शाक्त धर्म क्या है:- प्रजनन से जुड़ी मातृदेवी की अवधारणा भारतीय उपमहाद्वीप के धार्मिक व्यवहारों की सबसे प्राचीन परम्परा है। सिंधु घाटी सभ्यता में मातृदेवी की पूजा सबसे अधिक प्रचलित थी। हड़प्पा, मोहजोदड़ो तथा चन्हूदड़ो से मातृदेवी की प्रतिमा प्राप्त हुई। ऋग्वेद में देवी पूजा को विशेष महत्व नहीं है। इसमें वर्णित देवियों में उषा, इड़ा, सरस्वती, अदिति, आपा (अग्नि), पृथ्वी व राका प्रमुख हैं। इसमें अदिति को सर्वशक्तिमान देवी के रूप में वर्णित है।
देवी शक्ति का उल्लेख
ऋग्वेद के दसवें मंडल में “देवी सूक्त” से शक्ति पूजा प्रारम्भ माना जाता है। 5वें मण्डल के “श्री सूक्त” में “श्री देवी” का उल्लेख है। तैत्तरीय आरण्यक पहला ग्रन्थ है जिसमे दुर्गा गायत्री भाग में शक्ति उपासना से जुड़ी देवियों का वर्णन है। कृष्ण यजुर्वेद के “मैत्रीयणी संहिता” में गिरीसुत गौरी (जो पर्वत की पुत्री है) समेत पौराणिक देवी से जुड़े गायत्री मन्त्र का संकल्प है। ब्राह्मण साहित्य में सरस्वती वाक् देवी कहलाई। मुनकोपनिषद में काली को अग्नि की सात जिव्हाओं में दो रूप में वर्णन है।
महाभारत के “भीष्म पर्व” तथा “विराट पर्व” में, अर्जुन व युधिष्ठिर दुर्गा श्रोत के पाठ करने का विवरण है। हरिवंश के “विष्णु पर्व” में दुर्गा के भिन्न नाम (आर्या, नायायणि, त्रिभुवनेश्वरी, श्री, रात्रि, कात्यायनी, अपर्णा, नग्नशबरी व कौशिकी) का आवाह्न है। यह गायत्री मन्त्र की जननी है। मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा पूजा का प्रथम उल्लेख मिलता है। यह शक्ति या देवी पूजा का प्रथम ऐतिहासिक पुरातात्विक प्रमाण कुषाण के सिक्के में मिलता है। गुप्त काल में शक्ति उपासना अपने चरम पर थी।
शाक्त धर्म (Shakta dharm) मान्यताएं :
शक्ति पीठ (देवी पूजा के स्थान) सर्वप्रथम महाभारत के वन पर्व में 3 शक्तिपीठ – पुष्कर, कुरुक्षेत्र व शाकम्भर का वर्णन मिलता है। देवी भागवत में भी प्रमुख शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। समय के साथ इसकी संख्या काफी बढ़ गयी। कालिका पुराण में 7, कुलार्णवतंत्र में 18 तथा कुब्जिकातंत्र में 42 शक्ति पीठ का उल्लेख है। बाद में शक्ति पूजा के तीन प्रमुख शक्तिपीठ केंद्र है – कश्मीर, कांची तथा कामाख्या (असम)।
अवतारवाद
वैष्णव धर्म की तरह देवी पूजा का अवतारवाद का उदय हुआ। शक्ति पूजा में अवतारवाद का प्रथम विवरण देवी माहात्म्य (मार्कण्डेय पुराण) व देवी भागवत में मिलता है। इसमें सर्वप्रथम नवदुर्गा अवतार मिलती है जिनकी कथा व स्तुति का वर्णन दुर्गासप्तशती के 700 श्लोकों में मिलता है। मत्स्य पुराण में महादेवी के 108 नामों और स्थान तथा कूर्म पुराण में 1000 नामों का उल्लेख है। शक्ति के मुख्य तीन रूप माने जाते है-
- सौम्य रूप :- उमा, पार्वती, लक्ष्मी
- उग्र या प्रचण्ड रूप :- काली, कराली, चामुण्डा, कपाली, दुर्गा
- काम प्रधान रूप :- कामाख्या, त्रिपुरा सुन्दरी, ललिता, आनंद भैरवी
चौंसठ योगिनी
इसमें देवियों की संख्या चौसठ है। यह देवियों के योगिनियां तांत्रिक संप्रदाय से संबंधित है। यह मंदिर भेड़ाघाट (जबलपुर, MP) में है। इसके आलावा खजुराहो (मध्यप्रदेश), कालाहाण्डी (खजुराहो के पास) दुधई-ललितपुर (उत्तर प्रदेश) तथा सम्भलपुर (उड़ीसा) में प्रसिद्ध है।
सप्तमातृकाएं
हड़प्पा संस्कृति की मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर सप्तमातृकाएं का अंकन मिलता है। ये सात माताएं – ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वराही, इन्द्राणी व चामुण्डा (यमि) हैं। गंगाधर लेख सप्तमातृकाएं से सम्बंधित प्रथम अभिलेख है। जिसमे पाशपुरा के शासक विश्व वर्मन द्वारा एक मंदिर का उल्लेख है। बिहार शैल अभिलेख में स्कन्द व दिव्य माताओं का उल्लेख मिलता है।
शाक्त धर्म (Shakta dharm) सिद्धांत :
त्रिपुरा रहस्य, मालिनी विजय, महानिर्वाण, डाकार्णव व कुलार्णव नामक तंत्र ग्रंथों उल्लिखित हैं। अद्यतन बंगाल व असम में शाक्त धर्म प्रचलित है।
तंत्रवाद
तंत्र का अर्थ है रहस्यमय ज्ञान, जो कुण्डलिनी (एक रहस्यमय शक्ति), यंत्र (रहस्यमय आरेख), मंत्र (रहस्यमय शब्द), बीज (सूत्र), मुद्रा (हाथ तथा उंगलियों की विशिष्ट स्थिति व गति) आदि के माध्यम से साक्षात् किया जाता है। तांत्रिक मार्ग एक गुप्त मार्ग था, जिसमे आचार्य के द्वारा चयनित प्रशिक्षुओं को दीक्षा दी जाती थी। शाक्त तंत्रवाद का प्रभाव वैष्णव, कश्मीरी, शैव, शाक्त व बौद्ध धर्मों पर पड़ा। लेकिन जैन पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। तांत्रिक उपासना के प्रमाण गुप्तकाल (पांचवीं सदी ई.) से प्राप्त होते हैं।
तंत्रवाद के सम्प्रदाय
विष्णु, शिव व शक्ति की उपासना से जुड़े थे। इसके सभी महत्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में ही लिखे गए। प्रारंभिक तांत्रिक समुदायों में सबसे महत्वपूर्ण वैष्णव तांत्रिक समुदाय “पंचरात्र” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। तांत्रिक विचारधारा का आधार शक्तिवाद है। यही कारण है कि कश्मीरी शैव मत शक्ति को शिव की अंतर्निहित प्रकृति तथा सर्वोच्च शक्ति मानता है। श्री लक्ष्मी अथवा श्रीदेवी की मान्यता ब्राह्मण, बौद्ध व जैन धर्मों के समान रूप से उपास्य थी।