वैदिक युग (Vedic Age) को 1500 से 600 ईसा पूर्व के बीच की अवधि माना जाता है। प्राथमिक पुनर्निर्माण वैदिक पाठ से किया गया है। सिंधु घाटी सभ्यता के बाद वैदिक युग (Vedic Age) भारत की अगली प्रमुख सभ्यता है। वैदिक युग (Vedic Age), आर्यों के आगमन से जुड़े प्रमुख सिद्धांत, वैदिक युग (Vedic Age) का भूगोल, इसकी राजनीतिक संरचना, समाज, अर्थव्यवस्था, धर्म और वैदिक साहित्य के बारे में चर्चा करेंगे-
वैदिक युग (Vaidic Age)
वैदिक पाठ वैदिक युग (Vedic Age) के पुनर्निर्माण के लिए सूचना का प्राथमिक स्रोत है। इस जानकारी को पुरातात्विक सामग्री के माध्यम से पूरक किया गया है। माना जाता है कि वैदिक ग्रंथों की रचना इंडो आर्यों ने की थी। इंडो आर्यन्स इंडो-यूरोपीय भाषाओं के परिवार की इंडो ईरानी शाखा के एक सब समूह का उल्लेख करते हैं। वे खुद को आर्य के रूप में वर्णित करते हैं जो “आर” से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है खेती करना। आर्यों के आगमन की पुष्टि करने वाले विभिन्न सिद्धांत हैं।
सिद्धांत | अभिधारणाएं | प्रस्तावना |
आर्य प्रवासन सिद्धांत | यह सिद्धांत एक दृष्टिकोण था कि आर्य एंड्रोमियो संस्कृति से हिंदू कुश के उत्तर में चले गए और वहां से वे भारत पहुंचे। इस सिद्धांत को घोड़ों, अग्नि दोष, तीलियों के पहिये और दाह संस्कार के प्रमाणों द्वारा समर्थित किया गया है। | यह सबसे स्वीकृत सिद्धांत है। |
मध्य एशियाई सिद्धांत | यह सिद्धांत मानता है कि आर्य मध्य एशिया और यूरेशियन स्टेपी से चले गए। वैदिक ग्रंथों और अवेस्ता की अवधारणाओं के बीच समानता है। | यह सिद्धांत मैक्समूलर द्वारा प्रतिपादित किया गया था।हाल के अध्ययन “दक्षिण और मध्य एशिया के जीनोमिक गठन” ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया। |
यूरोपीय सिद्धांत | यह सिद्धांत यूरोप को आर्यों की मातृभूमि मानता था। यह तुलनात्मक भाषाई अध्ययन लैटिन, जर्मन और संस्कृत पर आधारित है। | सिद्धांत सर विलियम जोन्स द्वारा प्रस्तावित किया गया था। |
भारतीय सिद्धांत | यह सिद्धांत आर्यों को भारतीय उपमहाद्वीप के लिए स्वदेशी मानता था। इसका प्रमाण यज्ञ की पहुंच और ऋग्वेद में मिलने वाले भौगोलिक आंकड़ों से मिलता है। | सिद्धांत को डॉ. संपूर्णानंद और एसी दास ने प्रतिपादित किया था। |
आर्कटिक क्षेत्र सिद्धांत | सिद्धांत का मानना था कि उत्तरी आर्कटिक आर्यों की मातृभूमि है क्योंकि उन्होंने 6 महीने के लंबे दिनों और लंबी रातों की बात की थी। | बाल गंगाधर तिलक ने प्रतिपादित किया था। |
तिब्बत सिद्धांत | यह तिब्बत को आर्यों का घर मानता था | स्वामी दयानन्द सरस्वती ने प्रतिपादित किया। |
सबसे स्वीकृत दृष्टिकोण यह था कि आर्य आप्रवासन की एक श्रृंखला थी। प्रारंभिक भारतीय आर्य उस भौगोलिक क्षेत्र में रहते थे जो पूर्वी अफगानिस्तान पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों को कवर करता था। सिंधु अल्पविराम जिसे सिंधु कहा जाता है, को आर्यों की मातृभूमि माना जाता है। एक और नदी जिसका उल्लेख मिलता है वह है सरस्वती जो अब राजस्थान की रेत में खो गई है। जिस क्षेत्र में आर्य सबसे पहले भारत में बसे, उसे सात नदियों की भूमि कहा जाता है।
वैदिक युग का भूगोल
प्रारंभिक वैदिक काल (Early Vedic period)
प्रारंभिक आर्य सिंधु और उसकी सहायक नदियों के आसपास और आसपास के क्षेत्रों में स्थित थे। इस क्षेत्र को सप्त-सिंधु क्षेत्र (सात नदियों की भूमि) के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा यह खोई हुई सरस्वती नदी के आसपास फैली हुई है, जो क्षेत्र राजस्थान में वर्तमान घग्गर नदी द्वारा दर्शाया गया है। इस चरण में समुद्र का कोई संदर्भ नहीं था। हिमालय और गंगा के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया था।
उत्तर वैदिक काल (Post Vedic period)
इस काल में, आर्य आग और लोहे के औजारों की मदद से पूर्वी क्षेत्रों में चले गए।उनके द्वारा बसाए गए क्षेत्र में गुरु पांचाल क्षेत्र (इंडो-गंगा विभाजित और ऊपरी गंगा घाटी) शामिल थे। इस चरण के दौरान, उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी समुद्र, यानी अरब सागर और हिंद महासागर और नर्मदा और विंध्य पहाड़ों का भी ज्ञान प्राप्त किया।
वैदिक युग की राजनीतिक संरचना (Structure of vedic age)
प्रारंभिक वैदिक समाज (Vedic Society) एक अर्ध खानाबदोश आदिवासी समाज था जिसमें देहाती अर्थव्यवस्था थी। यहाँ कबीले को जन कहा जाता था और कबीलाई मुखिया को राजन, गोपति या गोपा कहा जाता था। रानी को महिषी कहा जाता था।
प्रारंभिक वैदिक युग का प्रशासन (Admistration of Early vedic age)
राजशाही के उदाहरण थे लेकिन प्रमुख का पद वंशानुगत नहीं था। मुखिया को गोपति या गोप कहा जाता था। देवत्व का कोई सिद्धांत राजशाही से जुड़ा नहीं था। आदिवासी सभा द्वारा चुनाव के उदाहरण हैं जिसे समिति कहा जाता था। जन की ओर से भगवान को प्रार्थना करने के साथ-साथ दुश्मनों से जन और मवेशियों की रक्षा के लिए राजा जिम्मेदार था।
जन अक्सर पणियों से लड़ते थे जो जन के मवेशियों को जंगल में छिपाते थे। अपने मवेशियों को वापस पाने के लिए वैदिक भगवान इंद्र का आह्वान किया गया था और गविष्ठी जैसे युद्ध लड़े गए थे। राजन को सभा, समिति, विधाता, गण जैसे लोकप्रिय निकायों द्वारा सहायता प्रदान की गई थी। सभा में कुछ प्रमुख थे जबकि समिति एक बड़ा निकाय था। विधाता शरीर में सबसे प्राचीन थी। जिस स्थान पर मवेशियों को रखा जाता था उसे “गौन” कहा जाता था और गायों की खोज को गविष्ठी कहा जाता था।
प्रारंभिक वैदिक समाज (Vedic Society) में पितृवंशीय व्यवस्था थी। परिवार के मुखिया को कुला कहा जाता था। रिग सोसाइटी के प्रशासन में शामिल थे –
- पुरोहित:- वह उनकी कर्मकांड सेवाओं को करने से संबंधित था और उसे दक्षिणा और दान प्राप्त हुआ।
- सेनानी:- वह सेना के नेता थे।
- व्रजपति:- उनका सरोकार क्षेत्र को नियंत्रित करने से था।
- ग्रामिणी:- ग्रामिणी गाँव की नेता और युद्ध इकाई थी।
जन को आगे विस में विभाजित किया गया था और यह बदले में कई कुल या कुटुम्ब में विभाजित हो गया था। कुटुम्ब की इकाई के रूप में “गृह” और इसके प्रमुख के रूप में कुलपा थे, जबकि गृह का नेतृत्व गृहपति करते थे। कुलों के समूह ने एक चना बनाया और चने का नेतृत्व एक ग्रामिणी ने किया।
उत्तर वैदिक युग का प्रशासन (Admistration of later vedic age)
उत्तर वैदिक काल (Vedic Period) में, जन जनपदों में विकसित हुए। लेकिन क्षेत्र के लिए इन जनपदों के बीच बार-बार युद्ध होते थे। इस चरण के दौरान, राजन का अधिकार अधिक स्पष्ट हो गया और उसे रतनिन नामक एक सहायक कर्मचारी द्वारा समर्थित किया गया, जो राजा के 12 रत्न थे। यहाँ, मुखिया वंशानुगत हो गया। स्थायी सेना की मौजूदगी नहीं थी।
राजसूय, वाजपेयी, अश्वमेध जैसे विभिन्न बलिदान राजन द्वारा सभी दिशाओं के शासक बनने के लिए किए गए थे। राजन ने सम्राट, एकरत और विराट जैसी उपाधियाँ धारण कीं। राष्ट्र शब्द जिसने क्षेत्र को इंगित किया, इस अवधि में पहली बार दिखाई दिया। सभा और समिति जैसी सभाओं पर निर्भरता कम कर दी गई। इस चरण में विधाता पूरी तरह से गायब हो गई। महिलाओं को अब इन सभाओं में शामिल होने की अनुमति नहीं थी।
वैदिक युग की अर्थव्यवस्था (Economy of Vedic age)
प्रारंभिक वैदिक काल (Early Vedic period)
इस काल में समाज (Vedic Society) पशुचारक था और कृषि लोगों का द्वितीयक व्यवसाय था। मुख्य धन मवेशी थे। कृषि केवल उपभोग के उद्देश्य से की जाती थी। लकड़ी के हल के फाल और ऋग्वेद का उल्लेख मिलता है। अनाज का सबसे आम नाम “यव” था, जो वर्तमान में “जौ” कहलाता है। बाली निर्माताओं की ओर से राजन को एक स्वैच्छिक उपहार था। कोई कर नहीं लगाया गया था और न ही कोई खजाना रखा गया था। मुद्रा या सिक्कों का कोई उल्लेख नहीं है, हालांकि निशिका नामक एक सोने के टुकड़े का उल्लेख मिलता है।
इस काल में वस्तु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी और विनिमय का सबसे पसंदीदा माध्यम गाय थी। तांबे के औजार पंजाब और हरियाणा राज्यों से प्राप्त होते हैं। लोहा उन्हें ज्ञात नहीं था। किसी भी धातु के लिए प्रयुक्त होने वाला सबसे सामान्य नाम अयस था। प्रारंभिक वैदिक काल (Early vedic period) के जीवन में घोड़ों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रचलित आर्थिक गतिविधियाँ शिकार, बढ़ईगीरी, बुनाई, धातु गलाने आदि थीं।
उत्तर वैदिक काल (Later Vedic Period)
कई फसलों की कृषि शुरू हुई और पशुपालन जारी रहा। इसने खानाबदोश प्रकृति पर एक सीमा लगा दी। गेहूं जैसी फसलें जौ चावल मूंग उड़द जहां खेती की जाती है। इस काल में लोहे की खोज की गई थी और कृषि उद्देश्यों के लिए जंगल को साफ करने के लिए आग का उपयोग किया जाता था। एक बढ़ा हुआ अधिशेष था जिसके कारण राजा के खजाने में बाली और भग जैसे पारंपरिक योगदान थे। कोषाध्यक्ष को समग्रीत्री और भगदुखा कहा जाता था जो कर वसूल करते थे। विभिन्न कलाओं और शिल्पों जैसे कि बढ़ईगीरी को गलाना, आभूषण बनाना, मरना, मिट्टी के बर्तन बनाना भी इस अवधि में उल्लेखित हैं।
वैदिक युग का सामाजिक जीवन (Social Life of the Vedic Age)
प्रारंभिक वैदिक काल (Early Vedic period)
समाज का विभाजन (Division of Society)
समाज आर्यों में विभाजित था और गैर आर्य पूर्ण विराम गैर क्षेत्रों को दास और दस्यु कहा जाता था। आर्य दासों के प्रति नरम और दस्युओं के प्रति शत्रुतापूर्ण थे। समाज कबीले की दृष्टि से विभाजित था। राजन और पुरोहित भी कबीले नेटवर्क का हिस्सा थे
वर्ण व्यवस्था (Varna System)
वर्ण वैदिक और अवैदिक लोगों के बीच भेदभाव का आधार था। इसलिए ऋग्वैदिक समाज (Vedic Society) को पूरी तरह से समतावादी समाज नहीं कहा जा सकता क्योंकि सामाजिक स्तरीकरण श्रम और लिंग के विभाजन पर आधारित था। इस काल में चार गुना वर्ण व्यवस्था और कठोर जाति व्यवस्था पूरी तरह से विकसित नहीं हुई थी। ऋग्वैदिक लोग दास प्रथा से परिचित थे। इन दासों का उपयोग घरेलू उद्देश्यों के लिए किया जाता था न कि कृषि के लिए।
सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)
इस अवधि के दौरान, गतिशीलता के उदाहरण थे जहां लोग अपना पेशा बदल सकते थे। इस प्रकार, सख्त सामाजिक पदानुक्रम का अभाव था।
महिलाओं की स्थिति (Status of women)
महिला ने महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और शिक्षित थीं। उनकी विधानसभा सभा और समिति तक पहुंच थी। महिलाओं को अपना पति चुनने का अधिकार था। सती या पर्दा प्रथा का कोई प्रचलन नहीं था
विवाह संस्था (Institution of Marriage)
प्रारंभिक वैदिक लोग (Early Vedic Period) एकांगी विवाह का अभ्यास करते थे हालांकि बहुविवाह और बहुपतित्व जैसी प्रथाएं भी मौजूद थीं। लेविरेट (पति की मृत्यु पर छोटे भाई से विवाह करने की प्रथा) भी विद्यमान थी। नियोग विवाह (यह विधवा विवाह का एक प्रकार था जिसमें निःसंतान विधवा को अस्थायी रूप से पति के भाई से बच्चे पैदा करने के लिए विवाह किया जाता था)।
उत्तर वैदिक काल (Later Vedic Period)
समाज का विभाजन (Division of the Society)
समाज को जाति व्यवस्था के आधार पर समाज के 4 गुना विभाजन के रूप में विभाजित किया गया था। जाति बहिर्विवाह और कठोर सामाजिक पदानुक्रम की प्रथाएं विकसित हुईं। यज्ञों की प्रथा में वृद्धि हुई जिससे ब्राह्मणों की शक्ति में वृद्धि हुई।
वर्ण व्यवस्था (Varna System)
इस काल में वर्ण व्यवस्था अधिक विशिष्ट हो गई। यह व्यवस्था जन्म के आधार पर अधिक और व्यावसायिक दृष्टि से कम होती गई। वर्णाश्रम धर्म समाज ने जीवन के चार चरणों को प्रदर्शित किया।
सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility)
इस अवधि में गतिशीलता के उदाहरण प्रतिबंधित थे।
महिलाओं की स्थिति (Status of women)
महिलाओं को घर के कामों और अधीनस्थ स्थिति तक सीमित कर दिया गया था। उन्हें सभा और समिति जैसी सार्वजनिक सभाओं में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। सती प्रथा और पर्दा के उदाहरण थे। महिलाओं की अपमानजनक स्थिति के बावजूद गार्गी, मैत्री और कात्यायनी जैसे विद्वान थे।
विवाह संस्था (Institution of Marriage)
इस काल में बाल विवाह अधिक प्रमुख हो गया। गोत्र की व्यवस्था संस्थागत थी। एक ही गोत्र के व्यक्ति के बीच विवाह निषिद्ध था। एक ही गोत्र की महिलाओं से विवाह करने वाले पुरुषों के लिए चंद्रयान तपस्या का उल्लेख है।
वैदिक युग का धर्म (Religion of the Vedic Age)
प्रारंभिक वैदिक काल (Early Vedic period)
मंदिर या मूर्ति पूजा के कोई उदाहरण नहीं थे। लोग आदिम जीववाद का अभ्यास करते हैं। वे हवा, बारिश और पानी जैसी प्रकृति की शक्तियों की पूजा करते थे। प्रजा और पाशु के लिए सरल, लघु और कम कर्मकांडीय पूजा और यज्ञ का अभ्यास किया जाता था। पूजा का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या में वृद्धि करना था, नर बच्चे के पशु पक्षियों की रक्षा करना और बीमारियों से बचाव करना था। अनुष्ठान स्वयं परिवार द्वारा किया जाता था और किसी भी पुजारी की उपस्थिति नहीं होती थी। मंत्रों का जाप अनुष्ठान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
- प्रमुख नर देवता इस प्रकार थे:-
- वज्र के देवता इंद्र
- अग्नि देव अग्नि
- जल के देवता वरुण
- पौधों के देवता सोम
- यम मृत्यु के देवता
- जंगल भागों और मवेशियों के देवता पूषान
- विष्णु परोपकारी भगवान
- अश्विनी युद्ध और उर्वरता के देवता
- प्रमुख देवियाँ इस प्रकार थीं:-
- सावित्री सौर देवता
- अनंत काल की अदिति देवी
- पृथ्वी की देवी
- मृत्यु की देवी नृती
- भोर की उषा देवी
उत्तर वैदिक काल (Later Vedic Period)
इस काल में मूर्ति पूजा प्रमुख हो गई। बलिदान अधिक विस्तृत और महत्वपूर्ण हो गए। जादू और शगुन ने सामाजिक धार्मिक जीवन में प्रवेश किया। ब्राह्मणों ने महत्व प्राप्त किया और अपना वर्चस्व बनाए रखा प्रमुखों और उनके क्षेत्र पर अधिकार स्थापित करने के लिए अश्वमेध जैसे यज्ञों का बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुआ।
प्रमुख नर देवता इस प्रकार थे:-
- इंद्र और अग्नि ने खो दिया महत्व।
- सृष्टि के देवता प्रजापति हुए सर्वोच्च।
- देवताओं के वर्ग में विभाजन था।
- पशुओं के देवता पूषन शूद्रों के देवता बने।
वैदिक साहित्य (Literature of Vedic age)
वैदिक ग्रंथों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है, श्रुति और स्मृति।
- श्रुति (Shruti):- श्रुति वह पाठ है जिसे सुना जाता है या जब वे ध्यान में थे तब ऋषियों के लिए ईश्वरीय रहस्योद्घाटन का एक उत्पाद है। श्रुति में चार वेद और संहिता शामिल हैं।
- स्मृति (Smriti):- स्मृति वे हैं जो सामान्य मनुष्यों द्वारा याद की जाती हैं। स्मृति में 6 वेदांग, चार उपवेद और वेदों पर भाष्य शामिल हैं।
वेद (Vedas)
ऋग्वेद (Rigveda)
ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है और भारत में प्रारंभिक वैदिक लोगों (Early Vedic Period) के जीवन को दर्शाता है। इसके पाठ में 1028 भजन हैं, जिन्हें बाद में 10 मंडलों में विभाजित किया गया है। मंडल 2-7 ऋग्वेद समिति का सबसे पुराना हिस्सा हैं और उन्हें पारिवारिक पुस्तकें कहा जाता है क्योंकि वे ऋषियों के परिवारों को निर्धारित करते हैं। मंडल 8 में विभिन्न देवताओं को समर्पित भजन हैं। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है। ऋग्वेद से जुड़ा ब्राह्मण ऐतरय है।
सामवेद (Samaveda)
सामवेद ऋग्वेद से लिए गए छंदों का संग्रह है। इसमें प्रसिद्ध ध्रुपद राग शामिल है जिसे नवीनतम तानसे द्वारा गाया गया था। इसका उपवेद है गंधर्व वेद। इससे जुड़ा ब्राह्मण सदाविंश है।
यजुर्वेद (Yajurveda)
यह बलिदानों के प्रदर्शन की प्रक्रिया से संबंधित है। यजुर्वेद का उपवेद धनुर वेद है। इससे जुड़ा ब्राह्मण गोपथ है। इसे शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद में विभाजित किया गया है।
- शुक्ल यजुर्वेद:- इसमें केवल मंत्र हैं। इसमें मध्यादिना और पुनरावर्तन शामिल हैं।
- कृष्ण यजुर्वेद:- इसमें मंत्रों के साथ-साथ गद्य की व्याख्या और भाष्य भी शामिल हैं।
अथर्ववेद (Atharvaveda)
अथर्ववेद अन्य तीन वेदों से अलग है क्योंकि यह बुरी आत्माओं, खतरे, मंत्रों, भजनों, प्रार्थनाओं, शादियों और अंत्येष्टि को दूर करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दैनिक जादू मंत्रों पर केंद्रित है। अथर्व नाम पुजारी अथर्वन से आया है, जो एक धार्मिक प्रर्वतक और उपचारक थे। अथर्ववेद की रचना बाद में हुई है। इस वेद के 20 अध्यायों में 5687 मन्त्र हैं।
वेदांग (Vedangas)
वेदांग का शाब्दिक अर्थ है “वेदों का अंग”। उन्हें मानव मूल का माना जाता है और सूत्रों के रूप में लिखा जाता है। छह वेदांग इस प्रकार हैं:-
- शिक्षा (फोनेटिक्स)
- कल्पा (अनुष्ठान विज्ञान)
- ज्योतिष (खगोल विज्ञान)
- व्याकरण (व्याकरण)
- निरुक्त (व्युत्पत्ति)
- छंदा (मेट्रिक्स)
उपनिषद (Upanishads)
वे उस ज्ञान का संकेत देते हैं जो शिक्षक के पास बैठकर प्राप्त किया गया था। इन्हें वेदांती के नाम से भी जाना जाता है। 108 उपनिषद हैं जिनमें से 13 सबसे प्रमुख हैं। उन्होंने आत्मा और ब्राह्मण की अवधारणा पेश की। उनके अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मांड का मूल तत्व है और एक अपरिवर्तनीय निरपेक्ष सत्ता है।
उपनिषद मुख्य रूप से प्रकृति में दार्शनिक हैं और उच्चतम ज्ञान की बात करते हैं। सत्यमेव जयते मुंडक उपनिषद से लिया गया है। छांदोग्य उपनिषद पहले तीन आश्रमों को संदर्भित करता है और विवाह के रूपों पर चर्चा करता है।
पुराण (Puranas)
शब्द का शाब्दिक अर्थ है “प्राचीन या ठंडा”। माना जाता है कि पुराणों की रचना वेद व्यास ने की थी। वे 5वीं और 6वीं शताब्दी के आसपास हुए धार्मिक विकास से संबंधित विभिन्न विषयों का इलाज करते हैं। पुराण 18 महापुराण और अनेक उपपुराणों में विभाजित हैं। उन्हें उत्तर वैदिक ग्रंथ माना जाता है। इसमें चार युगों की अवधि में पांच विषयों पर चर्चा की गई है। वे हैं:-
- सरगा – ब्रह्मांड की प्राथमिक रचना।
- प्रतिसर्ग – मनोरंजन, विनाश के बाद माध्यमिक रचना।
- मन्वंतर – विभिन्न मनुओं के राज्य।
- वंश – देवताओं और ऋषियों की वंशावली।
- वंशानुचरित (शाही वंश) – सौर (सूर्यवंशी) और चंद्र (चंद्रवंशी) राजवंशों का इतिहास।
धर्मशास्त्र (Dharmashastra)
धर्म शास्त्र नैतिकता और धार्मिक कर्तव्य के बारे में पाठ हैं। धर्मशास्त्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषशास्त्र की पूर्ति को संदर्भित करता है। वे धर्म सूत्र और स्मृति में विभाजित हैं।