होता है।

प्रावधान का उद्देश्य

  • सूचना और मार्गदर्शन: यह प्रावधान मंत्रियों और महान्यायवादी को संसद में विभिन्न मुद्दों पर सूचना और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए सक्षम बनाता है।
  • लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली का समर्थन: संविधान ने मंत्रियों और महान्यायवादी को संसद की चर्चाओं में भाग लेने की अनुमति दी है ताकि वे अपने संबंधित विभागों और कानूनों पर स्पष्टता और पारदर्शिता सुनिश्चित कर सकें।
  • महान्यायवादी की भूमिका: महान्यायवादी के पास कानूनों और संवैधानिक मामलों में विशेषज्ञता होती है। उनका संसद में शामिल होना विधायी चर्चाओं को कानूनी दृष्टिकोण प्रदान करता है।

अनुच्छेद 88 मंत्रियों और भारत के महान्यायवादी को संसद में भाग लेने का अधिकार देकर विधायी प्रक्रियाओं में विशेषज्ञता और मार्गदर्शन लाने का काम करता है। यह प्रावधान भारत की संसदीय प्रणाली की पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ाता है।

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Click here to read more from the Constitution Of India & Constitution of India in Hindi

Source : – भारत का संविधान

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अनुच्छेद 35 – संसद को मूल अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिए कानून बनाने की शक्ति
अनुच्छेद 30 – शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार
अनुच्छेद 17 – अस्पृश्यता का अंत
अनुच्छेद 46 – SC/ST के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि
अनुच्छेद 50 – कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
TAGGED:Articles of ConstitutionConstitution of IndiaIndian Constitution
SOURCES:भारत का संविधान
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