पर्यावरण, हमारे आस-पास के सभी जैविक और अजैविक तथा भौतिक, रासायनिक तत्वों से मिलकर बना एक समुच्चय है। पर्यावरण प्राकृतिक और मानव निर्मित परिवेश है जो पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है और बनाए रखता है। पर्यावरण एक दूसरे के साथ और मानवीय गतिविधियों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं।
पर्यावरण का अर्थ
Environment शब्द फ्रेंच भाषा के ‘Environner’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है “घेरना या घिरा हुआ”। जैविक व अजैविक घटकों एवं उसके आसपास के वातावरण के सम्मिलित रूप से हैं जो पृथ्वी पर जीवन के आधार को संभव बनाता है। (पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986)
जीवन के प्रारंभ में आदिमानव की भौतिक पर्यावरण कार्यमकता दो प्रकार की होती थी –
- ग्राही
- दाता
प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान काल मानव के बदलते समय को 4 चरणों विभाजित किया जा सकता है-
- आदिमानव द्वारा आखेट करना एवं भोजन संग्रहण करना
- आदिमानव द्वारा पशुपालन करना
- आदिमानव द्वारा कृषि कार्य
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास का काल
पर्यावरण के घटक-
पर्यावरण को अजैविक, जैविक एवं ऊर्जा संघटकों में मुख्य तौर पर विभाजित किया जा सकता है-
- जैविक घटक-इसके अंतर्गत पादप, मनुष्य समेत जंतु तथा सूक्ष्मजीव सम्मिलित होते हैं ।
- ऊर्जा संघटक-सौर ऊर्जा एवं भूतापीय ऊर्जा को ऊर्जा संघटक के अंतर्गत सम्मिलित करते हैं ।
- भौतिक घटक या अजैविक घटक- भौतिक संघटक के अंतर्गत सामान्य रूप से स्थल मंडल वायु मंडल तथा जल मंडल को सम्मिलित किया जाता है। इन्हें क्रमशः मृदा, वायु तथा जल संघटक भी कहा जाता है ये तीनों भौतिक संघटक पारितंत्र के उपतंत्र होते हैं।
- भौतिक वातावरण प्रकाश जल मृदा जैसे कारकों से बना होता है, ये अजैविक कारक जीवन की सफलता का निर्धारण एवं उनकी बनावट, जीवन चक्र, शरीर क्रिया विज्ञान तथा व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। जीवन के विकास तथा प्रजनन पर अजैविक कारकों का प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण के स्रोत
वायुमंडल
- वायुमंडल, पृथ्वी के चारो और विस्तृत गैस की आवरण है। पृथ्वी पर स्थित अन्य मंडलों की भांति वायुमंडल भी जैव व अजीव कारकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वायुमंडल की संरचना व संगठन जीवों व वनस्पति की क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
- वायुमंडल गैस, जल-वाष्प एवं धूल कणों का मिश्रण है। वायुमंडल में उपस्थित जैसे पौधों के प्रकाश संश्लेषण ग्रीन हाउस प्रभाव तथा जीव व वनस्पतियों को जीवित रहने के लिए एक आवश्यक स्रोत हैं।
- वायुमंडल की संरचना के भाग क्षोभमंडल तथा समताप मंडल पर्यावरण को महत्व पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं ।
जल मंडल
- जल पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एकमात्र अकार्बनिक तरल पदार्थ है जो कि संसाधन, पारिस्थितिकी या आवास के रूप में कार्य करता है।
- पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा समान रहती है जबकि यह एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। यह प्रक्रिया ही “जल चक्र” कहलाती है।
- जल जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है यह वनस्पति प्रकार तथा उसके संगठन पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
मृदा
- भूपर्पटी की सबसे ऊपरी परत को मृदा कहते हैं। जिसका निर्माण खनिज तथा आंशिक रूप से अपघटित कार्बनिक पदार्थों से होता है।
- शैलों के अपने स्थान से अपक्षयन या स्थानांतरित तलछ्टों का जल या वायु के द्वारा अपरदन होने के परिणाम स्वरुप मृदा का निर्माण होता है।
- मृदा का निर्माण मूल शैल, जलवायु, जीवों, काल तथा स्थलाकृतियों के बीच पारस्परिक क्रियाओं द्वारा होता है।
- मृदा द्वारा पौधों, फसलों, घास तथा वनों की वृद्धि होती है। जिस पर भोजन, वस्त्र, लकड़ी तथा निर्माण सामग्री के लिए मानव आश्रित होता है।
- मृदा का खनिज अवयव उसके मूल पदार्थों के खनिज तथा अपक्षयता के ऊपर निर्भर करता है।
मृदा की संरचना
मृदा की संरचना में निम्नलिखित पदार्थ भाग लेते हैं-
- ह्यूमस अथवा कार्बनिक पदार्थ- लगभग 5 से 10%
- खनिज पदार्थ- 40 से 45%
- मृदा जल- लगभग 25%
- मृदा वायु- लगभग 25%
- इसके अतिरिक्त मृदा जीव और मृदा अभिक्रिया भी मृदा संगठन में भाग लेते हैं ।
मानव पर पर्यावरण का प्रभाव
जैविक– भौतिक सीमाएं
जैविक दृष्टि से मानव का शरीर कुछ निश्चित पर्यावरणीय दशाओं में ही अच्छी तरह कार्य करने हेतु सक्षम होता है, अत: मौसम व जलवायु के कारक सभी जीवो व पौधों के जीवन पर विशेष प्रभाव डालते है।
संसाधनों की सुलभता
संसाधनों की सुलभता मनुष्य के जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है, इससे ही मनुष्य अथवा किसी देश की आर्थिक क्षमता, सामाजिक संगठन, सामाजिक स्थिरता व अन्तराष्ट्रीय संबंध भी निर्धारित होते है। विभिन्न पर्यावरणीय कारक मनुष्य की जाति विविधता को निर्धारित करते है, तथा मनुष्य के चिंतन की विचारधारा, संस्कृति, आचार व व्यवहार को प्रभावित करते है।
पर्यावरण पर मानव का प्रभाव
निम्नलिखित मानवीय गतिविधयों का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, जिनमे निम्न गतिविधियाँ शामिल है –
- खनन (Mining)
- औद्योगीकरण (Industrialization)
- आधुनिक कृषि (Modern agriculture)
- शहरीकरण (Urbanization)
- आधुनिक प्रौद्योगिकी (Modern technology)
पर्यावरणीय समस्याएं एवं समाधान
- ज्यादातर पर्यावरणीय समस्याएं पर्यावरण अवनयन व जनसंख्या द्वारा संसाधनों के उपयोग में वृद्धि से उत्पन्न हुई हैं। जिससे पर्यावरणीय परिवर्तन अवांछनीय हैं एवं स्थानीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण की धारणीयता के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं।
- स्थानीय स्तर पर मृदा प्रदूषण, जल जनित रोग, वन्यजीवों की प्रजातियों का विलुप्त होना इनमें प्रमुख है। वहीं क्षेत्रीय स्तर पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, अम्ल-वर्षा व तेल रिसाव के कारण पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
- वैश्विक स्तर पर प्रदूषण जैव विविधता क्षरण, भूमंडलीय तापन, ओजोन क्षरण, जलवायु परिवर्तन तथा प्रजातियों का विनाश होना प्रमुख पर्यावरणीय समस्या के रूप में विश्व के सामने एक बड़ा खतरा है।
- वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएं संसाधनों के कुप्रबंधन का परिणाम हैं। इन समस्याओं का स्वरूप केवल स्थानीय ना होकर वैश्विक होता है अतः इसके समाधान के प्रयास भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए।
- पर्यावरण की समस्या का समाधान तभी किया जा सकता है जब इस समस्या को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तंत्र का अभिन्न हिस्सा बनाया जाए।